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मुक्तक ~

व्यस्तता ,ज़िंदगी ,खेद है ,

आपका तो वचन ,वेद है,

हैं मधुर आप,हम खुरदुरे 

मित्र ,हम में यही भेद है !

*

दर्द के पुष्प आओ तजें,

हर्ष के पुष्प ही अब सजें,

एक स्मिति अधर पर धरें 

नेह की बांसुरी से बजें !

*

उनको दिखना है अब ,नहीं न ,

छुपते रुस्तम दिखे,कहीं न ,

मुक्त आकाश में…

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Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 10:47pm — 6 Comments

सूखे गुल की दास्ताँ.!

अश्क आँखों में औ

तबस्सुम होठो पे है



सूखे गुल  की दास्ताँ

अब बंद किताबो में है



बीते वक़्त का वो लम्हा

कैद मन की यादों में है



दिल  में दबी है चिंगारी

जलती शमा रातो में है



चुभन है यह विरह की  

दर्द कहाँ अल्फाजों में है



नश्वर होती  है  रूह

प्रेम समर्पण भाव में है



अविरल चलती ये साँसे

रहती जिन्दा तन में है



खेल है यह तकदीर का

डोर…

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Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में - वीनस

एक ताज़ा ग़ज़ल ...



चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में

 

पीटते हैं हम अपनी छाती…

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Added by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 9:30pm — 40 Comments

कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते 

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Added by sanju shabdita on July 3, 2013 at 9:00pm — 24 Comments

पुराना जब जाता है ....

ये सच है पुराना जाता नहीं 

तो नया आता नहीं 

पर पुराना जब 

टूट कर जाता है 

तो उसे बहुत याद आता है

कल तक जिस टहनी पर 

वह इतना इतराता था 

इतना ईठलाता था 

आज बेबस पड़ा है 

सड़कों पर आ खड़ा है 

जरा सी हवा आई 

और उड़ा ले गई 

कल तक जो हवा अपने 

आँचल सहलाती थी 

आज वही हवा 

उसे दर-बदर कर रही है

तकदीर बदलते 

देर नहीं लगती 

कल तक हरा

आज धूप मे पड़ा 

खड़खड़ा रहा…

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Added by Amod Kumar Srivastava on July 3, 2013 at 9:00pm — 6 Comments

!!! अभिनव प्यार !!!

!!!  अभिनव प्यार  !!!

 

प्रिया! जब तुम भूली,

तो मैं क्या लिखता ?

जब तुम थीं सब मेंरा था,

मैं याद भला क्या करता ?..... प्रिया! जब......



अब तुम नहीं पर प्यार तेरा,

मुझे बार बार दोहराता।

मैं भूल चला जीवन के पथ को,

स्मृति रोशन क्या करता ?...... प्रिया! जब...

पूर्ण अंधकार में इक जुगुनू,

इस झिलमिल जीवन को-

या अपनों से भूले रिश्तों का,

पथ प्रदर्शन क्या करता ?....... प्रिया! जब...

इस अभिनव प्यार संग,…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2013 at 7:52pm — 17 Comments

कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा

कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा

इस दौर में वो सख्स ही मंजिल को पा रहा

 

जितना नहीं है पास में उतना लुटा रहा

कितना अमीर है ग़मों में मुस्कुरा रहा 

 

अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें

वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा

 

कहने का शौक औ जुनूं उसका न पूछिए

बेबह्र भी कही ग़ज़ल वो गुनगुना रहा

 

शायद शहद झड़े है उसकी बात से यहाँ

इक झुण्ड मक्खियों सा क्यूँ ये भिनभिना रहा  

 

जब मुल्क में…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 3, 2013 at 5:46pm — 7 Comments

सुप्रभात दोहे 1.

सुप्रभात दोहों से मैं, करती हूँ आगाज |

अधर पर मुस्कान लिए,सरिता बोले आज||

नई सवेर ले आए ,रोज सुखद सन्देश |

पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||

आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|

पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||

चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी से झूमा दिल| 

सुबह संदेश आपका ,गया जैसे ही मिल||

बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |

थके बिन बढते रहना, मन में धारे राम||

सुबह सुहानी ले आई बरसात की फुहार |…

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Added by Sarita Bhatia on July 3, 2013 at 3:30pm — 9 Comments

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको

खुदाया जब भी दे रिज्के हलाल दे मुझको

नहीं मैं राई को पर्वत, न तिल को ताड़ कहूं

ज़ुबान  साफ़ औ' सादा  ख़याल दे  मुझको .

तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी

तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको

जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे

तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको

मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं

मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे…

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Added by Sushil Thakur on July 3, 2013 at 3:00pm — 12 Comments

हमसफ़र मेरा

बिछड़ा था हमसफ़र मेरा

अप्रैल की गर्मियों में 
मिले  न अब तक, 
उसके कोई निशान 
न आयी उसकी कोई चिट्ठी -खबर !!
.
गर्मियों से बरसात तक 
मिले जो राह में पदचिह्न मुझे 
उन पदचिह्नों को देख कर 
जाने कितनी बार अश्क बहाये  
कितनो के आगे रोया  
कही देखा है हमसफ़र मेरा !! 
.
उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे 
और थक रहा है बदन मेरा 
मगर मेरी…
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Added by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 2:00pm — 12 Comments

नियमों की सरहदें

नियमों की सरहदें

 

उलझी हुई मानवीय अपेक्षाओं से अनछुआ

तुम्हारे लिए मेरा काल्पनिक अलोकित स्नेह

किसी सांचे में ढला हुआ नहीं था,

और न हीं वह पिंजरे में बंद पक्षी-सा

कभी सीमित या संकुचित था लगा।

 

एक ही वृक्ष पर बैठे हुए हम

दो उन्मुक्त पक्षिओं-से थे,

कभी तुम चली आई उड़ कर पास मेरे,

और मैं गद-गद हो उठा, और कभी मैं

हर्षोन्माद में आ बैठा डाल पर तुम्हारी।

 

शैतान हँसी की हल्की-सी फुहार…

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Added by vijay nikore on July 3, 2013 at 1:00pm — 27 Comments

कुछ दोहे राहत के नाम ~~

उड़न -खटोले पर चढ़े, आये 'प्रभु' निर्दोष,

अपनी निष्क्रिय फ़ौज में जगा गए कुछ जोश !



राहत की चाहत जिन्हें उन्हें न पूछे कोय ,

इधर-उधर घूमे फिरे और गए फिर सोय !



भटक रहे विपदा पड़े, ढूंढ रहे हैं ठांव ,

ये अपने सरकार जी कब बांटेंगे छाँव ?



विपदा खूब भुना रहे सत्ता का सुख भोग,

भूखे,नंगे ,काँपते इन्हें न दिखते लोग !



श्रेय कौन ले जाएगा मची हुई है होड़,

जोड़-तोड़ के खेल…

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Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 11:15pm — 18 Comments

देवों की भूमि में जलजला

नजारा पहाड़ों का क्या हो गया ये |

गावों का देखो निशाँ खो गया है||

जो मुझको थे प्यारे कहाँ खो गये वो|

अभी तक थे जागे कहाँ सो गये वो||

मौतों का थमता न क्यों सिलसिला है|

ये देवों की भूमि में क्यों जलजला है||

 

जहाँ कल तक था जीवन अब मृत्यु खड़ी है|

जिधर जाती  नजरें  बस  लाशें  पड़ी हैं||

 

ये मानव की करनी कहाँ लेके आई|

अपनी ख़ुशी को ये दुनिया मिटाई||

 

पहाड़ों  से  चीखे  बेबस  जिंदगी …

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Added by Harish Upreti "Karan" on July 2, 2013 at 11:05pm — 12 Comments

ग़ज़ल - एक प्रयास

मेरा है तू दास रे जोगी
तेरे क्या है पास रे जोगी।

मौत हुई मेरी यहाँ पर क्यों
गहरा है ये राज़ रे जोगी।

शाम हुई मदहोश आज यहाँ
जैसे हो कुछ खास रे जोगी।

रहती है मेरी नज़र में तू
आँखों की इक प्यास रे जोगी।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Ketan Parmar on July 2, 2013 at 9:00pm — 13 Comments

मंजिल को पाने की चाह में

मंजिल को पाने की चाह में

इस कदर हम खो गए

मंजिल मिली मगर

तन्हा हम हो गए

 

रास्ते चलते रहे

फांसले बढ़ते गए

 

छूटते इस साथ को

हमने कभी चाहा था बहुत

 

वो हमारे थे मगर

अब किसी और के हो गए

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Pragya Srivastava on July 2, 2013 at 5:30pm — 9 Comments

सार/ललित छंद, प्रथम प्रयास ----- वेदिका

सार/ललित छंद १६ + १२ मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु गुरु अर्थात s s से,, छन्न पकैया पर प्रथम प्रयास / क्रिकेट विषय 

छन्न पकैया छन्न पकैया, टॉस करेगा सिक्का  

कौन चलेगा पहली चाली, हो जायेगा पक्का  ।। १ 

छन्न पकैया छन्न पकैया, कंदुक लाली लाली 

इक निशानची ठोकर मारे, गिल्ली भरे उछाली।। २ 

छन्न पकैया छन्न पकैया, बादल छटते जाये 

आँखों में है धूर…

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Added by वेदिका on July 2, 2013 at 5:30pm — 39 Comments

याद दिन हम को सुहाने आ रहे हैं

याद दिन  हम  को सुहाने आ  रहे हैं

फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं 

हमने घर अपनें बनाये रेत  पर जब

याद  वो  बचपन के मंजर आ रहे हैं

कोयलों  नें धुन  सुरीली  छेड़  दी है

गीत  भी    दीवानें  भौंरे    गा रहे हैं

कर  दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल

छोड़ कर  हम बज्म  सारी जा रहे हैं

माल  पूआ  खाए मुद्दत  हो गयी थी

ख्वाब में   देखा अभी  हम खा रहे हैं

आशु ये  महफ़िल हसीनो  से भरी…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2013 at 5:00pm — 13 Comments

मौसम की मनमानी

मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।

छाया बादल ये कैसा
दर्द दिया रूहानी है।

पावन है जग में सबसे
गंगा का ही पानी है।

जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।

तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Ketan Parmar on July 2, 2013 at 4:30pm — 15 Comments

धिक्कारो ऐसा नेता-

हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।

उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।

क्या मूरख मानव चेता ।।

विस्फोटों से तोड़ते, ऊंचे खड़े पहाड़ ।

हाड़ कुचलते शैलखंड, अपना मौका ताड़ ।।

ऐसे ही बदला लेता ।।

सरिता-झरना का करे, मनुज मार्ग अवरुद्ध ।

कुछ वर्षों में ही मगर, कर दे वर्षा शुद्ध ।।

जीव-जंतु घर बार समेता ॥

विजय होय बहु-गुणों से, किन्तु चेतना सून।

मार जाय लाखों मनुज, ज्यों तेरह का जून ॥

धिक्कारो ऐसा…

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Added by रविकर on July 2, 2013 at 11:11am — 11 Comments

लोकगीत



मेरे पिया गए परदेश रे 

ना मनवा लागे रे 

सावन आया 

ददुरबा बोले 

ददुरबा बोले ददुरबा बोले 

बादल गरजे तेज रे 

ना मनवा लागे रे 

चिठ्ठी आयी ना 

पाती आयी 

ना आया कोई सन्देश रे 

ना मनवा लागे रे

सोलह श्रृंगार 

ना मन को भाये 

मन को भाये न मन को भाये

भाये ना ये देश रे 

ना मनवा…

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Added by Devendra Pandey on July 2, 2013 at 11:00am — 13 Comments

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