For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिंजड़ा -- डॉo विजय शंकर

पिंजड़ा भी ,
एक अजीब बंधन है ,
दाना भी , पानी भी , बस ,
बंद पंछी उड़ नहीं सकता।
हौसलों से कहते हैं कि
क्या कुछ हो नहीं सकता ,
हो सकता है , बस पंछी ,
पिंजड़ा लेकर उड़ नहीं सकता।
कितने आज़ाद हैं हम ,
फिर भी उड़ नहीं पाते ,
मुक्त हो नहीं पाते ,
उन्मुक्त होकर जी नहीं पाते ,
बाहर से आज़ाद हैं , बस ,
कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,
बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।
रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,
बंधे रह जाते हैं हम , पता नहीं चलता ,
एक जकड़न में , एक अकड़न में ,
कि दाना-पानी , सब है इसी में ,
बस इसी जकड़ - अकड़ से निकल लें
तो मुक्ति, वरना आज़ाद
कोई और कर नहीं सकता।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 4, 2016 at 6:04pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा रचना पर आगमन एवं सार्थक टिप्पणी हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 4, 2016 at 2:31pm

आदरणीय विजय सर चितन  के लिए प्रेरित करती आत्मबोध कराती इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 4, 2016 at 6:25am
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2016 at 11:08pm
आभार , आदरणीय सौरभ पांडेय जी ,सादर।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 3, 2016 at 8:32pm
बहुत ही सुन्दर रचना । आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी बधाई प्रेषित है ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2016 at 7:41pm

धन्यवाद तो आदरणीय मैं भी कह रहा हूँ. 

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2016 at 6:46pm
कितने आज़ाद हैं हम ,
कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,
बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।
रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,

जिस कर्ता या प्रथम पुरुष की तलाश है वह " हम " में है , उस " हम " में जो जकड़ा है अपनी उन रूढ़ियों में जो बेड़ियाँ बन चुकी हैं , तारीफ यह है कि उसी जकड़न में वह अकड़ भी रहा है। यह भी है कि कुछ कस कर बंधे हैं और कुछ अपेक्षाकृत कुछ ढीले। हाँ , उस कर्ता के लिए " उस " , " तुम " या " वह " का प्रयोग कर के " हम " का प्रयोग किया गया है , क्योंकि उद्देश्य उन रूढ़ियों से निकलना है न कि इसके-उसके विवाद में पड़ना है। फिर यह रचना किसी काल-खंड विशेष की भी नहीं है।
शेष रचना को समय देने और उसे पसंद करने के लिए आभार , आदरणीय सौरभ पांडेय जी , शुभ और सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2016 at 6:42pm
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , रचना को स्वीकृति प्रदान करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2016 at 2:29pm

किस तरह की ’आज़ादी’ कोई चाहता है, जबतक यह स्पष्ट न हो तो आज़ादी उच्छृंखलता अधिक प्रतीत होती है.

दाना-पानी का मिलना, मगर उड़ने को न मिलना और तदनुरूप छटपटाहट जैसे प्रतीक इस प्रस्तुति में सन्निहित हैं, वे आधिकारिक दासता का द्योतक हैं. फिर तो ऐसा कुछ विशेष वर्ग और उसकी अवस्था की बात है. यानी, याह भाव-संप्रेषण सबके लिए नहीं है. फिर तो, जिनके लिए यह ’अपेक्षाएँ’ हैं, उनको तो इस कविता में होना था. अन्यथा ऐसे में कोई संप्रेषण अव्यावहारिक बातें करता हुआ-सा प्रतीत होता है, या, अपने मन की न ’पाने’ या ’कर पाने’ की कुण्ठा को अभिव्यक्त करता हुआ प्रतीत होता है. जबकि, इस कविता के रचनाकार आदरणीय विजय शंकर जी को जितना मैं उनकी कविताओं के माध्यम से जानता हूँ, वे ऐसे किसी भावबोध को स्वर नहीं देते.

इस हिसाब से रचना अपने कर्ता या प्रथम पुरुष के बिना खूब बोलती हुई भी स्पष्ट नहीं हो पा रही. बाकी सारा कुछ तो श्लाघनीय ही है. 

शुभेच्छाएँ. 

Comment by TEJ VEER SINGH on August 3, 2016 at 12:02pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!बेहतरीन प्रस्तुति!मनुष्य की मजबूरियों का संकेतों से सटीक वर्णन!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Abhilash Pandey is now a member of Open Books Online
42 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
14 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
19 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service