For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लोग मिलते हैं ...........'जान' गोरखपुरी

2122  2212  1222

लोग मिलते हैं अक्सर यहाँ मुहब्बत से
दिल हैं मिलते यारब बड़े ही मुद्दत से।

आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।

कोई होता है किस कदर अदाकारां
हम रहे इक टक देखते सौ हैरत से।

उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़े ही इज्जत से।

लबसे तेरे हय शोख़ गालियाँ जाना
बस रहे हम ता-उम्र सुन ते लज्ज़त से।

बारहाँ पटके है उसी के दर पे सर
बाज आये ना हम खुदाया उल्फ़त से।

********************************************
मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
********************************************

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 6:50pm

आदरणीय कृष्णा भाई , ग़ज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

बस मिसरों मे स्वाभाविक प्रवाह नही लग रहा है , बह्र को किसी तरह निभाने की कोशिश दिख रही है , मेरे ख़्याल से आपको गज़ल को और समय देना चाहिये था , पोस्ट करने  से  पहले । 

बड़े मुद्दत या बड़ी मुद्दत ?  अदाकारां या अदाकारा , ?  शर्मसां  या शर्मसार ,बारहाँ  या बारहा । ज़रा देख लीजियेगा ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:24pm

अच्छी गजल रचना  के लिए बधाई श्री कृष्ण मिश्रा "जान गोरखपुरी" जी 

Comment by Shyam Narain Verma on March 19, 2015 at 11:19am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
Comment by maharshi tripathi on March 18, 2015 at 10:24pm

आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।,,,,वाह !! आ. बड़े भाई  krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी ,,खूबसूरत गजल पर ढेरो बधाई आपको |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 8:47pm

सुन्दर  गजल

बधाई हो . स्नेह .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:44pm

 भाई कृष्ण मिश्रा जी,

बारहाँ पटके है उसी के दर पे सर
बाज आये ना हम खुदाया उल्फ़त से।...बहुत बढ़िया , हार्दिक बधाई !

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 8:27pm

आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी,

दिल को छू गई .बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 8:11pm
उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़ी ही इज्जत से।
बहुत सुन्दर , आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी, बधाई, सादर।
Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 6:25pm

वाह वाह .. सुन्दर भाव .. मनमोहक रचना हुई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
16 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service