For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पैसों की बात (लघुकथा)

आज विधानसभा में मामला बहुत गर्म हो गया था। नेता विपक्ष के तो कपड़े तक फाड़ दिए। उनको धक्का-मुक्की में दो-चार थप्पड़-लात भी जड़ दिए गए।
"नेता जी, कल हमें आपका समर्थन चाहिए।"- मंत्री जी का फोन आया।
"कैसा समर्थन! हम कोई समर्थन-वमर्थन नहीं देंगें। कपड़े फाड़ने तक तो ठीक था लेकिन हमारी पिटाई भी हुई है।"- नेता जी ने नाराज होते हुए कहा।
"आपकी नाराजगी जायज है लेकिन कल अगर आपका समर्थन ना मिला तो हम सब की तनख्वाह ना बढ़ पाएगी।"
"अच्छा, पैसों की बात है! तो ठीक है हम मान जाते हैं लेकिन ये मत समझना हम अपना अपमान भूल जाएंगें।"
अगले दिन बिना किसी विरोध के पूर्ण बहुमत से तनख्वाह बढोत्तरी का प्रस्ताव पास हो गया।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 589

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 30, 2014 at 4:34pm

एक यही समय तो है जब दलगत  राजनीति से ऊपर उठकर एक स्वर  से प्रस्ताव  पारित कर अपने स्वयम के स्याम ही वेतन भत्ते बढाने के रास्ते  में  कोई रुकावट  पैदा नहीं करते |  पहले अपनी पेट पूजा  बाद में जनता का  ध्यान, फिर भी कहलाते जनप्रतिनिधि है |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 27, 2014 at 10:53pm

जो चाह है, वो पा ही लेते है. व्यापारियों सा दिमाग लेकर जो साथ चलते हैं. जनता बेवजह परेशान. बहुत बढ़िया लघुकथा, बधाई सर

Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:51pm
आदरणीया राजेश कुमारी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:49pm
आदरणीय सोमेश जी, सही कहा है आपने।
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:48pm
आदरणीय जवाहर लाल जी आभार
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:47pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी धन्यवाद
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:47pm
आदरणीया अर्चना जी धन्यवाद
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:46pm
आदरणीय योगराज जी, समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2014 at 9:21pm

जी हाँ माया की माया है ये इसका नाम  लेते ही अच्छे अच्छे घूम जाते हैं ऊपर से नेता हो तो बस !!! बहुत जबरदस्त कटाक्ष करती हुई लघु कथा ...बहुत खूब ..हार्दिक बधाई आपको  

Comment by somesh kumar on November 27, 2014 at 8:31pm

हर सत्र में यही दृश्य नजर आता है ,जब रेवड़ी बाँटने की बात आती है तो सारे लंगूर भाई-भाई |ये हर जगह लागू है चाहे संसद हो या कोई सरकरी अहोदे वाले कर्मचारी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
2 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
2 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service