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गुस्ताखियाँ....

शानों पे लिख गया कोई इबारत वो रात की। 
...महकती रही हिज़ाब में शरारत वो रात की। 
......करते रहे वो जिस्म से गुस्ताखियाँ रात भर -
..........फिर ढह गयी आगोश में इमारत वो रात की।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 607

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Comment by Sushil Sarna on November 12, 2017 at 1:41pm

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra साहिब सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 11, 2017 at 2:31pm

खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील जी सादर

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:38pm

आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहिब, आदाब। ... सर सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:38pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मुक्त व्याख्या का दिल से आभार। अपने प्रयास को सराहा आपके तहे दिल से शुक्रिया। प्रयास करूंगा को अपने सृजन को अरूज़ में ढाल सकूं।

Comment by Sushil Sarna on November 9, 2017 at 7:37pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 9, 2017 at 12:08pm
आ. ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 5:37pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक को उर्दू में 'क़ित'अ'कहते हैं,और ये विधा भी ग़ज़ल की तरह अरूज़ की पाबन्द होती है,ग़ज़ल और इसमें फ़र्क़ सिर्फ़ इतना होता है कि ग़ज़ल का हर शैर इकाई का दर्जा रखता है और उसका संबंध दूसरे शैर से नहीं होता,और मुक्तक या क़ित'अ का उसूल ये है कि ऊपर की तीन पंक्तियों का सार अंतिम पंक्ति में आना अनिवार्य होता है,यानी एक बात जो हम कहना चाहते हैं,उसकी भूमिका में तीन पंक्तियां होंगी और चौथी में उस बात का निष्कर्ष होग, जैसे मिसाल के तौर पर एक क़ित'अ नरेश कुमार'शाद'का देखिये जो उन्होंने 'भर्तहरि'के अफ़कार के अनुवाद में लिखा :-
'नाक में लौंग तेरे नीलम की
नज़र आती है। दिलनशीं ऐसे
किसी चम्पा कली पे इक भँवरा
बैठ कर चूसता हो रस जैसे'
इस प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 8, 2017 at 7:59am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत अहसास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 8:45pm

 आदरणीय    Afroz 'sahr'  जी आदाब , मैंने इसे मुक्तक के रूप में लिखा है।  बाकी इसमें अहसासों की और जिस्मानी मीठी सी नोंक झोंक है। भावों को शब्दों में  ढालने का प्रयास भर है। आप आये , आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 8:35pm
आदरणीय सुशील जी ये कौन सी सिन्फ़ है । और आप क्या कहना चाहते हैं। अगर ये क़ताअ है तो कृपा कर इसके अर्कान लिखें यदि ये क़ताअ नहीं है तो इस सिन्फ़ ए सुखन से मुझे अवगत कराने का कष्ट करें। सादर,,,,

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