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तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही

जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही
....
ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही
....
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
....
नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही
....
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 11, 2015 at 10:35am

बहुत सुन्दर ! आदरणीय उमेश भाई , बधाइयाँ ॥

Comment by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 10:29pm

जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही....वा..ह उम्दा मतला 
....
ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही.......क्या बात है सर जी ....लाज़वाब कहन 
....
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही...........वा..ह वा..ह ....कुर्बान उमेस जी ..क्या काफ़िये के साथ शेरीयत क संगम है 
....
नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही.......बहुत खूब 
....
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही..........आपकी इस ग़ज़ल ने तो दिल के द्वार पर दस्तक दे दी है साहब....बहुत बहुत बधाई आपको ...एक बेहतरीन ग़ज़ल हुईं है |सादर अभिनंदन | 

Comment by ajay sharma on March 9, 2015 at 10:35pm

umda ....ashaar hai ...

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 9, 2015 at 9:38pm

न्दर ग़ज़ल हुई आ० उमेश जी बहुत बधाई .....................

Comment by Hari Prakash Dubey on March 9, 2015 at 9:30pm

बहुत खूब ,

कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही.......हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय उमेश कटारा जी !

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 9, 2015 at 6:18pm

चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही

वाह! क्या बात है आ० उमेश जी बधाई!

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 5:41pm

आ.कटारा जी इस अच्छी गजल पर आपको बधाई|

Comment by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:33pm

Aadarniya Katara Ji,

Dil ko chune wali rachana ke liye badhai.


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Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 2:24pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० उमेश जी मतले में सी रही कर दीजिये और चौथे शेर में भी सी रही कर दीजिये ग़ज़ल में चार चाँद लग जायेंगे 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 9, 2015 at 1:14pm

प्रिय कटारा जी

बेहतरीन गजल  पर रदीफ़ में थोड़ी सी चूक i सादर i

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