For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,113)

"भईया"





नम आँखें...

आँखों में इंतज़ार...

कभी घड़ी को तकती...

तो कभी दरवाज़े की चौखट को...

और कभी थाली में सजी रेशम की डोर को...

उसमें सजे मोतियों की चमक में दिखता तेरा मुस्कुराता चेहरा...

और खो जाती मैं उस सुन्हेरे बचपन में...

जहाँ हर पल तेरा मुझे छेड़ना...

मुझे चिढ़ाना और चोटी खींचना...

तब भी आंसू देता था और आज भी...



तेरा शैतानियाँ करना और मेरा उन्हें माँ से छुपाना...

मुझे कोई रुलाये…
Continue

Added by Julie on September 22, 2010 at 2:44am — 5 Comments

ग़ज़ल- पल्लव पंचोली "मासूम"

फिर उसकी महक ले हवाएँ आईं
शायद काम मेरे मेरी दुआएँ आईं

आँखों में फिर थोड़ी चमक है सबकी
जाने क्या संग अपने ले घटाएँ आई

कौन बचा है खुदा के इंसाफ़ से यहाँ
सब के हिस्से मे अपनी सजाएँ आईं

बीमार कहाँ मरते हैं मरज से यहाँ
काम मारने के अब तो दवाएँ आईं

जब लगा ख़तरे मे है कोई "मासूम"
दौड़ चली शहर की सब माएँ आईं ,

Added by Pallav Pancholi on September 21, 2010 at 10:00pm — 2 Comments

कुछ इस कदर वो मुझे चाहती हैं .....???????????

ख़्यालों के तासीर से दिल अपना बहला लेते हैं

कुछ लोग एहसासे बुलंदी से हीं आसूदगी पा लेते हैं


आसूदगी = संतोष



**********************************************************************



फितरते दिलकशी है चेहरे पर नक़ाब उनका

राजे दिल फा़श करे रंगे शबाब उनका



वो न कहें लबों से चाहे कुछ मगर

कहती है बहुत कुछ अंदाजे हिजा़ब उनका



हैं वो भी मुज़्तरिब जितना की दिल मेरा

ये और बात है कहे न कुछ इजि़्तराब उनका

मुज़्तरिब = व्याकुल… Continue

Added by Subodh kumar on September 21, 2010 at 5:30pm — 2 Comments

आज की साम्प्रदायिकता के नाम...........

काश रहबर मिला नहीं होता

मै सफ़र में लुटा नहीं होता



गुंडागर्दी फरेब मक्कारी

इस ज़माने में क्या नहीं होता



हम तो कब के बिखर गए होते

जो तेरा आसरा नहीं होता



आग नफरत की जिसमे लग जाये

पेढ़ फिर वो हरा नहीं होता



हम शराबी अगर नहीं बनते

एक भी मैकदा नहीं होता



हिन्दू मुस्लिम में फूट मत डालो

भाई भाई जुदा नहीं होता



ये सियासत की चाल है लोगो

धर्म कोई बुरा नहीं होता



मंदिरों मस्जिदों पे लढ़ते… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 21, 2010 at 12:56pm — 3 Comments

उम्रे तमाम

उम्रे तमाम गुजारी तो क्या किया

इस जीवन से तूने क्या लिया |

इस जीवन को तूने क्या दिया

उम्रे तमाम गुजारी तो क्या किया |

ता उम्र तू रहा इस कदर बेखबर

रही न तुझे अपनी जमीर की खबर |

करता रहा तू मनमानी अपनी

रही न तुझे वक्त की खबर

उम्रे तमाम गुजारी तो क्या किया |

करता रहा तू मेरा - मेरा

नही है , यहा कुछ तेरा - मेरा |

उम्रे तमाम गुजारी तो क्या किया

मनुष्य जन्म तुझे है , किसलिए मिला

इस जन्म को किया क्या सार्थक तूने |

उम्रे तमाम गुजारी… Continue

Added by Pooja Singh on September 21, 2010 at 9:35am — 2 Comments

कर कुछ नया रे मनवा ,

कर कुछ नया रे मनवा ,

जा मति जा मति जा ,

छोड़ के सभको यु ही अकेले ,

उसपे दुनिया के लाख झमेले ,

द्वन्द को और ना बढ़ा ,

कर कुछ नया रे मनवा ,

जा मति जा मति जा ,

जब आया तू था सब सुन्दर ,

फिर माया मोह में लपटाया ,

जीवन को तू जीना चाहा ,

खुद को इसमें फसाया ,

अब क्यों कर तू सोचे हैं ,

फस गया मैं ये कहा ,

कर कुछ नया रे मनवा ,

जा मति जा मति जा ,

कर कुछ यैसा रह के जहाँ में ,

और ये सब को बता ,

नही हैं तेरे वास्ते कुछ भी… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 20, 2010 at 5:43pm — No Comments

बाहर बहुत बर्फ है

तुम्हारे देश के उम्र की है

अपने चेहरे की सलवटों को तह करके

इत्मीनान से बैठी है

पश्मीना बालों में उलझी

समय की गर्मी

तभी सूरज गोलियां दागता है

और पहाड़ आतंक बन जाते हैं

तुम्हारी नींद बारूद पर सुलग रही है

पर तुम घर में

कितनी मासूमियत से ढूंढ़ रही हो

कांगड़ी और कुछ कोयले जीवन के

तुम्हारी आँखों की सुइयां

बुन रही हैं रेशमी शालू

कसीदे

फुलकारियाँ

दरियां ..

और तुम्हारी रोयें वाली भेड़

अभी-अभी देख आई है

कि चीड और… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on September 20, 2010 at 4:00pm — 13 Comments

मुहब्बत : करके भी न कर सके !

खु़दा मेरी दीवानगी का राज फा़श हो जाये

वो हैं मेरी ज़िन्दगी उन्हें एहसास हो जाये



सांसे उधर चलती है धड़कता है दिल मेरा

एक ऐसा दिल उनके भी पास हो जाये



हर मुलाकात के बाद रहे हसरत दीदार की

ऐसे मिले हम दूर वस्ल की प्यास हो जाये



तड़पता है दिल उनके लिये तन्हाई में कितना

बेताबी भरा जज़्बात उधर भी काश हो जाये



तश्नाकामी इस कदर रहे नामौजुदगी में उनकी

जैसे सूखी जमीं को सबनमी तलाश हो जाये



करे तफ़सीर कैसे दिल उल्फत का ब्यां… Continue

Added by Subodh kumar on September 19, 2010 at 9:44pm — 10 Comments

कहानी - वह सामने खड़ी थी

वह सामने खड़ी थी . मैं उसकी कौन थी ? क्यों आई थी वह मेरे पास ? बिना कुछ लिए चली क्यों गयी थी? न मैंने रोका, न वह रुकी. एक बिजली बनकर कौंधी थी, घटा बनकर बरसी थी और बिना किनारे गीले किये चली भी गयी . कुछ छींटे मेरे दामन पर भी गिरे थे. मैंने अपना आँचल निचोड़ लिया था. लेकिन न जाने उस छींट में ऐसा क्या था कि आज भी मैं उसकी नमी महसूस करती हूँ - रिसती रहती है- टप-टप और अचानक ऐसी बिजली कौंधती है कि मेरा खून जम जाता है -हर बूंद आकार लेती है ; तस्वीर बनती है -धुंधली -धुंधली ,सिमटी-सिमटी फिर कोई गर्म… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on September 19, 2010 at 5:00pm — 10 Comments

हे कृष्ण तुम्हे आना होगा....

माँ के आँचल से छीन जहाँ

नवजात मृत्यु ले जाती हो..

सत्ता पैशाची हर्षित हो

इस पर कहकहा लगाती हो...



आतंकी अत्याचारी ही,

जिस कालखंड के शासक हों ,

जब स्वार्थ नीति से प्रेरित हो

शासन समाज का त्रासक हो...



जहाँ बचपन ढोर चराने में

उलझे, शिक्षा से दूर रहे...

जहाँ समझदार भी सत्यवचन

न कहने को मजबूर रहें....



जहाँ विषधर नदियों के जल में

कुंडली मार कर बैठे हों ,

जो मानदंड हों श्रद्धा के,

श्रद्धालुजनों से ऐंठे… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on September 19, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

तकल्लुफ

इस बार वो ये बात अजब पूछते रहे

मेरी उदासियो का सबब पूछते रहे

अब ये मलाल है कि बता देते राज़-ऐ-दिल

तब कह सके न कुछ भी वो जब पूछते रहे

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

नाकाम वफाएं

छोड़ कर वो साथ मेरा जब जुदा हो जायेगा ,

ज़ात पैर इंसान की कुछ तब्सिराह हो जायेगा .

हद से ज्यादा कर रहा था मै वफाएं उसके साथ ,

मुझको क्या मालूम था वो बेवफा हो जायेगा .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

शोहरत


जब तलक मंसूब दिल से दिल न हो ,

दिल को तब तक हिचकियाँ मिलती नहीं .

इश्क करने से मिलेंगी शोहरतें ,

मुफ्त में बदनामियाँ मिलती नहीं .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

हाल

उससे बिछड़ के ऐसे मेरा दिल उदास है ,
जैसे बिछड़ के मौज से साहिल उदास है .
मै कर रहा हु इसलिए हसने की कोशिशे ,
मुझको उदास देख के महफ़िल उदास है .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

एहसास


रब्त -ऐ - नाज़ुक की शुरुआत भी हो सकती है ,
लब हिलेंगे नहीं और बात भी हो सकती है .
हमसे मिलने का कभी दिल में न तुम ग़म करना ,
बंद आँखों में मुलाक़ात भी हो सकती है .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

अपना घर

परदेस में रहने की ख़ुशी और अलम और ,
याद आये अगर घर की तो होता है सितम और .
परदेस से खींचे है कशिश घर की कुछ ऐसे ,
जाना हो अगर घर पे तो बढ़ते है क़दम और .

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 4:00pm — No Comments

तेरी रुसवाई भी तो हो ...........

फ़क़त मै क्यों रहू रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ,

सितमगर तेरी महफिल में शब् -ऐ -तन्हाई भी तो हो .



तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ,

ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो .



मै तुमको बेवफा कहता हु तो इसमें बुरा क्या है ,

ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो .



वफ़ा के खुश्क दरिया में मै कैसे डूब सकता हो ,

तेरे दरिया -ऐ -उल्फत में कोई गहराई भी तो हो .



शब् -ऐ -फुरक़त क हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ,

बिछड़ के… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — 1 Comment

सुराग


शब् भर हमारी याद में ऐसे जगे हो तुम ,

आराम तर्क कर के टहलते रहे हो तुम ..

बिस्तर की सिलवटो से महसूस हो गया

कुछ देर पहले उठ के यहाँ से गए हो तुम

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

आँख और आंसू



ये बोला आँख से आंसू के माँ ये क्या किया तुने

हमारी कौन सी ग़लती का ये बदला लिया तुने

कभी औलाद को अपनी जुदा माँ तो नहीं करती

फिर अपने लाल को क्यों घर से बेघर कर दिया तुने







ये बोली आँख आंसू से जुदा बस यु किया तुझको

बुलंदी पर पहुचने का दिया है रास्ता तुझको

अगर तू साथ रहता तो तेरी क्या अहमियत होती

ज़मी पे गिर के ही तो मर्तबा आला मिला… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

नाराज़ महबूबा



तुम्ही मेरी ज़रूरत हो तुम्ही पहली मुहब्बत हो

क़सम कोई भी ले लो तुम बहुत ही ख़ूबसूरत हो



तुम्हारे ध्यान से क़ल्ब -ओ -जिगर में रौशनी आये

तुम्हारी मुस्कराहट ही मेरे लब पर हंसी लाये



जो तुम मेरी तरफ देखो मेरे दिल को सुकू आये

ज़रा हंसकर कभी बोलो मेरे दिल पर ख़ुशी छाए



न हो तुम ग़मज़दा की मेरा दिल मचलता है

तुम्हारे एक इक आंसू से मेरा दिल पिघलता है



मुहब्बत का वाफाओ का मेरी कुछ तो सिला दे… Continue

Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm — No Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service