For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूल थी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    212
**
बचपने  में  चाँद  को  रोटी  समझना  भूल थी
कमसिनी में एक कमसिन से लिपटना भूल थी

**

तात  ने डाटा  किताबें  पढ़, मुहब्बत  में न पड़
तात से  इस बात  पर मेरा  झगड़ना  भूल  थी

**

कोख में जब मात ने  पाला न माना कुछ उसे
इक कली  के द्वार पर  माथा रगड़ना भूल थी

**

मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब
बेखुदी  में  डाल से  उसका  बिछड़ना  भूल थी

**

लूटता इज्जत भ्रमर नित दोष उसको  कौन दे
कह रहे सब क्यों कली का यूं सवरना भूल थी

**

मढ़  दिया  है  दोष  सर  पे  राहमारी  देखिए
राह से उसकी ‘मुसाफिर’ का गुजरना भूल थी

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2014 at 9:56am

आदरणीय भाई सौरभ जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 2:35am

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई. कई शेर उद्धृत किये जा सकते हैं.

शुभेच्छाएँ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2014 at 7:21am

आदरणीय भाई आशुतोष जी , ग़ज़ल की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2014 at 2:20pm

मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब
बेखुदी  में  डाल से  उसका  बिछड़ना  भूल थी..आदरणीय लक्ष्मण जी ..इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेष तौर से दाद कबूलें ..सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2014 at 11:05pm

आदरणीय भाई बृजेश जी उत्साहवर्धन के लिए आभार .

Comment by बृजेश नीरज on February 20, 2014 at 7:09pm

बढ़िया ग़ज़ल हुई है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2014 at 1:04pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी , आपका कहना उचित है ,इस पर मैंने अधिक मंथन भी नहीं किया था . इन त्रुटियों कि और ध्यान दिलाकर मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद . राहमारी राहजनी के ही सन्दर्भ में प्रयोग किया गया है . अन्य जगहों पर संशोधन किया है उस बारे में राय देकर मार्गदर्शन करें .पुनः आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2014 at 12:57pm

आदरणीय  आशीष भाई प्रशंसा के लिए आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 8:18pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय लक्ष्मणजी बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 18, 2014 at 5:32pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , शिल्प के लिहाज़ से ग़ज़ल अच्छी कही है , पर कुछ कमियाँ रह गई हैं , मेरी समझ मे --मतले मे ,           भर जवानी से  जो आप कहना चाह रहे हैं वो बात कह नही पा रहे हैं ॥

लूटता  इज्जत  पतंगा  दोष  उसको  कौन  दे
कह रहे सब क्यों कली का यूं सवरना भूल थी   ---- इस शे र मे बात  तार्किक नहीं लग रही है ------- पतंगा और कली  बात नही जम रही है , कली के साथ भौंरा  या पतंगा के साथ शमा , क्या सही नही लगेगा ॥ कली और पतंगा बे मेल नही है क्या ?

राहमारी , ये शब्द सही है ग़लत नही कह सकता , मै रहजनी  के अर्थ मे समझ पाया हूँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
13 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service