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प्रपात.....

मौन
बोलता रहा
शोर
खामोश रहा
भाव
अबोध से
बालू रेत में
घर बनाते रहे

न तुम पढ़ सकी
न मैं पढ़ सका
भाषा
प्रणय स्पंदनों की
आँखों में


भला पढ़ते भी कैसे
ये शहर तो
आंसूओं का था

घरोंदा
रेत का
ढह गया
भावों को समेटे
आँसुओं के
प्रपात से


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:26pm

आदरणीय नीलेश जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:26pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:24pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2018 at 8:02pm

आ. सुशिल जी,
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई 
सादर 

Comment by Neelam Upadhyaya on April 18, 2018 at 10:39am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत सुंदर कविता ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 17, 2018 at 8:18pm

आदरणीय सुशील सरना जी कम से कम शब्दों में आपने प्राण फूँक दिया बहुत अनमोल बात कह दी इसके लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by Sushil Sarna on April 17, 2018 at 6:46pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , प्रस्तुति के भावों को अपने आत्मीय स्नेह से पोषित करने का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on April 17, 2018 at 6:46pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 6:08pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,वाह बहुत ख़ूब, उम्दा कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 17, 2018 at 12:59pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत सुंदर और समसामयिक कविता।

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