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दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,

क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,

स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,

पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,

जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो गए.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2014 at 10:43am

आदरणीय रवि सर क्या कहूँ निःशब्द हूँ आपने जिस सुन्दरता के साथ टिपण्णी की है मन प्रसन्न हो उठा हृदयतल से आपका हार्दिक आभार. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2014 at 10:41am

आदरणीय निलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:35am

आदरणीय अरुण अनंत भाई , क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ॥

क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वे बद से बदतर हो गए. --------------- इन तीनो अश आर के लिये ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:40pm

स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए, 

वाह लाजवाब अशआर हैं आदरणीय अरुण भाई सादर बधाई स्वीकार करें

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 8, 2014 at 10:45am
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
सत्य के पक्ष में होना सबसे बड़ी चुनौती है .
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आ o अरुण अनंत जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:38am

नहीं होती है हलचल जब,तो बरसों तक नहीं होती

मगर होती शुरू है तब , गज़ल बनती ही जाती है ................

सुप्त ज्वालामुखी के जागने की शुभकामनायें.....

सामयिक परिदृश्यों पर सटीक गज़ल कही...........

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए................वाह !!!!!!!!!!!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 8:45pm

अरुण जी ..पाठक को बांध देने वाली रचना ..सुंदर प्रतीकों के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य में बदले मानवीय हालातो को रचना के मध्याम से पाठको तक पहुचाने में आप शत प्रतिशत सफल रहे है किसे शेर बिशेस की बात करना ग़ज़ल के साथ बेमानी होगी ..इस अप्रतिम रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 7:11pm

आ0 अरून अनन्त भाईजी,  बहुत सुन्दर गजल हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 6:25pm

अरुण जी

रवी जी ने विस्तार से प्रकाश डाला है i मै भी मुरीद हुआ i

Comment by shalini rastogi on July 7, 2014 at 6:23pm

समयानुरूप व सार्थक ग़ज़ल .. हरेक शेर अपने आप में सम्पूर्ण है .. बधाई !

कृपया ध्यान दे...

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