For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक कविता आज के दौर के नाम....

पैसा है, उसका नशा है, और शोहरत है
अब कहाँ इतनी फुरसत है
लोगों के आसपास होने का अहसास नहीं होता
अपनों के खोने का डर आसपास नहीं होता


हसरतें, इतनी कि ख़त्म ही नहीं होती!
पाना ये , वो भी कि, सबर ही नहीं होती
स्नेह, प्यार, विश्वास शब्दों में अब गुजर नहीं होती


प्रकृति के नज़ारे भी लगते है फीके
क्या करेंगे उनमे भी जी के
दिलों में मरुस्थल जम रहे है
कुछ केक्टस वहां भी पनप रहे है


रिश्तों का मोल है, न प्यार के बोल है
नैतिक मूल्य ,बिक रहे बेमोल है
अजीब है! पर सब की कहानी है
अहसासों में जीना आज बेमानी है


आदमी कहाँ किस दौर में चल रहा है!
कितना बेढंगा, भद्दा लग रहा है
झूठे मेकअप से संवर रहा है
फिर भी खुद को बेहतर कह रहा है


कागज के फूल की तरह महक रहा है
दीवार में सजे शोपीस की तरह दिख रहा है
दिखने के लिए लीलाएं रच रहा है
और उसमे खुद ही भटक रहा है


किस खोज में है, निरंतर
जब बहुत कुछ दरक रहा है अंदर
क्या पा रहा है खुद को छल कर


अपने लिए जो दुनिया बना ली
भीतर से कितनी है ख़ाली
फूलों की बहार में ,केक्टस की खरपतवार उगा ली
कौन बनेगा इसका सवाली!

[by anushri]

Views: 506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by anupama shrivastava[anu shri] on January 7, 2011 at 6:05pm
thax ajay singh ji...........
Comment by Ajay Singh on January 7, 2011 at 5:04pm
vah anupama ji jabab nhi
Comment by anupama shrivastava[anu shri] on January 6, 2011 at 6:38pm
thax chaturvedi ji.............bahut dhanyavad
Comment by anupama shrivastava[anu shri] on January 6, 2011 at 6:37pm
bahut dhanyavad bagi ji...............
Comment by anupama shrivastava[anu shri] on January 6, 2011 at 6:37pm
THAX RAVI KUMAR JI............
Comment by Rash Bihari Ravi on December 29, 2010 at 6:44pm
bahut badhia kavita

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2010 at 10:54am

अपने लिए जो दुनिया बना ली
भीतर से कितनी है ख़ाली,

क्या बात कही है , वास्तव मे कुछ कुछ ऐसा ही है , किसी ने कहा है की "दौलत मनुष्य को कठोर बना देता है" बहरहाल बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद, अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर भी आपके विचार की अपेक्षा है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service