कभी कोई अनजाना
अपना हो जाता है.
कभी किसी से
प्यार हो जाता है.
ये जरूरी नहीं
कि जो खुशी दे
उसी से प्यार हो.
दिल तोडने वाले से भी
प्यार हो जाता है.
जिन्दगी हर कदम पर
इम्तिहान लेती है,
तन्हाई हर मोड पर
धोखा देती है.
फिर भी हम
जिन्दगी से प्यार करते हैं
क्यूंकि हम किसी का
इंतजार करते हैं.
कुछ दोस्तों का
हां दोस्तों का
इंतजार करते हैं.
Added by sanjeev sameer on December 26, 2010 at 12:22pm —
1 Comment
लघुकथा
एकलव्य
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई.,…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on December 26, 2010 at 12:06pm —
2 Comments
Added by Lata R.Ojha on December 26, 2010 at 1:30am —
4 Comments
सुबह फिर…
Continue
Added by Lata R.Ojha on December 26, 2010 at 1:00am —
4 Comments
एकाकी, एकाकी
जीवन है एकाकी...
मैं भी हूँ एकाकी,
तू भी है एकाकी,
जीवन पथ पर चलना है
हम सबको एकाकी I
ना कोई तेरा है,
ना है किसी का तू,…
Continue
Added by Veerendra Jain on December 26, 2010 at 12:00am —
13 Comments
ग़ज़ल
फ़र्ज़ के पैगाम का बस, उम्र भर ये स्वर सुना है |
युग विजेता बन मनुज तू , जिसने ये अम्बर बुना है ||
वो कि - जो बैठे हुए थे खुद किनारों पर कहीं,
कह रहे थे - खास गहरा नहीं ये सागर, सुना है ||
कल न जाने बात क्या थी ? आसमां नीचा लगा,
आज जब उँचाई उसकी नाप ली तो सिर धुना है ||
लौट कर आया नहीं, उस ख़त के बदले कोई… Continue
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 25, 2010 at 7:46pm —
1 Comment
Added by madan kumar tiwary on December 25, 2010 at 6:30pm —
2 Comments
ग़ज़ल
भारत माता माँग रही है - इस नीति से पूर विधान |
जिसमें हों सब भाई बराबर, जाति - धर्मं से दूर, समान ||
जिसमें किसी की हो न उपेक्षा, मिले बराबर का अधिकार,
सब हों माँ के एक से बेटे- अधिकारी, मजदूर, किसान ||
तंग दिलों से बाहर आ कर, आओ, रचें हम वह संसार.
जिसमें सुख की हो सुगंध पर हों न दुखों के क्रूर निशान ||
बात जोहती है भारत माँ , बेटों के इस न्याय का ,
जिसकी … Continue
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 25, 2010 at 11:35am —
2 Comments
चौपाई सलिला: १.
क्रिसमस है आनंद मनायें
संजीव 'सलिल'
*
खुशियों का त्यौहार है, खुशी मनायें आप.
आत्म दीप प्रज्वलित कर, सकें
क्रिसमस है आनंद मनायें,
हिल-मिल केक स्नेह से खायें.
लेकिन उनको नहीं भुलाएँ.
जो भूखे-प्यासे रह जायें.
कुछ उनको भी दे सुख पायें.
मानवता की जय-जय गायें.
मन मंदिर में दीप जलायें.
अंधकार को दूर भगायें.
जो प्राचीन उसे अपनायें.
कुछ नवीन भी गले लगायें.
उगे…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on December 25, 2010 at 11:00am —
2 Comments
नैनीताल,
कड़ाके की ठण्ड थी..हम परिवार के साथ होटल से नेना देवी मंदिर, पैदल पैदल जा रहे थे..
पिताजी ने कडकडाती आवाज में माँ से कहा : " अरे जरा हैण्ड बैग मफलर तो निकाल दो "
चलते चलते अचानक वो रुक गए और कुछ देखने लगे..
सामने चबूतरे पे एक पागल सा दिखने वाला आदमी अधनंगी हालत में सुकड़ के बैठा कुछ खा रहा था..
माँ हैण्ड बैग से मफलर निकालते हुए बोली : " क्या हुआ.. रुक क्यों गए?..ये लो मफलर "
पिताजी ने झुके से स्वर में कहा : " अब रहने दो "
Added by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 10:54am —
No Comments
ग़ज़ल
मेरे दिल को जलाने वाले, खुदा तेरा भी दिल जलाए |
मुझे जो तूने दिया है ये गम, तेरे भी दिल को सुकूँ न आये ||
मेरी मुहब्बत न तूने समझी, मुझे जो तूने दिया है ये गम,
खुदा तुझे भी अमन न बख्शे , तेरे चमन को खिज़ां जलाये ||
मेरी वफ़ा को जूनून कहकर, मुझे जो तूने कहा है पागल,
तुझे सजा दे खुदाई इसकी, दर्द तुझको गले लगाए ||
जफा के खंज़र, का ये कातिल, दर्द क्या… Continue
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 24, 2010 at 11:05pm —
No Comments
लोग इतने बदल गए ज़माना इतना बदल गया
बदले जुबां के रंग उनके, तराना इतना बदल गया
निकलते हैं जब अल्फाज उनके, कुछ अजीब से लगते हैं
ऊपरी शोहरत पाकर भी वो गरीब से लगते हैं
वो भोलापन नहीं अब बातों में उनकी
दिल से निकले भाव भी तहजीब से लगते हैं
होकर सामने भी छुरा पीठ पर मारा मेरे
फिर भी दिल निकाल ना पाए
मेरे कातिल मुझे बड़े बदनसीब से लगते हैं
गले में पड़ा हार जब साँसों की तकलीफ बन गया
तब दिखावे की सजा मालूम हुई
कल बेआबरू होते देखा उन्हें बाज़ार…
Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 10:57pm —
4 Comments
ग़ज़ल
दोस्तों, कुछ रात ऐसी भी थी, जब सोया नहीं मैं |
दर्द से तड़पा बहुत पर चीख कर रोया नहीं मैं ||
कोई शीशा सा तड़क कर, टूट, दिल में आ चुभा,
इसलिए उस रात भर तक, ख्वाब में खोया नहीं मैं ||
कौन सी मंजिल है किसकी और कहाँ किसका मकाँ ?
कौन है इस राह पर भटका हुआ, वो या कहीं मैं ?
ज़िन्दगी के मायने, अहसान … Continue
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 24, 2010 at 10:55pm —
2 Comments
जनक छंदी सलिला: २
संजीव 'सलिल'
*
शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,
मानव इंसां बन सके.
सकल धरा खुश हाल हो..
*
दसों दिशा में हर्ष हो,
प्रभु से इतनी प्रार्थना-
सबका नव उत्कर्ष हो..
*
द्वार ह्रदय के खोल दें,
बोल क्षमा के बोल दें.
मधुर प्रेम-रस घोल दें..
*
तन से पहले मन मिले,
भुला सभी शिकवे-गिले.
जीवन में…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on December 24, 2010 at 9:30pm —
2 Comments
Added by DEEP ZIRVI on December 24, 2010 at 3:00pm —
No Comments
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
अतीत के बीते पन्नों को,उलट उलट के पढता हूँ
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
जब सर पे तेरा साया था
तब ये ख्याल न आया था
अब ओढ़ के काले अम्बर को
आँचल तेरा समझता हूँ
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
कहता था याद करूंगा नहीं
कभी भी बात करूंगा नहीं
पर आज तुम्हारी यादों को
आँखों में सजा के रखता हूँ
आज इस खामोश रात में, तुम को याद में करता हूँ… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 12:04pm —
8 Comments
नवगीत:
मुहब्बत
संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..
न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाने को दी है
खुदाने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न टूटें,
जुगत कुछ भिड़ाओ.
दिलों से मिलें दिल.
कली-गुल रहें खिल.
मिले आँख तो…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on December 24, 2010 at 8:16am —
3 Comments
जनक छंदी सलिला : १.
संजीव 'सलिल'
*
आत्म दीप जलता रहे,
तमस सभी हरता रहे.
स्वप्न मधुर पलता रहे..
*
उगते सूरज को नमन,
चतुर सदा करते रहे.
दुनिया का यह ही चलन..
* हित-साधन में हैं मगन,
राष्ट्र-हितों को बेचकर.
अद्भुत नेता की लगन..
*
सांसद लेते घूस हैं,
लोकतन्त्र के खेत की.
फसल खा रहे मूस हैं..
*
मतदाता सूची बदल,
अपराधी है कलेक्टर.
छोडो मत दण्डित…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on December 23, 2010 at 11:30pm —
4 Comments
आया जब मैं उज्जवल बेला ,
हसी ख़ुशी का मस्त सवेरा ,
था सब अपना नही पराया ,
ये सब उन लोगो से पाया ,
सोचता हूँ मैं अक्सर यारा ,
मेरी बारी कब आएगी !…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on December 23, 2010 at 7:00pm —
3 Comments
चल मेरे मन चलें वहाँ.. … Continue
Added by Lata R.Ojha on December 23, 2010 at 4:30pm —
6 Comments