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ग़ज़ल 

अज़ीज़ बेलगामी 

मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी 

अगरचे आग बुझी है  धुवाँ धुवाँ  है  अभी

यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं से 

मेरे यकीन पे उनको गुमाँ गुमाँ  है  अभी

बचा लो इस्माते हुस्ने कलाम फ़नकारो 

मताए फ़न का खरीदार एक जहाँ है  अभी

है बर्क रेजो शररबार आसमान उधर 

इधर इरादाए तामीरे आशियाँ है  अभी

अज़ीज़ ताअते असलाफ छोड़ दूँ कैसे 

यही तो बाइसे तसकीने क़ल्बो जाँ है  अभी


 

असासा = जमा पूंजी, property

इस्मत = आबरू, इज्ज़त

बर्क रेज = बिजलियाँ गिराने वाला

शररबार = आग बरसाने वाला

ताअते असलाफ = अपने बुजुर्गों के पीछे चलना


 


 


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Comment by asha pandey ojha on January 10, 2011 at 8:27pm

मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी 

अगरचे आग बुझी है  धुवाँ धुवाँ  है  अभी 

यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं से 

मेरे यकीन पे उनको गुमाँ गुमाँ  है  अभी bahut kamal ki gzal waah dil khush ho gya  

Comment by Rash Bihari Ravi on December 29, 2010 at 4:44pm
bahut khubsurat sir ji
Comment by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 3:56pm

अज़ीज़ ताअते असलाफ छोड़ दूँ कैसे 

यही तो बाइसे तसकीने क़ल्बो जाँ है  अभी 

वाह ! अज़ीज़ जी..क्या खूब लिखा है आपने .. बधाई . 

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