For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,137)

मान जाओ न

मान जाओ न



मचल उठता है

ये ह्रदय

जब आती है

दूर कहीं से कोयल की

कूक सी मीठी

सदा



पीपल के पत्तों की तरह  …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 11:30am — 3 Comments

गुरु ज्ञान (दोहे)

   

 1.गुरु ज्ञान बाँटते रहे, ले सके वही लेत,

   भभूत समझे तो लगे, वर्ना वह तो रेत |



  

 2.अमल करे तबही बढे, गुरु सबके हीसाथ,

   करम सेही भाग्य बढे, भाग्य उसीके हाथ |



 3. नेता भाषण में  कहें,जाति का नहीं भेद,

   जो फोटू दिखलाय दो, तुरत करेंगे खेद |



4. भेद गरीब अमीर का , नहीं करे करतार,

   करतारही जब न करे,हमको क्यों दरकार |


 5.पुत्र से अगर वंश चले, बेटी भी हकदार,              

 बिन जमींन नहि कुछ…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 11:00am — 14 Comments

काले किले का वो काला कलाल

यह रचना हास्य के लिए रची गयी है, कृपया अपना दिमाग साइड में रख दें , और अपने बचपन की शरारतों भरी यादों में खो जाएँ :

 

काले किले का वो काला कलाल

भोलू के भाले में अटका वो बाल |

मामा के मोहल्ले का माल-पुआ

गुल्लू की गाली का गुलाब जामुन

पुणे के पानी को पीने को जाना

पान चबाकर वो पाना ले आना

गन को दिखाकर वो गाना तो गाना

गुनगुना के वो धुन…

Continue

Added by Rohit Dubey "योद्धा " on September 21, 2012 at 11:30pm — 12 Comments

कब आता है कल.....

अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,

घर पर आया तो कल की फिक्र में था,

बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,

पर वो उनसे बात भी न कर सका,

वो कल की जल्दी में था,



उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,

जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,

कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,

किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,

वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,



सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,

अपने कागजों को पढ़ा और…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 21, 2012 at 10:00pm — 1 Comment

वो बीते दिन फिर से वापस आयेंगे....

वक्त वक्त की बात है

वक्त तो बदल जायेंगे..

गर वक्त ने दिए हैं जखम

तो वक्त के साथ ही भर जायेंगे...…

Continue

Added by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 8:58pm — 1 Comment

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३२ (यूँ हो कर देखता हूँ बेबस मैं घर के जालों को )

यूँ हो कर देखता हूँ बेबस मैं घर के जालों को

कि शर्म आ जाती है शहरों में गुम उजालों को

 

गरीबोगुरबा की तमकनत तो है बस आँखों में

जो देखके आ जाती है ऐवाँ में रहने वालों को

 

मैं शाइरोफलसफी हूँ, तसव्वुर ही काम है मेरा

मैं ख़्वाबोंके सीमाब पैरहन देता हूँ ख्यालों को  

 

न दे मुझ को शराब न सही जो तेरी मरज़ी है

पे ये भी बतादे मैं क्या बोलूं सुबूओप्यालों को 

 

ख्वाह न हो कोई जवाब न कोई हल इस हाल

ज़माना देखेगा…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 8:20pm — 6 Comments

प्रेम अगन को बांधो कितना,..

लाख झूठ चाहे स्वर बोलें,

मौन मगर सच कह जाये |

प्रेम अगन को बांधो कितना,

धुँआ तो जग में रह जाये ||

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,

न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,

कैसे हाथों में रुक जाता||

तुम कई लगा लेना बंधन,

बहना है इसको बह जाये|

प्रेम अगन को बांधो कितना,

धुँआ तो जग में रह जाये||1||

बीज घृणा के बोने वाले,

भ्रम के कितने यंत्र करोगे|

जिस आश्रय में जीवित है जग,

क्या उसको परतंत्र…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 21, 2012 at 7:24pm — 5 Comments

सिपाही जंग के मैदान का...

सिपाही, दूर घर से खड़ा सीमा पर..

अपनी मातृभूमि की रक्षा को...

जो समर्पित है चिर काल से..

अपने देश के लिए अर्पण को..

सिपाही, जिसका घर सीमा पर बनी चौकियां हैं..

सिपाही, जिसका परिवार उसके साथ खड़े भाई हैं..

सिपाही, जो सर्द रातों में भी थकता नहीं है...

सिपाही, जो जेठ की दुपहरी में भी रुकता नहीं है...

वो सिपाही, जिसके लिए तिरंगा उसकी शान है...

सिपाही, जिसके लिए राष्ट्र, उसकी जान है...

सिपाही, जो छोड़ता नहीं…

Continue

Added by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 6:30pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मन क्षेत्र - आकाश सा विस्तृत

मन क्षेत्र  

आकाश सा विस्तृत... 

आकांक्षाओं के बिंब ,

बन 

भाव-बादल,  

करते 

कभी आहलादित  

कभी विकृत  

संपूर्ण अस्तित्व... 

बदल बदल स्वरूप 

बादल सम चंचल  

अस्…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on September 21, 2012 at 4:40pm — 8 Comments

वलवले

ये कैसी, अनहोनी होई |

दिल रोया, पर आँख ना रोई ||

चाहूँ लाख, जगाना उसको |

कम करे, तदबीर ना कोई || 

सब बेचारा, कह देते हैं |

जो लिखा है , होगा सोई ||

याद नहीं है, क्या बोया था |

दिल की बस्ती, बंज़र होई ||

अँधेरा है, कैसे ढूँढूँ |

यारो, अपनी किस्मत खोई ||

तन्हाई अच्छी, लगती है |

तन्हाई सा, मीत ना कोई ||

बन्ज़ारों सा, घूम रहा हूँ |

अपना पक्का, ठौर, ना कोई ||

कब अपने से, मिल पाऊँगा |

कब मेरा…

Continue

Added by Shashi Mehra on September 21, 2012 at 11:30am — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३१ (गुफ्तगूबराएऔरतको ज़मीनोबहर क्या)

दो कदम चलके रुक गए वो सफ़र क्या

जहां लौट के न जाया जाए वो घर क्या

 

जो नहो उसकी इनायत तो मुकद्दर क्या

कि बुरा क्या बद क्या और बदतर क्या

 

जो न जाए तेरे दरको वो राहगुज़र क्या

और जहां पड़े न तेरे कदम वो घर क्या

 

तेरे बगैर सल्तनत क्या दौलतोज़र क्या

जो नहुआ तेरा असीरेज़ुल्फ़ वो बशरक्या

 

देखती हैं यूँ हजारहा निगाहें शबोरोज़ हमें  

जो दिल को न चीर जाए वो नज़र क्या

 

ज़िंदगी जिस तरहा हो…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 11:53pm — 4 Comments

हम हो न सकते नीलकंठ

व्योमकेश !

हम हो न

सकते नीलकंठ ....

 गरल कर

धारण स्वयम

तुमने उबारा

संसृति को 

अमिय देवों

ने पिया

झुकना पड़ा

आसुरी प्रकृति को

थम गया

तव कंठ में ही

सृष्टि का विध्वंस

हम हो न सकते ....

साक्षी थे

तुम भी तो

विकराल मंथन के

सर्प सम संतति

समूची

तुम ही चन्दन थे

विष तुम्हें डंसता नहीं

देता हमें शत दंश

व्योमकेश!

हम हो न सकते......

दृष्टि तेजोमय तुम्हारी …

Continue

Added by Vinita Shukla on September 20, 2012 at 11:00pm — 19 Comments

स्वप्न !!

वो न्यारा सा आँगन .

वो प्यारा सा बगीचा



वो लह लहाते खेत .

वो दूर जाती पगडण्डी



वो सुबह शाम चिड़ियों का चहचहाना

वो सिंदूरी शाम गऊ माँ का रम्भाना



वो चंदा का रात में, धरती पे उतर के आना

वो बर्फ सी चांदनी तन-मन का सिहर जाना



अंधेरिया अंजोरिया के साथ हर पल का जुड़ जाना

वो स्वच्छ गगन में तारों का जग-मग टिम टिमाना



वो खपरैल कुशा से बने घर वातानुकूल

वो पेड़ों पर झूलों का सावन मे लटकाना



वो गेहूं चने की…

Continue

Added by Rajeev Mishra on September 20, 2012 at 10:30pm — 6 Comments

मौसम

हम चुप हैं के कहने से कुछ नहीं होता

बस ग़म निकलता है पर कम नहीं होता,

कल फिर हम दिल को संभालेंगे देखो

ये ग़म का मौसम कभी कल नहीं होता,

अच्छा है ये के प्यास क्या है हम नहीं जानते

साकी की मेहरबानी मेरा पैमाना कम नहीं होता,

हम बे घर तो नहीं फुटपाथ है अपना घर

हम घर बनाते हैं हमारा घर नहीं होता ,

अपने पराये का फ़र्क़ अब ख़त्म हो गया है

सब दर्द दे रहे हैं अब दर्द नहीं होता.

Added by प्रमेन्द्र डाबरे on September 20, 2012 at 10:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल-भावनाओं से खाली हृदय हो गये।

भावनाओं से खाली हृदय हो गये।
लोग हारे हैं पत्थर विजय हो गये।।

आँखें रह जाती हैं बस खुली की खुली
आज ऐसे भयानक दृश्य हो गये।

आदमी के लिये सिर्फ पृथ्वी नहीं
दूसरे भी ग्रहों के विषय हो गये।

न्याय की आस में बैठा है आमजन
अन्त आरोप उस पर ही तय हो गये।

प्रेम में पहले जैसी न गर्मी रही
रिश्ते खामोशियों में विलय हो गये।

प्रेम सम्बन्ध उनसे बनाओ “सुजान”
प्रेम से जिनके कोमल हृदय हो गये।।

  • सूबे सिंह “सुजान”

Added by सूबे सिंह सुजान on September 20, 2012 at 10:00pm — 7 Comments

तजुर्बा ए इश्क

वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों

जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,

क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों

इसी बहाने से वो  खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते  हैं,

मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का

इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,

क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद

इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,

सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से

वो नीदों  में…

Continue

Added by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 9:16pm — 11 Comments

तीसरी दुनिया !!! -सतीश अग्निहोत्री

उस दुनिया के लोग ..

इस दुनिया में .

चंद हैं …..

हाँ यह तीसरी दुनिया …

मुझे पसंद हैं ..

हाँ मुझे पसंद हैं ..

वो तमाम उन्मुक्त

अनंत उड़न ..जिसका ..

न कोई सानी…

न कोई …पहचान ..

...भावनाओ का उफान ,

कल्पनाओ का जहाँ ..

जीवंत जीवन ..की चाह..

कभी न ले सके …

कोई जिसकी थाह …

वो आदि अनंत …

देख सके जिसे हर संत ..

वो अविरल प्रवाह ..

वो आनंद का जहाँ ..

वो स्पन्दंमय वाणी…

Continue

Added by Satish Agnihotri on September 20, 2012 at 8:59pm — 12 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा : विरोध / गणेश जी "बागी"

लघु कथा : विरोध

यह तकरीबन रोज़ का ही किस्सा था कि कालोनी के बच्चे भोली भाली तूलिका का खिलौना छीन लेते और वह रोते-रोते घर आती और हर बार उसकी मम्मी समझा बुझाकर उसे शांत करा देती | आज शाम उसके मम्मी पापा बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे, तभी तूलिका भागी भागी घर आई और उसके पीछे रोते हुए राहुल को लेकर उसकी मम्मी भी आ पहुंची |

"देखिए बहन जी, आपकी बेटी ने मेरे राहुल को कितना मारा" राहुल के गाल पर पड़े चांटे का निशान दिखाते हुये राहुल की मम्मी बोलीं |

"तूलिका इधर आओ, तुमने…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 20, 2012 at 7:00pm — 31 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३० (हमने कब यह सोच कर लिखा कि जो लिखा वो कोई गज़ल है)

हमने कब यह सोच कर लिखा कि जो लिखा वो कोई गज़ल है

चलनेवालेकी मंजिलपे नज़र है, नकि वो हवाओं में या पैदल है

 

अंदाज़ेतसव्वुर ने बदले हैं तरीकाए-तालीम-ओ-फहम दौरेके दौर  

कल जोकोई होगा बढ़के असद वो आज फकत बाशक्लेहमल है

 

बंदिशेबह्र-ओ-रदीफ़ोकाफिए के बगैर भी हो सकते हैं कलामेपाक

अल्लाहने जो बनाई है ये कायनात वो इक वाहिद सौतेअज़ल है   

 

शह्रमें होती हैं बसाहटें मकानोकस्बाओबाजारोशाहराह, क्याक्या

पे जाँ पे दिललगे मेरा वो…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 6:00pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नवगीत - बारिश की धूप // सौरभ

बारिश की धूप



सूरज कर्कश चीखे दम भर

दिन बरसाती

धूल दोपहर.. .।



उमस कोंसती

दोपहरी की

बेबस आँखों का भर आना

आलमिरे की 

हर चिट्ठी से

बेसुध हो कर फिर बतियाना.. .



राह देखती

क्यों ’उस’ की

ये
पगली साँकल

रह-रह हिल कर…

Continue

Added by Saurabh Pandey on September 20, 2012 at 4:00pm — 22 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service