For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल

अज़ीज़ बेलगामी

ग़म उठाना अब ज़रूरी हो गया
चैन पाना अब ज़रूरी हो गया

आफियत की ज़िन्दगी जीते रहे
चोट खाना अब ज़रूरी हो गया

गूँज उट्ठे जिस से सारी काएनात
वो तराना अब ज़रूरी हो गया

जारहिय्यत  के दबे एहसास का
सर उठाना अब ज़रूरी हो गया

अब करम पर कोई आमादा नहीं
दिल दुखाना अब ज़रूरी हो गया

साज़िशौं, रुस्वायियौं को दफ'अतन
भूल जाना अब ज़रूरी हो गया

खान्खाहौं से निकल कर आईये
सर कटाना अब ज़रूरी हो गया

मंजिले दरो रसन को देख कर
मुस्कुराना अब ज़रूरी होगया

बज़्म बोझल सी है उठिएगा अज़ीज़
गुनगुनाना अब ज़रूरी हो गया

आफियत= Safety ;
जारहिय्यत = aggressive होना;
खानखाह = वो गुफाएं जहाँ  घर बार छोड़ कर इश्वर की याद में जीवन बिताया जाता है
;

दारो रसन = सूली
और रस्सी (जो फँसी देने के लिए इस्तेमाल होते हैं )








Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दुष्यंत सेवक on August 23, 2011 at 7:04pm
fully agreed with shesh dhar ji, kam shabd, sateek radeef aur kaafiye matlab behtareen ghazal aur yah uska sarvshresht udaharan...bahut khoob azeez sahab
Comment by Roli Pathak on August 23, 2011 at 5:02pm

खान्खाहौं से निकल कर आईये
सर कटना अब ज़रूरी हो गया
बहुत खूब सर ................उर्दू शब्दों के अर्थ बता कर आपने  हमारे  शब्द  कोष  में  वृद्धि  की  ही ,
साथ  ही  आपकी बेहतरीन रचना की  हम  सच्ची  दाद  दे  सके .....बहुत उम्दा........

Comment by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 1:34pm
वाह !!!!
Comment by Azeez Belgaumi on December 29, 2010 at 11:11am
shukriya aap ki pasandeedagi ka Ganesh ji.... aap ne sahi kaha... typing mistake hui hai....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2010 at 11:05am

अब करम पर कोई आमादा नहीं
दिल दुखाना अब ज़रूरी हो गया,

 

वाह जनाब वाह, बेहतरीन कारीगरी, बहुत बढ़िया ....

खान्खाहौं से निकल कर आईये
सर कटना अब ज़रूरी हो गया,

ऊपर लिखे शे'र के मिसरा सानी मे लग रहा है टाइपिंग mistake है "कटाना" शायद होना चाहिये |

Comment by Rash Bihari Ravi on December 28, 2010 at 1:41pm
bahut badhiaa khubsurat
Comment by Lata R.Ojha on December 27, 2010 at 1:44pm

खान्खाहौं से निकल कर आईये
सर कटना अब ज़रूरी हो गया

 

वाह ! बहुत खूब अज़ीज़ जी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
22 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service