Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2016 at 7:53am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2016 at 9:46am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 11:03am — 20 Comments
कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on May 26, 2016 at 11:00am — 6 Comments
Added by Shyam Narain Verma on May 25, 2016 at 5:21pm — 4 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2016 at 9:44am — 4 Comments
अदभुत अकथनीय वातावरण
आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,
चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है
भगवान् या देवी जो भी हों
घर को खुशियों से भर दिया है
आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है
हवायें भी व्याकुल हो
प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं
इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं
हमारे छोटे भगवान् जी
घरवालों के प्रान जी
पर क्या इनकी पूजा होगी ?
क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?
ऐसा प्रश्न क्यूँ आया
आना…
ContinueAdded by maharshi tripathi on April 12, 2016 at 10:39am — 2 Comments
औरत .
सिर्फ एक
माँ, पत्नी, प्रेमिका
बेटी, बहू, सास,
दादी, नानी
ही नहीं.....
एक जीता जागता उदाहरण भी है
त्याग, ममता, बत्सलता
और संघर्ष का भी...........
एक निर्मात्री भी
मूल्यों , संस्कारों, परम्पराओं
और इतिहास की...............
एक इज्जत भी
घर कुटुंब, गाँव
और देश की.....
पर शायद अर्थहीन हो गया है
उसका सब कुछ होना भी
सिमट गया है
उसका बिरात स्वरुप
सिर्फ…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 12, 2016 at 3:32pm — 3 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2016 at 9:43am — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 9:18am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2016 at 12:23pm — 6 Comments
मैं राजपथ हूँ
भारी बूटों की ठक ठक
बच्चों की टोली की लक दक
अपने सीने पर महसूसने को
हूँ फिर से आतुरI
सर्द सुबह को जब
जोश का सैलाब
उमड़ता है मेरे आस पास
सुर ताल में चलती टोलियाँ
रोंद्ती हैं मेरे सीने को
कितना आराम पाता हूँ
सच कहूं ,तभी आती है साँस में साँस
इतराता हूँ अपने आप पर I
पर आज कुछ डरा हुआ हूँ
भविष्य को लेकर चिंतित भी
शायद बूढा हो रहा हूँ…
ContinueAdded by pratibha pande on January 25, 2016 at 4:52pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2016 at 9:51am — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on January 13, 2016 at 9:06pm — 4 Comments
क्यों लेटी हो गुमसुम सी,
सिर्फ एक अंगडाई दो मुझे ,
ऐसे न दो तुम विदाई मुझे,
रास आती नहीं जुदाई मुझे !
क्यों चुप हो सन्नाटे सी,
कभी तो सुनाई दो मुझे
लें आती थी खुशबू तुम्हारी,
फिर वही पुरवाई दो मुझे !
सर्द रातों में रजाई ओढ़ातीं,
फिर वही रजाई दो मुझे
जिससे चिराग रोशन करतीं,
फिर वही दियासलाई दो मुझे !
जिससे मन में सुर घोलतीं
फिर वही शहनाई दो मुझे
जिससे गीत लिखे थे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 1, 2016 at 7:15pm — 2 Comments
कोयला खदान की
काली अँधेरी सुरंगों में
निचुड़े तन-मन वाले खनिकर्मी के
कैप लैम्प की पीली रौशनी के घेरे से
कभी नहीं झांकेगा कोई सूरज
नहीं दीखेगा नीला आकाश
एक अँधेरे कोने से निकलकर
दूसरे अँधेरे कोने में दुबका रहेगा ता-उम्र वह
पता नहीं किसने, कब बताया ये इलाज
कि फेफड़ों में जमते जाते कोयला धूल की परत को
काट सकती है सिर्फ दारु
और ये दारू ही है जो एक-दिन नागा…
Added by anwar suhail on January 1, 2016 at 3:30pm — 3 Comments
फूल बिना भौंरे का जीवन , जग में है कितना लाचार । |
जब बाग वन कहीं खिले कली , आ जाये बिकल बेकरार । |
रंग रूप ना दूरी देखे , नैनों से करता इजहार । |
खार वार कुछ भी ना देखे , जोश में आये बार… |
Added by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:30pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2015 at 2:57pm — 1 Comment
गंगा जमुनी परंपरा को
मानव मन में झंकृत कर दो
वेद रिचाएँ महक उठे सब
मंत्रों को उच्चारित कर दो
हे! भारत जागो
गुंफित हो वन उपवन सारे
अवनी को शुभ अवसर दे दो
रुके पलायन गाँव गली का
हृदय में समरसता भर दो
हे! भारत जागो
बलिदानों के प्रतिबिम्बन में
रिश्ते फूलें खुले गगन में
छुपी हुई मंथर ज्वाला को
मानवता में मुखरित कर दो
हे! भारत जागो
रूप तरुण तेरा मन…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on December 17, 2015 at 8:44pm — 6 Comments
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