For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181

परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 181 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा वरिष्ठ साहित्यकार स्वर्गीय गोपाल दास ‘नीरज’ जी की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
“तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए”
बह्र है फ़ायलातुन्, फ़ायलातुन्, फ़ायलातुन्, फ़ायलुन् अर्थात् 2122 2122 2122 212
रदीफ़ है ‘’चाहिए’’ और क़ाफ़िया है ‘’लना’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं गलना, पलना, चलना, छलना, जलना, ढलना, मलना, संभलना, उछलना आदि
उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
मूल ग़ज़ल:
है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए।


रोज़ जो चेहरे बदलते हैं लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उन का निकलना चाहिए।


अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए।


फूल बन कर जो जिया है वो यहाँ मसला गया
ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए।


छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शो'ला निकलना चाहिए।


दिल जवाँ सपने जवाँ मौसम जवाँ शब भी जवाँ
तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए।

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 26 जुलाई दिन शनिवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जुलाई दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 जुलाई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 836

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

2122 2122 2122 212
****
रात से मिलने को  दिन  तो यार ढलना चाहिए
खुशनुमा हो चाँद को फिर से निकलना चाहिए।१।
*
अजनवी सी राह भी है और हम भी अजनवी
पर सफर में दो कदम तो साथ चलना चाहिए।२।
*
मन की तन्हा झील में जब भी कोई पत्थर गिरे,
कुछ पुरानी पीर को भी फिर उछलना चाहिए।३।
*
चाँद जो सोया  हुआ  है  कश्तियों  के तीर पर,
एक साहिल उसकी तन्हाई को मिलना चाहिए।४।
*
रूह की गलियों में है इक अनबुझा-सा दीप जो,
इस जहाँ की हर हवा से बच निकलना चाहिए।५।
*
हैं खुली भयभीत इतनी बन्द तक होती नहीं
बन्द आँखों में कहीं तो स्वप्न पलना चाहिए।६।
*
मन में  गहरे  राज  हैं  जो  जानने को सब सजग
"तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए”।७।

*
मोह लेते नित "मुसाफिर" रास्ते बेढब मगर
मंजिलों के वास्ते भी मन मचलना चाहिए।८।
*
मौलिक/अप्रकाशित

रात से मिलने को  दिन  तो यार ढलना चाहिए
खुशनुमा हो चाँद को फिर से निकलना चाहिए।१।

इसकी प्रथम पंक्ति यूँ भी हो सकती है ‘रात के स्वागत में आखिर दिन तो ढलना चाहिये’। ऐसा करने से ‘यार’ शब्द की आवश्यकता नहीं रहती जो भरती का है।
*
अजनवी सी राह भी है और हम भी अजनवी
पर सफर में दो कदम तो साथ चलना चाहिए।२। खूबसूरत शेर हुआ।
*
मन की तन्हा झील में जब भी कोई पत्थर गिरे,
कुछ पुरानी पीर को भी फिर उछलना चाहिए।३। अच्छा शेर हुआ
*
चाँद जो सोया  हुआ  है  कश्तियों  के तीर पर,
एक साहिल उसकी तन्हाई को मिलना चाहिए।४।

शेर में ‘कश्तियों के तीर’ का प्रयोग उचित नहीं लग रहा है, तीर (किनारा) पानी का होता है।
*
रूह की गलियों में है इक अनबुझा-सा दीप जो,
इस जहाँ की हर हवा से बच निकलना चाहिए।५। खूबसूरत शेर हुआ
*
हैं खुली भयभीत इतनी बन्द तक होती नहीं
बन्द आँखों में कहीं तो स्वप्न पलना चाहिए।६। खूबसूरत शेर हुआ
*
मोह लेते नित "मुसाफिर" रास्ते बेढब मगर
मंजिलों के वास्ते भी मन मचलना चाहिए।८।

इसकी प्रथम पंक्ति में बेढब रास्ते द्वारा मोह लेना उचित नहीं लग रहा है।

 

आदरणीय,  क्षमा करे, किन्तु  "अजनवी" जैसा कोई  शब्द मैंने  पहली  बार  पढ़ा  है,  कृपया ग़ज़ल में इसका औचित्य स्पष्ट ज़रूर कीजिएगा !

आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। मतले पर आपका सुझाव सिरोधार्य है। अन्य इंगित मिसरों में बदलाव किया है , मार्गदर्शन करें-


चाँद जो सोया  हुआ  है गोद में लहरों की यूँ
एक साहिल उसकी तन्हाई को मिलना चाहिए।४।


मोहते हैं यूँ "मुसाफिर" रास्ते दिलकश मगर
मंजिलों के वास्ते भी मन मचलना चाहिए।८।

अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय हार्दिक बधाई

आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।

इस बार के तरही मिसरे को लेकर एक प्रश्न यह आया कि ग़ज़ल के मत्ले को देखें तो क़ाफ़िया 'अलना' निर्धारित होता है अत: तरही मिसरा ''तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए' में 'मिलना' शब्द से मिल रहे 'इलना' क़ाफ़िया को ईता दोष माना जायेगा। इस तरही में उदाहरणस्वरूप दिये गये क़ाफ़िया गलना, पलना, चलना, छलना, जलना, ढलना, मलना, संभलना, उछलना आदि हैं जो 'अलना' स्वर का पालन कर रहे हैं। ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि स्वीकार्य क़ाफ़िया शब्द क्या होंंगे लेकिन गिरह का शेर में अरूज़ के अनुसार ईता दोष रहेगा। इसी ग़ज़ल से अन्य कोई मिसरा तरही के लिये देना सरल होता लेकिन फिर भी ग़ज़ल से ऐसे मिसरे का चयन किया गया जो क़ाफ़िया पर चर्चा का कारण बन सके। 

एक अन्य प्रश्न तरही मिसरे में तनाफ़ुर ऐब को लेकर आया जो 'इस समय' में 'इस' के अंत में आये 'स' और 'समय' के आरंभ में आये 'स' के सामीप्य को लेकर है। तनाफ़ुर का दोष है या नहीं यह केवल किसी व्यंजन विशेष के सामीप्य मात्र से निर्धारित नहीं हो सकता है। इसी कारण इसे ऐब माने जाने पर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। मेरा मानना है कि अगर पूर्व के शब्द और बाद के शब्द को बह्र में स्वतंत्र रूप से पढ़ा जा सकता है तो तनाफ़ुर का प्रश्न उठाना प्रासंगिक नहीं है। 

आदरणीय तिलक जी नमस्कार 

बहुत बहुत आभार आपका ,ये प्रश्न मेरे मन में भी थे 

सादर 

आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। 'मिलना' को लेकर मेरे मन में भी प्रश्न था, आपके मार्गदर्शन से समाधान हो गया। इसके लिए आभार।

आ. तिलकराज सर,

मैंने ग़ज़ल की बारीकियां इसी मंच से और आप की कक्षा से ही सीखीं हैं।

बहुत विनम्रता के साथ कहना चाहता हूं कि गोपालदास नीरज जी के इस मिसरे में ग़ज़ल के परिपेक्ष्य में ईता दोष है।

सिर्फ़ चर्चा हो सके इसके लिए कोई पोस्ट तैयार की जा सकती थी अथवा कोई फोरम डिस्कशन किया जा सकता था लेकिन सबसे लोकप्रिय आयोजन में ऐसे त्रुटिपूर्ण मिसरे को देकर आप ने मुझ जैसे ग़ज़ल प्रेमियों को आज के आयोजन से दूर कर दिया।

मेरे मतानुसार तरही आयोजन ग़ज़ल पर चर्चा का माध्यम बाद में है, पहले ग़ज़ल कहने वालों को ग़ज़ल कहने हेतु प्रेरित करने का माध्यम पहले है।

साथ ही यह मंच की समृद्ध परंपरा और गरिमा से जुड़ा प्रश्न भी है।

आप से निवेदन है कि इसी ग़ज़ल का कोई और मिसरा दे दें ताकि सिर्फ गिरह का शेर बदलने से ग़ज़ल भी दोष से बच जाए और अन्य मंचों पर बातें भी न बनें।

शेष आपके विवेक पर छोड़ता हूं।

सादर

अभी तो तात्कालिक सरल हल यही है कि इसी ग़ज़ल के किसी भी अन्य शेर की द्वितीय पंक्ति को गिरह के शेर में ले लें "अलना" को काफिया लेते हुए। गिरह का शेर भर ही बदलना होगा। 

गिरह का शेर तो यूं भी किसी अन्य के मिसरे का उपयोग किए जाने के कारण ग़ज़ल को मुशायरे के बाद अंतिम रूप देते समय हटा कर इसका निराकरण किया जा सकता है।

मैं इससे सहमत हूं कि "मिलना" का उपयोग दोषपूर्ण है और ग़ज़ल से यह मिसरा उठाते समय मुझे यह उपयोग अखरा लेकिन फिर भी मेरे मन में यह विचार आया कि नीरज जी द्वारा इसका उपयोग किया गया तो मेरी समझ में इसका कारण यही रहा होगा कि अरूज़ का ज्ञान पूर्व में सहज उपलब्ध नहीं था और हिंदी में शायरी करने वालों द्वारा शब्दांत पर काफिया बांध जाता रहा है तो क्यों न इस पर मंच पर तरही के माध्यम से चर्चा ही कर ली जाए। इस पर अलग पोस्ट हो सकती थी लेकिन मैं देख रहा हूं कि अब जिनकी रुचि बची है वो अधिकांश संख्या में तरही पर ही उपस्थित होते हैं।

इसके बारे में बाद में आर पी शर्मा महर्षि जी ने अपनी पुस्तकों और आलेखों में बहुत सी बातें स्पष्ट की हैं जिनमें मूल शब्द के भी अंदर जाकर देखने की बात आई। यह बात ग़ज़ल की कक्षा में हुई काफिया पर चर्चा में स्पष्ट की गई है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
42 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
43 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
4 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
23 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service