For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों के द्वार बंद होने से पहले

झुक आई है एक और शाम

ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए

कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले

लगते थे जो कभी

थे हमारे लिए नहीं

हर किसी और के लिए

खड़े हैं अब वही फ़ासले

वही फ़ैसले 

घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े

सवालों के उत्तर की प्रत्याशा

ले आती एक और गंभीर शाम

और फिर एक और   ...

मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा

पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं

लेकिन उस आखरी शाम

कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना

"मेरे प्यार, उदास न रहना तुम

घबराना न

मैं न बदलूँगी कभी"

वह एक छोटा-सा पल साथ मेरे

जागती रातों में निद्रा के प्रवाह-सा

बना रहा है बहुत लम्बा सहारा

जानता हूँ मैं कड़वे अकेले में अपने

जानती हो तुम भी वही गहरे में भीतर

आयु में हम बड़े हो रहे हैं

बूढ़े हो रहे हैं

फ़ासलों को तय करने के लिए

हम दोनों के पास

समय कब से अब कम हो रहा है

और चुभते फ़ैसलों के लिए भी

अवसर अब अकसर कम आ रहे हैं

ऐसे में किसी चौराहे पर अब

हमारे अचानक मिल जाने की वह

अकल्पनीय सुखद संभावना

साँझ की पीली आख़री किरण-सी

विलीन हो रही है

पर वह पुल जहाँ गंगा माँ को साक्षी बना

हमने चंद वायदे किए थे

वह पुल हमारे सपनों का बोझ संभाले

अभी भी खड़ा है

और बहते पानी की कलकल आज भी

दुहरा रही है हमारे वह वायदे

अब ढलती आयु में लगता है मुझको

हमारे वह सारे पूरे न हो सके

असमर्थ हुए वायदों की सीमा

यह गंगा का पुण्य तट है

आँखों के द्वार बंद होने से पहले

क्यों न प्रिय हम हमेशा के लिए

उन सभी वि्क्षुब्ध वायदों को आज

आहुति के समान

गंगा के पावन पानी  को अर्पित कर दें

                -------

-- विजय निकोर

( मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 5:56am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on April 25, 2021 at 9:20pm

आदरणीय मित्र समर कबीर जी, बृजेश कुमार जी और जान गोरखपुरी जी, 

मैं बहुत ही समय के बाद ओ बी ओ पर आया। आपकी प्रतिक्रियाएँ देखकर मन प्रसन्न हुआ, आभार, हृदयतल से आभार। मुझको अफ़सोस है कि इतनी देर से आभार प्रकट कर रहा हूँ। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 5:35pm

इस बेहतरीन हृदयस्पर्शी रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय विजय निकोर जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:53pm

आदरणीय निकोरे जी बहुत ही खूब भावर्ण रचना के लिए बधाई...सादर

Comment by Samar kabeer on February 13, 2021 at 7:14pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक शानदार रचना से नवाज़ा है आपने मंच को, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
19 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service