For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

December 2012 Blog Posts (226)

सब तो यहाँ हैं अजनबी

हाँ प्यार से इकरार है

पर शिर्क से इंकार है

 

अब दिल में वो जज़्बा नहीं

बस प्यार का बाज़ार है 

 

मेरा ठिकाना क्या भला

जब बिक चुका घर-बार है…

Continue

Added by नादिर ख़ान on December 10, 2012 at 5:00pm — 6 Comments

पत्नी चालीसा

पत्नी चालीसा

जय जय जय पत्नी महरानी

महिमा आपकी किसी ने न जानी

जबसे घर में व्याह के आई

मची हुई हे खीचातानी

जय जय जय पत्नी महरानी

सास ससुर भये भयभीत

देवर ननद से जुडी न प्रीत

घर की बन बैठी तुम आका

फहरा दी हे विजय पताका

भोली भली दिखती थी आप…

Continue

Added by Dr.Ajay Khare on December 10, 2012 at 4:30pm — 7 Comments

ब्यूटी

ब्यूटी

मेरे आफिस में आई एक ब्यूटी

देख कर उसको, में भूल गया ड्यूटी

मुस्कुरा के किया उसने ,निबेदन

नोकरी के लिए सर, किया था आवेदन

पास किया हे सर, मेने शीघ्र लेखन…

Continue

Added by Dr.Ajay Khare on December 10, 2012 at 4:30pm — 6 Comments

समय// गीत

संगीत की विद्यार्थी हूँ ...संगीत से जुड़े कई शब्द मुझे जीवन के साथ चलते दिखते हैं | जो लोग  इन शब्दों के विशेषता से अनभिज्ञ हैं उनके लिए कुछ बताना चाहती हूँ  ..आशा करती हूँ इस सक्षिप्त व्याख्या से गीत समझने में आसानी होगी 

------किसी भी राग में षडज(स ) और  पंचम (प )स्वर अनिवार्य हैं जबकि रे,ग,म ,ध नी को वर्जित कर नए नए रागों की रचना की जाती 

........ वादी-संवादी राग के सबसे महत्त्वपूर्ण स्वर होते हैं 

-----विवादी स्वर…

Continue

Added by seema agrawal on December 10, 2012 at 2:30pm — 9 Comments

कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक

कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक।

रहेगी लब पे ग़रीबों के खामुशी कब तक॥

 

वरक़ पे आने को बेताब हो रहा है अब,…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 10, 2012 at 12:30pm — 7 Comments

बदलता मौसम ...

हवा में खुश्की बढ़ रही

पर ठण्ड आने में देर है

धूप के बिछौने पर बैठ कर

फुर्सत के दिन आने वाले है

छोटे छोटे दिन पंख लगा कर उड़ा करेंगे

नन्हे कदम रखता सूरज

कुछ देर से आया करेगा

और जल्दी जाया करेगा

जब राते लम्बी होंगी

तो

यादों के जंगल में अक्सर हम तुम मिलेंगे

लम्बी लम्बी बातें किया करेंगे

सुख दुःख भूलते

वो लम्हे जिया करेंगे

जिन्हें पोटली में बांध…
Continue

Added by rajluxmi sharma on December 10, 2012 at 12:15pm — 3 Comments

***(न सुना पाऊंगा) ***

हम उनके कर्ज़दार नहीं,वोह मेरे कर्ज़दार हैं

हम तो आज भी सर आँखों पे बिठाने को तैय्यार हैं

वोह चाहे तो आजमा ले, हम जीत जाएँगे

हमें अपनी दिल्लगी पे ऐतवार है



***(न सुना पाऊंगा) ***

 

जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बुझ जाऊँगा 

न करोगे तो कभी याद नहीं आऊँगा 

जलता 'दीपक'हूँ हवाओं से तो बु----



(1)धुँधली सी हो…

Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 10, 2012 at 12:00pm — 1 Comment

माँ जब तेरी याद आती है

माँ जब तेरी याद आती है,

बारिश में भीगा मैं जब जब

वो हिदायतें याद आती हैं 

तुमने दी थीं प्यार से मुझको…



Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 10, 2012 at 11:30am — 1 Comment

''जिंदगी के दो पहलू''

बाला साहिब ठाकरे के निधन पर इन पहलुओं का अहसास हुआ

1.

सुना है आज एक शेर मरा है

जिंदगी की जंग जीतकर

जन सैलाब उमड़ा

अश्रु सैलाब बहा

सबको अकेला छोड़

गया एक अनजान सफ़र पर..

लिए चंदन की खुश्बू,

फूलों का बिस्तर,

रंगीन चश्मा पहन,

जिसमें आगे का लक्ष्य

शायद सॉफ दिखाई दे

अपनी एक पहचान छोड़कर

एक मुकाम पर पहुँचकर

2.

एक मर गया बिन बुलावे के

सुनसान सड़क के

सुनसान किनारे पर

पत्थर तोड़ता वो शख्स

ना किसी…

Continue

Added by Sarita Bhatia on December 10, 2012 at 11:30am — 2 Comments

अर्द्धनास्तिक (लघुकथा)

आस्तिक के आ को ना में बदलने में उसे काफी वक़्त लगा था, ऐसा होने के लिए सिर्फ विज्ञान का विद्यार्थी होना ही सबकुछ नहीं होता। कई बार उसने खुद बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अपने अनुसंधान पत्रों को जर्नल्स में प्रकाशित होने के लिए भेजते समय, कभी गणेश, कभी जीसस तो कभी वैष्णोदेवी की तस्वीरों के आगे आँखें मूँदते देखा था। कुछ उसका मनन था, कुछ चिंतन, कुछ किताबें, कुछ संगत और कुछ दुनिया से उस अलौकिक शक्ति की ढीली पड़ती पकड़, जिन्होंने मिलजुलकर उसे दुनिया में तेज़ी से बढ़ रही इंसानी उपप्रजाति 'नास्तिक' बना…

Continue

Added by Dipak Mashal on December 9, 2012 at 7:39pm — 8 Comments

पल पल अपना रूप बदलता ,,,निशा निमंत्रण की खातिर ही

लाल गेंद बन उछल गया है ,

बाल सुलभ ज्यों किलक रहा है

कुछ पल ही में रूप बदलकर

अब यौवन में सिमट गया है

स्वर्ण सी आभा फ़ैल रही है

मिटटी स्वर्ण में परिणित होगी

रेनू जाल के सिरे पकड़ कर

दुर्बल काया भी चल देगी



संध्या की चादर हलकी है

मछुवारे के जाल के जैसी

खींच रही पल पल वो उसको

छिपना होगा निशा से पहले…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 9, 2012 at 2:03pm — 2 Comments

प्रतिबिम्बों में जी लूं पहले ....

प्रतिबिम्बों में जी लूं पहले ....

By Suman Mishra on Tuesday, 27 November 2012 at 13:25 ·

एक सत्य जो सबको दिखता,

एक सत्य प्रतिबिंबित सा है

वेगवान है जीवन पल पल

रुक थोड़ा तू दिग्भ्रमित क्यों है

जी लूं कुछ पल खुद को खुद में

कह लूं सुन लूं खुद से खुद मैं

एक बार मैं हंस लूं खुद पे

फिर पट…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 8, 2012 at 1:30pm — 5 Comments

मैं तृप्त नहीं .....क्यों

एक सतह इस धरती पर, धूल , फूल और वृक्ष हैं फैले

एक सतह मन के धरती पर, अंतस तक यादों के झूले

दूर दूर तक आँखों का ताकना, राह वही पर पथिक न मेले

गति और मति दोनों ही संग में , कहाँ किसे अपने संग ले लें ,



कितनी दूर चलोगे संग में वो अदृश्य जो हाथ बढाता

मैं उसकी वो मेरा प्रति पल, गहरा है…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 8, 2012 at 1:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

हम पेट भर नहीं सके अख़बार बेचकर।।
वो हो गये अमीर समाचार बेचकर।।।।

अरमान किसके मर रहे हैं,उनको क्या ख़बर,
वो आज कितने खुश हो गये प्यार बेचकर।।

कल उनके हाथों में दे दिये हमने अपने हाथ,
अब मारे-मारे फिरते हैं बाज़ार बेचकर।।।

अब ज़ालिमों को भी सज़ा मिलती नहीं कंही,
भगवान जैसे सो गये संसार बेचकर।।

हालात ने बदल दिया कितना हमें "सुजान"
हम बावकार हो गये किरदार बेचकर।।


सुजान........

Added by सूबे सिंह सुजान on December 8, 2012 at 12:30am — 11 Comments

स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ...

तुमको जब मैं संग न पाऊँ

व्याकुल मन कैसे समझाऊँ 

बेकल हो यह सोच रहा कैसे

तुझसे तुझको मैं चुराऊँ

मृदु भावों से कलम भरी है 

प्रीत भरी मन की नगरी है

धन वैभव प्रिय पास न मेरे 

शब्द बना मोती बरसाऊँ

मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं 

जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं 

स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही 

स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ

आठों पहर साथ हो तेरा 

जीवन का हर सांझ सवेरा 

नाम तेरे कर दूँ, सौरभ बन 

श्वांस में तेरी मैं घुल जाऊँ…

Continue

Added by praveen on December 7, 2012 at 11:00pm — 4 Comments

चंद शेर

बात कुछ भी तो कही होती
यकीनन वो सही होती।


रुख से पर्दा हटाना किसलिये
बात घर में ही रही होती।


रात में चांदनी को छेड़ा क्यों
संग लहरों के खेलती होती।


ख्वाब जब मखमली होने से लगें
नींद कच्ची कोई नहीं होती।

(लिखने की शुरुवात है, बस मन में आया लिख दिया)

Added by mrs manjari pandey on December 7, 2012 at 7:30pm — 5 Comments

नेता जी का फ़ोन

नेता जी का फ़ोन



नेता जी को फ़ोन लगाया घंटी बजी.

बात होने की उम्मीद जगी,

तभी कम्पुटर बोला

इस रूट की सारी लाइने ब्यस्त है

नेता जी मस्त है.

बात होने की आस न करे.

कृपया…

Continue

Added by Dr.Ajay Khare on December 7, 2012 at 5:00pm — 3 Comments

झेल रही है बेटियाँ

धरती माँ ही पालती, रख नारी का मान,

यही रहेगी संपदा, कर नारी के नाम ।

बहती नदी सी नारी, दूजे घर को जाय,

अपनावे ता उम्र ही, घर उसका हो जाय ।

ममता भाव की भूखी, केवल चाहे मान,

रुखी सूखी पाय भी, घर की रखती शान ।

झेल रही है बेटियाँ, अपना सब अपमान,

बाँध टूटता सब्र का, तुझे न इसका भान ।

नारी का सम्मान करे, तब घर का तू नाथ,

दूजे घर को छोड़ कर, पकड़ा तेरा हाथ ।

लड़के की ही चाह में, सहन किया है पाप,

भ्रूण हत्या पाप करे, झेले फिर संताप…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 7, 2012 at 11:00am — 12 Comments

कुछ हाइकु

आदरेया प्राची जी के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए मैंने फिर कुछ हाइकु लिखने का प्रयास किया है, आशा करता हूँ की आप सभी मार्गदर्शन करेंगे.

 …

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2012 at 11:00am — 8 Comments

ग़ज़ल - फकत शैतान की बातें करे है

वादा किया था कि जल्द ही कुछ पुरानी ग़ज़लें साझा करूँगा,,,

  एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ...






फकत शैतान की बातें करे है ?

सियासतदान  की बातें करे है !



अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,

वो रौशनदान की बातें करे है |…



Continue

Added by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 6:07am — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service