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आणविक अनुप्रस्थान लघु कथा
वेदना से संवेदना हो तो मानवीय प्रकल्प उपजता है ऐसा मेरा सोचना था , तुम क्या सोचती हो इसी विषय में मैं अनभिज्ञ था , फिर एक दिन तुम बिना बताये कहीं चली गई। आभास था जाओगी और वो आभास प्रकटतः घटित भी हुआ। मुझे लेकिन इस अजन्मे विरह का अभ्यास किंचित न था सो मैं खिन्नता से खिसियानी बिल्ली अर्थात बिल्ले सा भ्रमित मन से एकांत में उतर गया। अब तक अपने…
Posted on January 12, 2021 at 3:29am
छंदमुक्त काव्य
जिंदगी से जिंदगी लड़ने लगी है
आदमी को आदमी की शक्ल
अब क्यूँ इस तरह अखरने लगी है //
आँख में आँख का तिनका…
ContinuePosted on November 19, 2020 at 1:00pm — 1 Comment
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो
मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
प्रेरणा न बन सको तो कोई फरक नही
लेकिन किसी सन्मार्ग में कंटक तो न बनो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मै आज हूँ बस आज और अभी
गुजरे हुये पलो से मेरी तुलना तो न करो
भविष्य से मेरा कोई सम्बन्ध है कहा
वर्तमान को ही मैंने जीवन कहा
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो
मुझ से तो तुम बस सहयोग…
ContinuePosted on November 14, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
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