For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

दम नहीं रहा मेरे यार मे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

212. 12. 212. 12.



दम नहीं रहा मेरे यार में

क्या रखा फिर जीत हार में (1)



कह रहा है वो मन को क़ैद कर

जो नहीं मिरे इख़्तियार में (2)



वस्ल की घड़ी ख़्वाब बन गई

उम्र कट गई इंतिज़ार में (3)



सुब्ह आएगा वो यक़ीन है

शब कटी इसी एतिबार में (4)



सामने मिरे भीख बट रही

रह गया खड़ा मैं क़तार में (5)



क्या ख़िज़ाँ ने ही दी है बद्दुआ

फूल मर गए इस बहार में (6)



धूप में सदा पूछते रहे

प्यास क्यों लगी रेगज़ार में… Continue

Added by सालिक गणवीर on June 20, 2021 at 10:54pm — 6 Comments

ग़ज़ल ( हो के पशेमाँ याद करोगे)

2222 - 2222 

हो के  पशेमाँ  याद  करोगे  

रो कर भी  फ़रियाद करोगे

याद करोगे जब भी हमको  

अश्क़ अपने बरबाद करोगे 

ज़ख़्म लगेंगे  जब फूलों से   

तुम हमको तब याद करोगे 

घर तो बसा लोगे यारो पर 

दिल  कैसे आबाद  करोगे 

उतनी दुआएं  दूँगा  तुमको 

जितना मुझे बरबाद करोगे 

बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा

जो  चाहे    इरशाद  करोगे 

मेरी ख़ातिर छोड़ो भी…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2021 at 9:00pm — 4 Comments

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है

सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।

*

वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही

आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।

*

मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब

माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।

*

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ

वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।

*

हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई

जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।

*

ये खेल ये…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments

मुहब्बत की हमारी आख़री मंज़िल तुम्हीं तो थे (134 )

ग़ज़ल ( 1222 1222 1222 1222 )
मुहब्बत की हमारी आख़री मंज़िल तुम्हीं तो थे
सफ़र भी तुम मुसाफ़िर तुम मक़ाम-ए-दिल तुम्हीं तो थे
**
अकेलेपन के साथी हो अभी तक याद में ढलकर
मुसीबत में ख़ुशी में बारहा शामिल तुम्हीं तो थे
**
हथेली की लकीरों को नुज़ूमी को दिखाते क्या
तुम्हीं कल थे हमारा और मुस्तक़्बिल तुम्हीं तो…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 17, 2021 at 8:30pm — 5 Comments

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221, 2121, 1221, 212

तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा

तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।

*

तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के

रोड़ा न अब  के  कोई  रवानी  में आयेगा।२।

*

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं

कब देश अपना यार  जवानी में आयेगा।३।

*

सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये

जब दौर सुनहरा  सा  किसानी में आयेगा।४।

*

देती…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments

इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे

केवल जगत  में  शौक  से  नेकी  बचा रहे।१।

*

हम को कहो  न  आप  गुनाहों का देवता

पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।

*

चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की

इस को  जरूरी  रात  में  कोई  जगा रहे।३।

*

माना बुरे हैं  दाग  भी हमको लगे हैं पर

वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।

*

अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो

अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।

*

झगड़ा न…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments

ग़ज़ल: उठाकर शहंशाह क़लम बोलता है

122 122 122 122

उठाकर शहंशह क़लम बोलता है

चढ़ा दो जो सूली पे ग़म बोलता है

ये फरियाद लेकर चला आया है जो

ये काफ़िर बहुत दम ब दम बोलता है

जुबाँ काट दो उसकी हद को बता दो

बड़ा कर जो कद को ख़दम बोलता है

गँवारों की वस्ती है कहता है ज़ालिम

किसे नीच ढा कर सितम बोलता है

बिठाता है सर पर उठाकर उसी को

जो कर दो हर इक सर क़लम बोलता है

बड़ी बेबसी में है जीता वो ख़ादिम

बड़ाकर जो…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 15, 2021 at 4:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की -ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा

ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा

यानी उस को पुकार कर जागा.   

.

एक अरसा गुज़ार कर जागा

ख्व़ाब में ख़ुद से हार कर जागा.

.

तेरी दुनिया बहुत नशीली थी

जिस्म को अपने पार कर जागा.

.

आंखें तस्वीर की बिगाड़ी थीं   

उनका काजल सुधार कर जागा.

.

ख़ुद-परस्ती में मैं उनींदा था  

फिर अना अपनी मार कर जागा.

.

शम्स ने तीरगी पहन ली थी

सुब’ह चोला उतार कर जागा.

.

रात भर आईने की आँखों में

दर्द अपने उभार कर जागा. …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 15, 2021 at 9:30am — 8 Comments

ज़ुबान कुछ शिकायती भी कीजिए कभी कभी (133 )

ज़ुबान कुछ शिकायती भी कीजिए कभी कभी
निज़ाम से तनातनी भी कीजिए कभी कभी
**
हयात के लिए हैं दोस्त ख़ुश्क़ अश्क पुरख़तर
फुगाँ की रस्म अदायगी भी कीजिए कभी कभी
**
विसाल और हिज्र के मज़े भी हैं जुदा जुदा
सुपुर्द-ए-हिज्र ज़िंदगी भी कीजिए कभी कभी
**
कशीदगी गमों से हम निभा…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 14, 2021 at 4:00am — 4 Comments

रूंद गया बचपन...

गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा

दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा

कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे

बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे

माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा

भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा

हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये

बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते

निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...

इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो

मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ…

Continue

Added by babitagupta on June 10, 2021 at 3:30pm — No Comments

नग़मा: दिल

1222 1222 1222 1222

अज़ीब इस दिल की बातें हैं अज़ीब इसके तराने हैं

अज़ीब ही दर्द है इसका अज़ीब ही दास्तानें हैं

अज़ीब अंज़ाम है इसका अज़ीब आग़ाज़ करता है

अगर जो टूट भी जाये तो ना आवाज़ करता है

कभी सुरख़ाब करता है कभी बेताब करता है

दिल ए नादाँ............. दिल ए नादाँ...........

दिल ए नादाँ हर इक ख़्वाहिश को ही आदाब करता है

ये करतब कितनी आसानी से यारो दिल ये करता है

कभी ये ज़ख़्म देता है,…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 10, 2021 at 10:23am — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की - दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें

दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें

चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?

.

एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ

चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.

.

हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका  

पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?

.

चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो  

मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.

.

इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं

ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments

आश्वासन

एक आयु के उपरान्त

प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना

गुज़रती साँसों को मानो

संजीवनी की बूटी से

साँस नई दे देना

स्नेह का यह फल मीठा

और अति आनन्ददायक था…

Continue

Added by vijay nikore on June 7, 2021 at 1:00pm — 8 Comments

कहता था हम से देश को आया सँभालने-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो

लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।

**

कहता था हम से देश को आया सँभालने

पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।

**

महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी

सेठों को  मुफ्त  बाँटता  हर दम ईनाम वो।३।

**

केवल उड़ायी  नींद  हो  ऐसा नहीं हुआ

सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।

**

समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी

करता है मन की  बात  बहुत बेलगाम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
पर्यावरण-दिवस के अवसर पर छ: दोहे // --सौरभ

आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात

छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।



मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..

बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!



सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..

लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!



जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर

तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर



फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप

उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप ! 

 

मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण…

Continue

Added by Saurabh Pandey on June 5, 2021 at 5:30pm — 10 Comments

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की

कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)

उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए

कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)

अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए

लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)

उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे

पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)

सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर

ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…

Continue

Added by सालिक गणवीर on June 5, 2021 at 9:00am — 10 Comments

कम है-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२

गीत में सद् भावना का ज्वार कम है

सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।

**

दे रहे  सब  सान्त्वना  पर  जानता हूँ

शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।

**

सिद्ध कैसे  झट  से  होगी  योग  माया

आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।

**

सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब

हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।

**

हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता

किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।

**…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा

लाया  मगर  अमल  में  अँधेरों  ने जो कहा।१।

**

बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।

**

देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है

जाना  अमर  है  सत्य  हवाओं  ने  जो  कहा।३।

**

सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये

आया असर  न  एक  दुआओं ने जो कहा।४।

**

इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को

सच कह रही है  देह  दवाओं ने जो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments

ग़ज़ल: लाओ जंजीर मुझे पहना दो

2122 1122 22

लाओ जंजीर मुझे पहना दो 

मेरी तकदीर मुझे पहना दो

तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है

मेरी तहरीर मुझे पहना दो

जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको

जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो

पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर

कोई तज़्वीर मुझे पहना दो

मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा

सारी ताजी़र मुझे पहना दो

आज आया हूँ मैं हक की खातिर

कोई तस्वीर मुझे पहना दो

मौलिक व…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 2, 2021 at 12:30pm — 9 Comments

ग़जलः

ग़जलः

2122 2122 2122 212

मुन्तज़िर थे हम मगर मिलना मयस्सर ना हुआ

वस्ल तो तय थी नसीबा पर हमारा ना हुआ

चाँद रातों में तड़पता वस्ल की खातिर कोई

वो मुहर लब पर हुई कब वो नज़ारा ना हुआ

चाँदी की दीवारें आड़े आईं आशिक प्यार के

मुफलिसों को प्यार का या रब सहारा ना हुआ

जो पहुँचना था हमें अफलाक की ऊँचाइयों,

रह गये बैठे जमीं कोई हमारा ना हुआ ।

टूटती साँसे रही मकतल बना अस्पताल अब,

ज़िन्दगी तेरा भरोसा…

Continue

Added by Chetan Prakash on June 2, 2021 at 11:30am — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service