आदरणीय साथिओ,
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भागदौड़ भरी आजकल की जिंदगी में हम कुछ पाने की आशा में कितना कुछ खो देते हैं, इसका पता ही नहीं चलताI भौतिक सुख कोमल भावनात्मक नजदीकी का स्थान कभी नहीं ले सकता अत: आपने सही कहा है कि इसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकतीI लघुकथा न केवल प्रदत्त विषय को ही परिभाषित कर रही है बल्कि एक मार्मिक सन्देश देने में भी सफल रही है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है सीमा सिंह जीI
प्रिय सीमा जी, प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी सामयिक लघु कथा लिखी है पति पत्नि दोनों का काम करना बच्चे की जैसे तैसे परवरिश करना फिर एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करना यूँ ही बहुत कुछ हो रहा है आज कल |बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर प्रस्तुति पर |
आजकल की ज़िन्दगी में यही तो हो रहा है, माँ बाप बस मशीन बने हुए हैं, चाहे खुद के लिए या बच्चों के लिए| एक वर्तमान समस्या को इंगित करती बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
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