वो लगातार स्टैंड पे टंगी बोतल से गिरती दवा की एक एक बूँद को गौर से देख रहा था ! नर्स ने काफी देर उसे ऐसा करते देखा तो उसके पास आकर पूछ बैठी !
"इन बूंदों को गिन रहे हैं क्या आप ? लगता है पर बूँद प्राइस निकालेंगे !"
"नहीं ,माँ के शरीर में जा रही है इसलिये दुआ मिला रहा हूँ !"
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by Neeles Sharma on October 20, 2014 at 6:00pm — 4 Comments
“माँ वो कोठी वाली मैडम हर दीवाली पर लक्ष्मी जी के पैर बनाती हैं तू क्यूँ नहीं बनाती? इसी लिए हमारे घर लक्ष्मी नहीं आती क्या?”रिक्कू ने बड़े भोलेपन से पूछा|
”बेटा, हमारे घर भी एक बार लक्ष्मी आई थी पर तेरे बापू ने दारु के लिए उसे बेच दिया अब वो कभी नहीं आएगी”|
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on October 20, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
हमेशा दौड़ में पिछड़ा रहा हूँ
मगर चिन्तन में मैं कछुआ रहा हूँ
खिलौना मैं नहीं जो खेल लोगे
हूँ इंसा मैं भी ये समझा रहा हूँ
सितम ढाओं, गुमां कर लो जी भर के
ये मत कहना कि मैं पछता रहा हूँ
मैं मुफ़लिस ही सही कोई नहीं गम
हमेशा दिल से ही सच्चा रहा हूँ
तेरी तस्वीर पलकों में सजा के
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on October 20, 2014 at 10:00am — 5 Comments
जाने किस तानेबाने मे उलझी, मैं अपनी खिड़की पे खड़ी थी।
इतने में मैंने देखा - एक सदाबहार का पौधा जो कि खिड़की की चौखट और दीवार की संद से निकल कर लहलहा रहा था ।
उसके हरे चिकने पत्ते प्याजी रंग के फूल मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, लेकिन दीवार में बरसात का पानी मरेगा , ये सोच कर मैंने उखाड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था, कि नीचे गली से आवाज आई-
"पौधे ले लो पौधे"
मैंने देखा-तो ठेले पर देसी गुलाब, इंगलिश गुलाब ,बोगन बेलिया ,एरोकेरिया पाम की विभिन्न किस्में रखी थी।
ये इंगलिश…
Added by Dr.sandhya tiwari on October 19, 2014 at 10:30pm — 8 Comments
कविता
कविता हृदय की सहचरी है
भावों से भरी हुई रस भरी है।
जिंदा दिलों की रवानगी है
कविता कवि की वानगी है ।
कविता अपने दिल से उदार है
कवि के भावों की चित्रकार है ।
समेटती कई रहस्यों को अपने में
संवेदनावों पर करती प्रहार है ।
उगती है कलम के साथ कागज पर
पहुँच इसकी हृदय के उस पार है ।
कविता माला है भावों और शब्दों की
शुष्क मन को भी करती तार-तार है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on October 19, 2014 at 10:00pm — 5 Comments
उत्सव लाये हैं ख़ुशी,खूब सजे बाजार
साथ मिठाई के सजे,भिन्न भिन्न उपहार |
रंग रूप लेकर नए ,चमक उठे सब गेह
उत्सव हैं सब गर्व के ,बाँटे खुशियाँ नेह |
उत्सव धनतेरस हुआ,त्रयोदशी के वार
नूतन बर्तन हैं सजे ,और स्वर्ण बाजार |
छोटी दीवाली जले,यम दीपक हर द्वार
मुक्त हुईं कन्या सभी,नरकासुर को मार |
उत्सव दीपों का सभी,मनाते संग प्यार
सबको बाँटे रोशनी ,दीवाली त्यौहार |
अन्नकूट उत्सव रचा, दीवाली पश्चात
भोग…
Added by Sarita Bhatia on October 19, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ
हरेक फूल को मैं कँवल लिख रहा हूँ
कभी आज पर ही यकीं था मुझे भी
मगर आज को अब मैं कल लिख रहा हूँ
बहुत कीमती हैं ये आँसू तुम्हारे
तभी आँसुओं को मैं जल लिख रहा हूँ
लिखा है बहुत ही कठिन ज़िंदगी ने
तभी आजकल मैं सरल लिख रहा हूँ
समय चल रहा है मैं तन्हा खड़ा हूँ
सदियाँ गँवाकर मैं पल लिख रहा हूँ
मैं बदला हूँ इतना कि अब हर जगह पर
तू भी तो थोड़ा बदल लिख रहा हूँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 19, 2014 at 5:30pm — 6 Comments
Added by seemahari sharma on October 19, 2014 at 4:34pm — 11 Comments
कहाँ गए वो लोग
औरों के गम में रोने वाले
संग दालान में सोने वाले।
साँझ ढले मानस का पाठ
सुनने और सुनाने वाले ।
होती थी जब बेटी विदा
पड़ोस की चाची रोती थी
फूल खिले किसी के आँगन
मिलकर सोहर गाने वाले
पाँव में भले दरारें थी
पर निश्छल निर्दोष हंसी
शादी के महीनो पहले
ब्याह के गीत गाने वाले
पूजा हो या कार्य प्रयोजन
पूरा गाँव उमड़ता था
किसी के घर विपत्ति हो
सामूहिक रूप से लड़ता था…
Added by Neeraj Neer on October 19, 2014 at 3:45pm — 8 Comments
दीपक जलाओ
मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
माटी बनूँ ! रूँध लो, गूँथ लो तुम
युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम
स्वर्णिम अगन से
जले प्राण बाती-
मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
ओढूँ विभा सप्तरंगी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 19, 2014 at 12:00pm — 12 Comments
"अगर पी.पी.एफ कि डिटेल्स मिल जाती तो मैं अपनी सम्पति का ब्यौरा दे देती ताकि वीज़ा मिलने में आसानी रहे |” श्रीमती धनकड़ ने कहा
“आप तो वी.आर.एस.लेकर वहीं सेटल होने वाली हैं ना ?” एक साथी ने पूछ लिया
“दिमाग थोड़े खराब है ! इतनी अच्छी सरकारी नौकरी,मूंगफली फोड़नी नहीं, घुमने-फिरने जाते रहेंगे | वैसे भी वहाँ के क़ानून बहुत सख्त हैं ,अपनी तो यहीं बल्ले-बल्ले है जी |”
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 19, 2014 at 9:30am — 3 Comments
कुत्तों की भोऊ-भोऊ,कोऊ-कोऊ, केए–केए से आवेशित हो कर अनुज बाहर आता है | पीछे छुपाए हुए डंडे को लेकर आगे बढ़ता है बाकी कुत्ते भाग खड़े होते हैं, पर आलिंगनबद्ध जोड़े के ऊपर तीन-चार डंडे भाज देता है | कराहता-चीखता-प्रतिरोध करता युग्ल कुछ दूर चला जाता है | खीझा हुआ अनुज अपनी पत्नी कि कोमल पुकार पर घर के भीतर हो लेता है | मोहल्ले के अन्य शर्मसार लोग भी अपने घरों के दरवाजें, खिड़कियाँ, बतियाँ बंद करने लगते हैं | बाहर स्ट्रीट-लाइट में युग्ल प्रतिद्वन्दियों के बीच, बेझिझक अपने प्रेम-अनुमोदन और सृजनीकरण…
ContinueAdded by somesh kumar on October 18, 2014 at 11:00pm — 4 Comments
"माँ ! आज मैं सुबह ही सभी के घर जाकर, दियो में बचे हुए तेल इकठ्ठा कर लाया हूँ,
आज तो पूड़ी बनाओगी ना? "
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on October 18, 2014 at 3:30pm — 14 Comments
Added by seemahari sharma on October 18, 2014 at 2:43pm — 8 Comments
1222- 1222- 1222
मुनव्वर शाम के रंगीं नज़ारों में
नुमायाँ फूल हों जैसे बहारों में
कहीं कम हो न जाये बज़्म की रौनक
लगा दो कुछ दिये भी चाँद तारों में
फ़रोग़े शम्अ महफिल में लगे है यूँ
झलकता हुस्न हो जैसे हज़ारों में
लकीरें धूप की झाँके दरीचे से
सवेरा छुप के बैठा है दरारों में
न जाने रंग कितने रोज़ भर जाये
ये नूरे शम्स झीलों कोहसारों में
हवा के सामने शिद्दत से जलती…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 18, 2014 at 8:59am — 12 Comments
“मोनू बेटा आज मालकिन ने 500 रुपया ईनाम दिए हैं ,चलो तुम्हें दिवाली के नए कपड़े दिलवा दें “माँ ने कहा
“माई ,हमे स्कूल कि ड्रेस दिवाए दो,प्रार्थना में गुरूजी अलग खड़ा कर देत हैं |”बच्चे के चेहरे पर संतोषभरी मायूसी थी |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 17, 2014 at 7:30pm — 5 Comments
नई नई शादी हुयी थी उनकीं। कुछ दिन दावतों वावतों का दौर चला फिर कुछ ख़ास दोस्तों ने कहना शुरू किया , " भाभी जी क्या बनाती हैं , कैसा बनाती हैं , कभी हम भी तो देखें। " जी , भाई साहब , क्यों नहीं , जरूर ", भाभी जी का सभी को यही जवाब होता था। फिर एक दिन उन्होंने पूरा भोज बनाया, कई तरह के पकवान बनाये , डाइनिंग टेबल पर सब सजाया , चारों एंगिल से उसकी फोटो खींची और फेसबुक पर डाल दी और लिख दिया , "सभी जानने वालों के देखने के लिए "
डेढ़ सौ लाइक आ गए और बहुतों ने कमेंट भी किया , " मजा आ गया…
Added by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
इक दिया चाहिए रोशनी के लिए
बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए
रोटी कपड़ा मकाँ की तरह साथियों
रौशनी लाज़मी हो सभी के लिए
वो भटकता हुआ इक मुसाफ़िर है ख़ुद
चुन रहे हो जिसे रहबरी के लिए
हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया
मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए
खैरियत से रहे सब हबीबो-अदू
मैं दुआ माँगता हूं सभी के लिए
मैं ग़मों को गले से लगाता रहा
लोग रोते रहे जब ख़ुशी के लिए
दोस्ती …
ContinueAdded by khursheed khairadi on October 17, 2014 at 3:00pm — 7 Comments
*रँग जीवन हैं कितने.
सुख अनंत मन की सीमा में,
दुख के क्षण हैं कितने ?
अभिलाषा आकाश विषद है,
है प्रकाश से भरा गगन.
रोक सकेंगे बादल कितना,
किरणों का अवनि अवतरण.
चपला चीर रही हिय घन का,
तम के घन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?
काल-चक्र चल रहा निरंतर,
निशा-दिवस आते जाते,
बारिश सर्दी गर्मी मौसम,
नव अनुभव हमें दिलाते.
है अमृतमयी पावस फुहार,
जल प्लावन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?
अनजानों की ठोकर सह…
ContinueAdded by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 11:29pm — 14 Comments
प्रेम अगन करती सदा, चेतन का विस्तार
रोम-रोम तप भाव-तन, धरे नवल शृंगार
मैं-तुम भेद-विभेद हैं, मायावी मद भ्राम
द्वैत विलित अद्वैत सत, चिदानन्द अविराम
सूक्ष्म धार ले स्थूल तन, पराश्रव्य हो श्रव्य
गुह्य सहज प्रत्यक्ष हो, सधें नियत मंतव्य
डॉ० प्राची
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Dr.Prachi Singh on October 16, 2014 at 11:00pm — 18 Comments
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