For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इन्तिजार ....

दफ़्न कर दिए
सारे जलजले
दर्द के
इश्क़ की
किताब में

ढूंढती रही
कभी
ख़ुद में तुझको
कभी
ख़ुद में ख़ुद को
मगर
तू था कि बैठा रहा
चश्म-ए -साहिल पर
इक अजनबी बन के

मैं
तैरती रही
एक ख़्वाब सी
तेरे
इश्क़ की
किताब में

राह-ए-उल्फ़त में
दिल को
अजीब सी सौग़ात मिली
स्याह ख़्वाब मिले
मुंतज़िर सी रात मिली
यादों के सैलाब मिले
चश्म को बरसात मिली
भूल गयी ज़िंदगी
जीने का शऊर
लम्स रहे ज़िंदा
लबों को सहरा सी प्यास मिली
खोयी थी तुझमें
तुझसे मिलकर
खोयी हूँ तुझमें
तुझसे बिछुड़कर
दफ़्न कर दिये हैं वो सारे लम्हात
जिनमें जीने के लिए मरी थी मैं
अब जीने के लिए
मैंने
तेरे इश्क़ की
किताब का
वो सफ़ह
हमेशा के लिए हटा दिया
जिसकी पेशानी पे
लिखा था
इन्तिजार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम ... सृजन में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को मान देने एवं अपने अमूल्य सुझाव से सृजन में सुधार हेतु मार्गदर्शन करने का दिल से शुक्रिया। मैं संभोधित सृजन पुनः प्रेषित करता हूँ। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on April 19, 2018 at 2:42pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कुछ सुझाव हैं :-

'दफन'--"दफ़्न"

'इश्क'---"इश्क़"

'चश्म-ऐ----"चश्म-ए-"

'स्याह से ख़्वाब मिले'--"स्याह ख़्वाब मिले"

'वो सफा'--"वो सफ़ह:"

'इंतिजार'--"इन्तिज़ार"

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 10:30am

आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । खूबसूरत रचना के लिए बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on April 18, 2018 at 5:24pm

वाह एक बेहतरीन नज़्म हुई है आदरणीय सुशील सरना जी ।

खूबसूरती से निभाया है सर ।

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service