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बढ़ रहा दर्द है औ दवा कुछ नहीं/सतविन्द्र कुमार राणा

212 212 212 212
बढ़ रहा दर्द है औ दवा कुछ नहीं
फिर भी होठों पे तेरे दुआ कुछ नहीं।

मर मिटा एक मुफ़लिस किसी शौक से
पर अमीरी नजर में हुआ कुछ नहीं।

हौंसलों से बनें काम सब जान लो
बुज़दिली से कभी तो बना कुछ नहीं।

बस तग़ाफ़ुल तेरा है बड़ा कीमती
इश्क से वास्ता अब रहा कुछ नहीं।

काम आलिम का होता बड़ा साथियो
सीखना उन बिना तो हुआ कुछ नहीं।

ज्यों जिए जा रहे बढ़ रही हसरतें
*जिंदगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं।*

हर तरफ इस कदर मच गयी खल बली
अब बड़े छोटे में फासला कुछ नहीं।

सब्र राणा हुआ धन बहुत ख़ास है
जान लो ये सभी जर बड़ा कुछ नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:55pm

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय राणा जी। दाद कुबूल करें।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 26, 2016 at 6:20pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल बधाई
Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:33am
जनाब स्तविन्द्र कुमार 'राणा'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 25, 2016 at 11:45am

आदरणीय सतविंदर साहिब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 24, 2016 at 4:19pm
आदरणीय सतविंदर कुमारजी सुंदर गजल की हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं। अच्छी गजल हुई है।
Comment by Shyam Narain Verma on November 24, 2016 at 1:08pm
हार्दिक बधाइ स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । सादर ।

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