For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

मूक रूदन
सहमे लब, खामोश आखर..
हृदय क्रंदित 
सूखी मरू सम, नयन गागर..
रिक्ततामय
शून्य विस्तृत, श्याम सागर..
क्षुद्र लोभन 
डाह विषमय, मनस अंतर..
नव्य चेतन 
सृजन स्नेहिल, बरसे जलधर..
स्वर्ण सम फिर 
दिव्य दमके, पूर्ण भूधर..

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 10:50am

रचना की सराहना व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 3:02am

दार्शनिक संकेतों से भरपूर, उज्जवल भाव।

पढ़ कर मन आनन्दित हुआ।

 

सादर,

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 12:25pm

आपकी गुणग्राह्यता के लिए साधुवाद आ. प्रदीप जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 3:45pm

सिखने को मिलता है 

बधाई सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 12:29pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

आप तक रचनाओं का सूक्ष्म भी सहजता से पहुँच जाता है, इसलिए आपके द्वारा रचनाओं पर समीक्षा पाना सदैव ही नव ऊर्जा का संचार करता है, व लेखन उत्साह को बढाता है.... इस सूक्ष्म दृष्टि के साथ विवेचना कर बधाई सम्प्रेषण हेतु हार्दिक आभार .
मानव जीवन में व्याप्त एकाकीपन, डर, ख़ामोशी, रिक्तता, सबका मूल कारण इन्द्रिय ग्रस्त लोभन ही नज़र आता है... दिलों में निःस्वार्थ प्रेम ही नयी चेतना का संचार कर सकता है, जिससे सम्पूर्ण विश्व स्वर्णिम आभा से उज्जवल हो सकता है..... यही लिखना चाहा था, यह संप्रेषित हो पाया तो लेखनीं की सार्थकता है..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2012 at 10:56am

मानवीय अन्वेषी विचारधारा, भले हम उसे मनोवैज्ञानिक सोच की संज्ञा दे दें, भौतिक स्वरूप के सूक्ष्म-तत्त्व को छूता है जो वस्तुतः चार अवयवधारी अंतःकरण है. डॉ.प्राची, आपकी इस रचना में भौतिक स्वरूप में दीखते उदार विन्यास का कारण बड़े ही सांकेतिक रूप से हुआ है. सूक्ष्म वैसे भी संकेतों में ही व्याख्यायित हो सकता है.

आशा और निराशा के बीच असंतुलन में दीखती मनोदशा को आखिरकार प्रकृति आशा की किरणों से आच्छादित करती है, नव-सृजन संभावनाओं को जीवित रखता है, रचनाकार की दृष्टि से इन विन्दुओं को देखना भला लगा.

एक अलग तरह की रचना के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई, डॉक्टर साहिबा.  .. सादर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 9:29am

इस रचना पर आपकी सराहना और प्रोत्साहन  हेतु हार्दिक  आभार आदरणीय अरविन्द जी 

Comment by Arvind Chaudhari on September 30, 2012 at 9:48pm

बेहद ख़ूबसूरत कविता...शब्दों का सही इस्तेमाल


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

आपके अनुमोदन  हेतु आभार शालिनी कौशिक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

इस रचना के शब्द व भाव आपको पसंद आये , इस हेतु आपकी आभारी हूँ शिखा कौशिक जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
16 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service