For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

Views: 26073

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय बागीजी, गजल के लिए बधाई।

धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी.

 

मुस्कुरा कर बुला गया है मुझे

एक बच्चा रिझा गया है मुझे

सांस में जागी संदली खुशबू

कोई देकर सदा गया है मुझे

दीप बनकर जलूँ निरंतर मैं

जुगनू देकर दुआ गया है मुझे

दुःख मेरा दूजों से लगे कमतर

सब्र करना तो आ गया है मुझे

हक में उसके सदा जो रहता था

आइना फिर दिखा गया है मुझे

थी सराबों की असलियत जाहिर

फिर भी क्यूँकर छला गया है मुझे

अब शिकायत हवा से कैसे हो

कोई अपना बुझा गया है मुझे

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

मुहतरमा वंदना जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

'सांस में जागी संदली खुशबू'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'जागी साँसों में संदली ख़ुश्बू'

गिरह कमज़ोर है ।

हक में उसके सदा जो रहता था

आइना फिर दिखा गया है मुझे'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है ।

थी सराबों की असलियत जाहिर

फिर भी क्यूँकर छला गया है मुझे'

इस शैर का भाव भी स्पष्ट नहीं है ।

आदरणीय समर सर आपके मशविरे पर ध्यान दूंगी फिर भी अपनी कोशिश के बारे में कुछ निवेदन करना चाहती हूँ 

1. गिरह कमज़ोर है ।....

आदरणीय गिरह का भाव यह है कि जब इंसान अपने दुःख को दूसरों के दुःख से कम समझने लगता है तो वाकई सब्र की उच्चतर अवस्था में होता  है

2. 

हक में उसके सदा जो रहता था

आइना फिर दिखा गया है मुझे......

तिलस्मी आईने हमेशा सच नहीं दिखाते और किसी के हाथ में ऐसा आइना हो जो वो चाहे उसे दिखाए तो उसके हक में बात कहने वाला आइना हुआ और ऐसा व्यक्ति मुझे फिर वही दिखा गया है 

थी सराबों की असलियत जाहिर

फिर भी क्यूँकर छला गया है मुझे.....

मरीचिकाओं की असलियत पता होते हुए भी मुझे किस तरह छला गया है 

कोई भी रचना सार्थक तो तभी होती है जब वह पाठक तक पहुंचे यदि सफलता नहीं मिली तो उसे  मंच से हटा देना उचित होगा आदरणीय आगे कुछ बेहतर करने की कोशिश करुँगी 

मुहतरमा वंदना जी,आपकी बात का जवाब देने कुछ देर बाद हाज़िर होता हूँ ।

आ० वन्दना जी, आपकी बातों से ज़ाहिर होता है कि शायद आप समर कबीर साहिब के क़द से नाआशना हैं। उनकी किसी बात को हल्के में लेना और कुतर्क करना किसी भी रचनाकार को शोभा नही देता। आप ख़ुद को खुशकिस्मत समझें कि उन्होंने आपको इस्लाह इनायत फ़रमाई।

//आदरणीय गिरह का भाव यह है कि जब इंसान अपने दुःख को दूसरों के दुःख से कम समझने लगता है तो वाकई सब्र की उच्चतर अवस्था में होता  है//

तरही मिसरा"सब्र करना तो आ गया है मुझे" में "तो"शब्द पर ध्यान देने की ज़रूरत है ।

बाक़ी आपको बुज़ुर्गों की कही एक बात कहूँगा,कि शाइर अपने अशआर की तशरीह करता हुआ अच्छा नहीं लगता,इस बात पर आपको ग़ौर करना चाहिए,मैंने अपनी प्रतिक्रया बहुत सोच समझ कर दी है,और मुझे ऐसा लगा कि आप को वो अच्छी नहीं लगी,यही कारण है कि आपने क्रम से ग़ज़लों पर अपनी प्रतिक्रया दी और मेरी ग़ज़ल पर आकर आपने उससे आगे छलांग लगा दी ।

ओबीओ पर वही सीख पाता है जो आलोचना बर्दाश्त कर सकता है,आपके क़लम की धार ने मुझे प्रभावित किया है,और आगे आपसे बहुत सी आशा करता हूँ,उम्मीद है आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाते हुए एक ग़ज़ल का प्रयास और करेंगी,शुभ शुभ ।

अपनी रचना को डिफेंड करने में कोई बुराई नहीं है आदरणीया वन्दना जी। पर इस सन्दर्भ में हमें दो बातों का ध्यान रखना चाहिए :

1. हम किसके सामने ख़ुद को डिफेंड कर रहे हैं। 

2. डिफेंस हमेशा तार्किक होना चाहिए, भावनाओं के आधार पर नहीं।

आदरणीय समर कबीर सर ने एक और महत्त्वपूर्ण बात कही है जिसे हर एक शाइर को याद रखना चाहिए, "शाइर अपने अशआर की तशरीह करता हुआ अच्छा नहीं लगता।" निश्चित तौर पर आपमें बहुत पोटेंशियल है। उम्मीद है आप इन बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगी। सादर।

आदरणीया वंदना जी, 

गजल हो, छन्द हो या काव्य की कोई भी विधा हो, जब पाठकों के पास पहुँचती है तब वह रचनाकार की मात्र नहीं रह जाती। पाठक प्रस्तुत शब्द विन्यास से अपनी अपनी मति के अनुसार अर्थ समझने लगते हैं। इसीलिए भाव और शब्द विन्यास ऐसे होने चाहिए जो उसी रूप में पाठकों तक पहुँचे जिस रूप में रचनाकार ने सोचा है या जिस भाव में वह अपनी बात कहना चाहता है। इसके लिए साधना बहुत जरूरी होती है। यदि रचनाकार को अपने लिखे की व्याख्या समझानी पड़े तो मान लेना चाहिए कि रचना में जरूर कोई कमी है। ओपन बुक्स ऑनलाइन के वरिष्ठ जन बहुत अनुभवी हैं, इनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए। अच्छा रचनाकार वही हो सकता है जिसमें अपनी गलतियों को स्वीकार करने का गुण हो। जहाँ अभ्यास होगा, वहाँ गलतियाँ भी होंगी। और जहाँ गलतियाँ होंगी वहीं सुधार की संभावना भी होगी।

यह तो ऑनलाइन मंच है यहाँ परस्पर संवाद संभव है किंतु खुले मंच में पढ़ी गई रचना पर प्रश्न कौन करेगा ? श्रोताओं को कैसे समझाया जाएगा। उसी प्रकार से किताब, पत्रिका या अखबार में प्रकाशित रचना पर सभी पाठकों के विचार तो नहीं आ सकते। पाठकों को व्याख्या द्वारा समझाया तो नहीं जा सकता। 

ओबीओ से मैं लगभग 8-9वर्षों से जुड़ा हूँ। 2013 तक बहुत ही नियमित रहा। तत्पश्चात स्वास्थ्यगत तथा पारिवारिक कारणों से अब नियमित नहीं रह पाता तथापि गर्व से कहता हूँ कि मैंने छन्द लिखना यहीं सीखा, गजल पर थोड़ा बहुत प्रयास करना यहीं सीखा। विश्व का यह एक मात्र ऐसा मंच है जो यथार्थ में साहित्य के संस्कार देता है।

अतः निवेदन है कि व्याख्या की बजाय सुधार पर ध्यान केंद्रित हो तो यहाँ अपनी कलम को तराशा जा सकता है। 

 एकदम सत्य कहा आदरणीय. 

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है आ. वन्दना जी। वाह

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service