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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-19 (विषय:"पलायन")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 18 आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 19  में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-19
विषय : "पलायन"
अवधि : 30-10-2016 से 31-10-2016
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 अक्टूबर  2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2.  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आभार आद उस्मानी जी ,आद कबीर साहब जी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ह्रदय से धन्यवाद उत्साहवर्धन हेतू

मोहतरमा  बबिता  साहिबा ,प्रदत्त विषय को  परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

आद अहमद सर जी बहुत बहुत आभार व् नमन

सैनिक कभी भी पलायन नहीं करते, बहुत खूब| प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया रचना, बधाई आपको

पञ्च पंक्ति बेहद भावपूर्ण बनी है।बेहतरीन कथ्य चुनाव और उम्दा कथा।हार्दिक बधाई आदरणीया बबिता चौबे जी!
पाठकीय निवेदन:कई शब्दों में टंकण त्रुटि हैं,कारक/विभक्ति के प्रयोग पर समुचित ध्यान दिया जाना अपेक्षित है।सादर

क्या यह रचना अप्रकाशित नही है बबिता जी? 

                     पलायन (लघु कथा)

       विधुर चाचा की पालिता थी वह . उसे याद नहीं चाचा ने उसे कबसे पाला था . अब वह सत्रह वर्ष की हो गयी है.  इधर कुछ दिनों से उसे चाचा के रंग ढंग अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं . रात को शराब पीकर आता है और देर देर तक उसे घूरता है .कभी गाल सहलाता है . कभी शरीर पर हाथ फेरता है . वह सहम कर रह जाती है . एक दिन उसने दिल कड़ा कर कहा था - चाचू शहर जाकर कुछ काम करो . यहाँ की मजदूरी से अब पेट पालना मुश्किल हो रहा है और अब मेरी फ़िक्र मत करो , बड़ी हो गयी हूँ अकेले रह लूंगी . पर चाचू को अच्छा नहीं लगा था . वह बोला - तुझे अकेला छोड़ दूं  तो दुनिया हँसेगी मुझ पर . फिर मैंने अपने बापू को बचन दिया था कि अपने जीते जी घर की देहरी नहीं छोडूंगा . वह इसी उधेड़बुन में थी कि उस रात चाचू फिर शराब पीकर आया  और नशे की झोंक में या फिर जान बूझ कर उसके ऊपर भहराकर गिरा . उठने के प्रयास में उसने भतीजी के शरीर को कस कर दबाया . उसकी आँखों में आंसू आ गये .

‘चाचू,  तुमारी नीयत में शैतान है’- वह बिफर पड़ी .

‘वाह मेरी-- बिल्ली ---मुझी से ---म्याऊँ ? चाचू ने अटक-अटक कर कहा .

         नशा शायद कुछ ज्यादा था . कुछ ही देर में वह खर्राटे भरने लगा .पर भतीजी की आँखों में ज्वाला भरी हुयी थी , उसे नींद कहाँ ?. धीरे-धीरे मन को स्थिर कर उसने एक संकल्प लिया . अपने जमा किये हुए कुछ पैसे उसने अपनी ओढनी में बांधे . एक उचटती निगाह चाचू पर डाली और आगे बढ़कर धीरे से दरवाजे की सांकल खोली . बाहर निकल कर खुली हवा में उसने उन्मुक्त पक्षी की तरह स्वतंत्रता की सांस ली और अनिश्चित पथ पर एक जीवंत आशा लेकर बढ़ गयी . अचानक ही उसे लगा कोई  पीछे से आ रहा है, उसने पलट कर देखा . चाचू लड़खड़ाते क़दमों से उसकी और बढ़ रहा था . उसने अपनी गति तेज कर ली . जवान तो थी ही .हिरनी की भांति कुलांचे भरती शीघ्र वह दृष्टि से ओझल हो गयी .

         चाचू निराश होकर वापस लौट आया . ‘आजकल की छोकरियाँ’ - वह बुदबुदाया , देहरी पर आकर वह अचानक ठिठक गया . कुछ देर तक निर्निमेष दरवाजे को देखता रहा . फिर उसने कुंडी चढ़ाकर बाहर से ताला लगाया और भारी क़दमों से शहर की राह पर चल पड़ा .

 (मौलिक /अप्रकाशित )

मोहतरमा जनाब गोपाल नारायण  साहिब ,प्रदत्त विषय को  परिभाषित करती  सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,प्रदत्त विषय पर बहुत ही नपी तुली और सटीक लघुकथा लिखी है आपने,इस बहतरीन प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'पालिता' चतुराई से 'शोषिता' होने से बच कर पलायन तो कर गई , परन्तु किस दुनिया में? 'नीयत' और 'सीरत' का पलायन, 'नियति'व 'युवती' का पलायन ... वाह... बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। लेकिन लघुकथा संदर्भ में. सब कुछ इतना स्पष्ट कहना सही है या फिर इशारों में कहना? अंत में 'पलायन' ही करते रहने का संदेश सही है या कोई तीखा समापन उचित रहता? सोचने का विषय है। ........
बहुत सुंदर विषय को सार्थक करती कथा बधाई स्वीकारें

बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर लेकिन बाछी ने तो अपने को बचाने के लिए नै राह चुनी जो ठीक ही थी| बधाई आपको इस रचना के लिए  

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