For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाईव तरही मुशायरा 2" की सभी ग़ज़लें एक ही जगह

ओपन बुक्स ऑनलाइन पर जनाब राणा प्रताप सिंह जी द्वारा (११-१५ सितम्बर-२०१०) मुनाक्किद "OBO लाईव तरही मुशायरा 2" में तरही मिसरा था :

"उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है"
(वज्न: १२१ २१२ १२१ २१२ २२)

उस मुशायरे में पढ़ी गईं सब ग़ज़लों को उनकी आमद के क्रम से पाठकों की सुविधा के लिए एक स्थान पर इकठ्ठा कर पेश किया जा रहा है !

// जनाब नवीन चतुर्वेदी जी //

(ग़जल-१)

फितूर जिनका लोगों को धता बताना है|
उन्हीं के कदमों में ही जा गिरा जमाना है|

उछालें किस तरह से पगड़ियाँ शरीफों की|
इसी उधेड़बुन में जिनका वक्त जाना है|

दरख्तेभाईचारा जो हिलाते रहते हैं|
उन्हीं के नाम, हक - चमन का - मालिकाना है|

अरब - खरब पचा के भी डकार जो ना लें|
उन्हीं के पास बेशक़ीमती खजाना है|

बहन-माँ-बेटियों की आबरू के सौदाई|
स्वाभाव जिन का आदतन ही वहशियाना है|

सदा घिरे ही रहते हैं जो जी-हजूरों से|
मकान जिन का नाकारों का कारखाना है|

बड़े ही पाक साफ हैं, न करते घोटाले|
पुलिस - अदालतों से उन का दोस्ताना है|

ग़ज़ल के नाम पे जो चुटकुले सुनाते हैं|
फकत जिन्हें कमेंट का किला बनाना है|

बिहार के बाशिंदे सोचने लगे हैं अब|
जो इस दफ़ा भी वो ही माजरा पुराना है|

(ग़ज़ल - २)
नज़र में जिनकी, ये जहाँ - सरायखाना है|
उन्हीं के कदमों में ही, जा गिरा जमाना है|

रईस-मुफ्लिसों में जो न भेद करते हैं|
पता बता दो उन का, उन के पास जाना है||

घड़ी घड़ी बदलते रंग ओबिओ के ये|
बता रहे हैं, और भी अनंद आना है||

समय रहेगा कम, हमारे पास परसों-कल|
सो पूरा लुत्फ़ आज लूटना - लुटाना है||

सभी उमीदवार लगते एक ही जैसे|
जिसे फिकर हो मुल्क की, उसे जिताना है|

युँ ही सुलग रहा है काश्मीर सालों से|
इसे तबाह होने से हमें बचाना है||

सभी की अपनी अपनी राय है यहाँ यारो|
और उस पे ज़िद सभी को एक साथ लाना है||

यहाँ-वहाँ सभी तलाशते सुकूँ को क्यूँ?
हमारा दिल ही, उस का तो, पता-ठिकाना है||

-------------------------------------------------
//जनाब अरुण कुमार पाण्डे "अभिनव" //

ज़मीनो आसमां को एक जिसने जाना है ,
उन्हीं के कदमो में ही जा गिरा ज़माना है .

बसर वो करते नहीं आज कल दिलो जां में ,
बने खुदा है मगर किस जगह ठिकाना है.

छोड़कर पाप पुण्य का चक्कर ,
उन्होंने ठान लिया गंगा में नहाना है .

सियासी लोग भला डरते कब जमाने से ,
कालिखों के लिए हर रोज एक बहाना है .

कई बरस के बाद आया चुनावी मौसम ,
नए नेताओं के लिए यही नजराना है.

उजड गए सीवान डेरे और दुआरे सब ,
बदल गए से गाँव में भला क्या जाना है.

बहुत उलझ गए हैं उन के ये लच्छे सब,
ये रिश्ते हैं या फकत उनका ताना बाना है.

कताएं नज़्म ग़ज़ल या कि मसनवी "अभिनव "
लिखेंगे कुछ भी मगर आपको सुनाना है.
--------------------------------------------------------
//जनाब पुरषोत्तम अब्बी "आजर" // ग़ज़ल-१

जंमी पे तारे जो गगन से तोड़ लाया है
उसी को ताज से सदा गया नवाजा है

बुझे भी आग तन बदन की कैसे पानी से
तुझे जरा सा मैने हाथ क्या लगाया है

उन्ही के कदमों में ही, जा गिरा जमाना है
नई दिशा में जिसने, चल के पा दिखाया है


वफ़ा कि तुझसे कोई भी ,मुराद रखना क्या
दगा लहू में तेरे , हर समय मचलता है

हसीन दुनिया भी बहुत है, दुख है इसका भी
गरीबी ने जमाने में , कहर भी ढाया है

किसी भी बात का ,जवाब तुम नही देते
खता हमारी क्या है ?यूं पता क्या चलता है

वही पुरानी बातें , ताजा हो गईं "आज़र"
नजर मिला के हमनें, तुमसे बस ये पाया है

(ग़ज़ल - २)

वफ़ा ,नफ़ा , उसूलों को जिन्होने जाना है
उन्ही के कदमों में ही, जा गिरा जमाना है

न नीदं आए लेना करवटें बहाना है
उन्हे इशारे से सही में यूं बुलाना है

परिदां दिल भी मेरा, सच यहीं से जाना है
परिदें का न कोई, ठौर ही ठिकाना है

खुदा गवाह है मेरा न तू बेगाना है
वो और बात तूने अपना सा न माना है

धुँआ न होता है जुदा लौ से कभी "आज़र"
दिए में तेल जब तलक बाती का खाना है
----------------------------------------------------------
//जनाब राणा प्रताप सिंह//

जिन्होंने कर्म को खुदा से बढ़के जाना है
उन्ही के कदमो में ही जा गिरा जमाना है

कि जिसका शौक रोते बच्चों को हँसाना है
वही सुना सका कलाम सूफियाना है

बड़े महल खड़े हैं झोंपड़ी के मुद्दे पर
तो झोंपड़ी का मुद्दा सिर्फ आबो दाना है

न जाने कैसे मेरी रूह जुड़ गई उससे
गले लगा मेरे दीवाने का दीवाना है

न आया ख़त कोई न पहुंचा है मनीऑडर
वो बूढी माँ को याद आया डाकखाना है

ग़मों कि धूप का नही है डर, मेरे ऊपर
बड़े बुजुर्गों कि दुआ का शामियाना है

तुम्हारी शख्सियत तो आज रुपये जैसी है
फ़क़त वजूद मेरा खोटा चार आना है

बड़ी रकम यूँ ले के मत यहाँ निकलना तुम|
कहीं गली के आगे गुंडों का ठिकाना है|

निसार कर दूं सब जहाँ अगर तू मुस्काये|
इसी अदा पे ही मिटा तेरा दीवाना है||

अजीब शख्स है वो बात अनसुनी करता|
कहीं निगाह उसकी और कहीं निशाना है||

बड़ा कमाल कर गए है सब जो आये है|
छुपे जो खोंपचे में उनको भी बुलाना है||

-------------------------------------------------
//जनाब फौज़ान अहमद किदवई//

शजर के दुःख में इन्हें साथ कब निभाना है /
मसर्रतों के परिंदों का क्या ठिकाना है //

तुली है बर्क नशेमन तबाह करने पर
हमें भी जिद है यहीं आशियाँ बनाना है

ज़मीन ओ ज़र को जो ठोकरों पे रखते हैं /
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है //

ये बोले अग्निपरीक्षा में राम लक्ष्मण से /
वो बावफा है मगर उसको आज़माना है //

मुसीबतों की चटानों को काट कर फौज़ान /
कठिन बहुत है मगर रास्ता बनाना है //

ये बोले अग्निपरीक्षा में राम लक्ष्मण से
वो बावफा है मगर उसको आज़माना है
----------------------------------------------
//जनाब गणेश जी "बाग़ी"//

लहू भी जिनका बस वतन के काम आना है
उन्ही के कदमों मे ही जा गिरा जमाना है,

तपे धरा कही अथाह बाढ़ का आना,
किसान सोचते कि मेघ भी दिवाना है,

छ्ला गया हरेक बार भावना में मैं,
दवा बता जहर दे वाह क्या जमाना है,

अजीब चेहरा मुझे दिख रहा सियासत का
समय पड़े गधे को बाप कह बुलाना है,

न रोकिये यहाँ अभी मुशायरे का रथ,
मजे ही लूटिये मिजाज शायराना है,

गुलो कि राह पे कभी नही चला "बागी"
इसे तो काँटों पे ही बिस्तरा लगाना है

--------------------------------------------------------
//जनाब सौरभ पाण्डे जी //

तरही का बुलावा था, सोचा आज़माना है ।
कई दिनों से चाहता, देखूँ क्या ये ख़ाना है॥

मसरूफ़ियत थी जान पर और दौरे हुए कई
मिल रहा है आज गो’ मौका नहीं ख़ज़ाना है॥

भइ, कनेक्शनोस्पीड के भी हैं चोंचले कई
फिर भी बनी उम्मीद थी, इनसे पार पाना है॥

करते हुये फ़र्ज़ोकरम, हर मुसाहबी में मस्त
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है ॥

बयान हालेदिल करें, सुखन रहे ना शौक भर
जो मोहब्बतों को मानते उनसे बतियाना है॥

शख़्शियत मेरी प्याज-सी बोलो खुल जाएँ अभी
क्या मगर हासिल तुम्हें, मतलब नहीं रुलाना है॥

----------------------------------------------------------
//जनाब आशीष यादव//

माकूल हुश्न जिसका, अंदाज़ कातिलाना है|
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा ज़माना है||

दफ अतन ही कभी मोहब्बत हो नहीं जाती|
प्यार की शमा को धीरे-धीरे जलाना है||

समय के साथ ही बदलेंगे भी व्यवहार उनके|
प्यार उनसे हमें कितना है ये जताना है||

गैर हाज़िर में बसंत भी लगे उजाड़ जिनके|
साथ में मौसम-ए-खिंजा लगे सुहाना है||

आज कुछ ऐसा उनके प्यार में कर जायेंगे|
हँस के कल वो कहेंगे की तू दीवाना है||

------------------------------------------------------------
//जनाब विवेक मिश्र "ताहिर"//

इक दीद से उनकी छलका हर पैमाना है.
उफ़ सनम की आँखें हैं या पूरा मयखाना है--

राह चलते जो देखें कभी वो पलटकर.
उन्ही के क़दमों में ही जा गिरा ज़माना है--

अपने रुख से दरबान हटा भी दे पर्दानशीं .
हम भी तो देखें जो कारुन का खजाना है--

इक अकेला नहीं मैं, है चाँद भी आशिक.
उनकी गली में हम दोनों का आना जाना है--

'ताहिर' क्या बताएं क्यूँ नम हैं अरसे से.
उनकी आँखों में रहता बादल दीवाना है--..
-----------------------------------------------------------
//इस खाकसार (योगराज प्रभाकर) की ग़ज़ल//

जिन्होंने आदमी को आदमी ना जाना है !
उन्हीं के कदमों में ही जा गिरा जमाना है !

कोई साकी है ना मीना है ना पैमाना है
तेरा वजूद सर से पाँव तक मैखाना है !

तू है दानिश तेरा अंदाज़ फलसफाना है
मैं कलंदर मेरा अंदाज़ सूफिआना है !

तेरी शतरंज,. तेरी चाल, मगर जिद मेरी
तेरे वजीर को पैदल से ही हराना है !

जमाना आ गया है अपने दरमियाँ, वर्ना
वो ही सर है तुम्हारा, वो ही मेरा शाना है !

उसको हैवानियत का दैत्य ही ना छोड़ेगा,
उसने इंसानियत को बरगुजीदा माना है !
,
इसी गरज में छोड़ पाऊँ न टूटे घर को,
कोई फकीर कह गया यहाँ खज़ाना है !

हाथ कंधे पे रख अर्जुन के कृष्ण जी बोले,
तुझे तो खून अपने खून का बहाना है !
------------------------------------------------------------
//जनाब दीपक शर्मा "कुल्लूवी"//

उन्ही के कदमों में जा गिरा ज़माना है
इश्क़-ओ-मुहब्बत का जिनके पास ख़ज़ाना है

वफ़ा की सूली पे जो हँसता हुआ चढ़ जाए
नाम-ए-बेवफ़ाई से बिल्कुल जो अंजाना है

ईद और दीवाली में जो फ़र्क़ नहीं करता
अल्ला और राम को एक जिसने माना है.

आसां नहीं है जीना ऐसे जनू वालों का
शॅमा की मुहब्बत में हँसकर जल जाते परवाने हैं

'दीपक कुल्लवी उन सबको करता है सलाम
इंसानियत का बोझ जो हंसकर उठाते हैं
-------------------------------------------------------------------
//जनाब डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी//

जिनकी बातों से चिढ होती थी कभी
उन्ही को फर्शी सलाम बजाना है...

जिनके पीछे पड़े थे कभी पुलिस के दस्ते
उन्ही के कदमों में जा गिरा ज़माना है !
------------------------------------------------------------

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2010 at 9:27pm
आदरणीय प्रधान संपादक जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो सभी ग़ज़लों को करीने से एक जगह स्थान दे दिये हैं, ओपन बुक्स ऑनलाइन के सदस्यों को तरही मुशायरा-२ की सभी गज़ले एक साथ पढने मे सहूलियत होगी | जय हो |
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on September 23, 2010 at 9:05pm
योगराज भैया प्रणाम.....

बहुत ही बढ़िया तरह से एक जगह कर दिया आपने लगभग....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service