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लौट आओ .... 

बहुत सोता था
थक कर
तेरे कांधों पर
मगर
जब से
तू सोयी है
मैं
आज तक
बंद आँखों में भी
चैन से
सो नहीं पाया
माँ

जब भी लगी
धूप
तुम
छाया बन कर
आ गए
जब से
तुम गए हो
मुझे
धूप
चिढ़ाती है
छाया में भी
बहुत सताती है
पापा

डांटते थे
जब पापा
माँ
तुम मुझे
अपनी ममता में
छुपाती थी

डांटती थी
जब माँ
मुझे
पापा से
पैसे लेने पर
अधरों पे
हल्की सी
मुस्कान लिए
पापा
आप मुझे
अपने कांधों पर
उठा कर ले जाते थे

माँ
लौट आओ
मैं अब
पापा से
पैसे न लूँगा
पापा
अब लौट आओ
मुझे तुम्हारी
डांट
बहुत प्यारी है

सुशील सरना

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2017 at 5:15pm
अनुपम भावों की अभिव्यक्ति हुई है रचना..ढेरों बधाइयाँ आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:25pm

माँ -पिता की कीमत उनके न होने पर ही पता चलती है बच्चों को , हक़ीकत के बहुत क़रीब है आपकी कविता . हार्दिक बधाइयाँ , आदरनीय सुशील भाई जी ।

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:44am
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन, बेहद भावुक रचना लिखी आपने। कोटिश बधाइयाँ इस सृजन पर आपको।
Comment by vijay nikore on August 23, 2017 at 4:01pm

 माता-पिता के प्रति बहुत ही सुन्दर, मार्मिक भावपूर्ण रचना। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Ravi Shukla on August 23, 2017 at 10:21am

आदरणीय सुशील जी मॉं की अनुपस्थिति को रेखांकित करती कविता के लिये हार्दिक बधाई निवेदित है । सादर

Comment by Mohammed Arif on August 23, 2017 at 8:00am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सुंदर भावों का गुलदस्ता पेश किया । माता-पिता जीवन के आधार स्तंभ होते हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on August 22, 2017 at 10:23pm
जनाब सुशील सरना साहिब आदाब,बहुत सुंदर भावुक कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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