For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है गिला, तो गिला कीजिए(गजल)/सतविन्द्र

212 212 212
बात जो हो कहा कीजिए
दिल में ही क्यों रखा कीजिए?

चार दिन की है ये जिंदगी
बस ख़ुशी से रहा कीजिए

जो बुराई करे आपकी
आप उसका भला कीजिए।

रूठना बात अच्छी नहीं
है गिला, तो गिला कीजिए

मिल गये जब जरूरत हुई
बे ग़रज भी मिला कीजिए।

टूटता वो अकड़ता है जो
वक्त आए झुका कीजिए।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 7:59pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , छोटी बहर मे , अच्छी गज़ल कही है आपने । आदरनीय समर भाई की सलाहों पर अमल कीजियेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 3:49pm

आदरणीय सतविंदर जी बढ़िया सन्देश देती इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 8:42am

आ. सतविंदर जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ...सभी बातें समर सर ने कह ही दी है ..फिर भी 
.
जो अकड़ता वही टूटता....ये मिसरा अधूरा सा है. एक अदद है कि कमी है इसमें ...
ग़ज़ल के लिये बधाई 
सादर 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 4, 2017 at 10:17pm
आदरणीय समर कबीर जी,आपका टिप्पणी का इंतज़ार रहता है,देखिये आते ही आपकी पारखी और बारीक।नज्र ने कमियों को पकड़ा है,आपकी इस्लाह दुरुस्त है,उसी के अनुसार परिष्कार कर रहा हूँ,सादर हार्दिक आभार संग नमन!
Comment by Mohammed Arif on May 4, 2017 at 8:12pm
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास । मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । आली जनाब समर कबीर साहब की टिप्पणी पर ग़ौर करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 4, 2017 at 6:41pm
छोटी बहर की प्यारी ग़ज़ल..आदरणीय समर जी की टिप्पड़ी शिक्षाप्रद है..
Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 6:12pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के दोनों मिसरों में 'दिल'शब्द भला नहीं लगता,एक तो छोटी बह्र में वैसे ही गुंजाइश कम होती है,हालांकि ये कोई ऐब नहीं है लेकिन इससे पाठक पर अच्छा तास्सुर नहीं पड़ता,इसलिये बचना चाहिये, उम्म्मीद है आप मेरी बात समझ गये होंगे ।

'जो बुरा कर रहा आपका
उसका भी बस भला कीजिये'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में 'भी बस'भर्ती के शब्द हैं,इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-
'जो बुराई करे आपकी
आप उसका भला कीजिये'
'मिल लिए जब ज़रूरत हुई
ऐसे भी तो मिला कीजिये'
इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, ये शैर और साफ़ हो सकता है :-
'मिल गए जब ज़रूरत हुई
बे ग़रज़ भी मिला कीजिये'
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 4, 2017 at 3:17pm
आदरणीय गुरुप्रीत सिंह जी,अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया!
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 4, 2017 at 10:23am

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय सतविन्द्र जी..., सभी अशआर अच्छे लगे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service