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कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

मैं कैसे कर्ब से तकलीफ़ से गुज़रता हूँ
कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

तमाम टैक्स चुकाता हूँ ज़िंदा रहने के
प शाईरी का अलग से लगान भरता हूँ

यही सबब है ,मुझे कम ही लोग जानते हैं
मैं इन फ़ुज़ूल की रुसवाईयों से डरता हूँ

अज़ल से आज तलक सिलसिला ये जारी है
मैं रोज़ जीता हूँ दुनिया में रोज़ मरता हूँ

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by दिनेश कुमार on June 2, 2015 at 11:44pm
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय कबीर सर जी, वाह वाह
अज़ल से आज तलक सिलसिला ये जारी है
मैं रोज़ जीता हूँ दुनिया में रोज़ मरता हूँ..... लाजवाब, सर
ढेरों दाद व मुबारकबाद सर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2015 at 1:49pm

ग़ज़ल अपनी जगह, जो बहर आपने ली है  -- फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन--  इस बहर पर कई मिसरे चढ़ने से बाज़ आ रहे हैं, आदरणीय. या मुझे ही समझ में नहीं आ रहा है ?

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 2, 2015 at 1:27pm

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ
बहुत खूब, सुन्दर, आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार, बधाई, सादर।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:00am

लाजवाब शेर सभी ...सादर 

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ................वाह वाह ...

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 1, 2015 at 10:29pm

वाह! वाह! वाह! आ० समर सर! जिंदाबाद गज़ल हुयी है! हार्दिक बधाई

अज़ल से आज तलक सिलसिला ये जारी है
मैं रोज़ जीता हूँ दुनिया में रोज़ मरता हूँ            ग़जब!!ग़जब!!ग़जब!!

तमाम टैक्स चुकाता हूँ ज़िंदा रहने के
प शाईरी का अलग से लगान भरता हूँ               लाजवाब!

Comment by maharshi tripathi on June 1, 2015 at 8:16pm

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ,,,वाह वाह ! बहुत  खूब आ. Samar kabeer जी |

Comment by narendrasinh chauhan on June 1, 2015 at 3:57pm

यही सबब है ,मुझे कम ही लोग जानते हैं
मैं इन फ़ुज़ूल की रुसवाईयों से डरता हूँ बहोत खूब लाजवाब

Comment by Shyam Narain Verma on June 1, 2015 at 3:20pm
सुंदर भावों की सुंदर गजल   … हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 12:28pm

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ------------------------------इरशाद ! बधायी हो .

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