For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - - दर्द मै अपना दबा भी लूँ - ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122      2

दिन टपक के सूख जाता है

हाथ में कुछ भी न आता है

 

मै पराया , वो पराया है

कौन किसमें अब समाता है ?

 

ग़म हक़ीक़ी भी मजाज़ी भी

देख किसको कौन भाता है  

 

दर्द मै अपना दबा भी लूँ

ग़म तुम्हारा पर रुलाता है

 

खार चुभते जो रिसा था ख़ूँ

रास्ता वो अब दिखाता है

 

सूर्य तो ख़ुद जल रहा यारों

वो किसी को कब जलाता है

 

ख़्वाबों में आ आ के शिद्दत से

गाँव तो अब भी बुलाता है

 

तू न अब मायूसियाँ ही देख 

देख कोई मुस्कुराता है  

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 7, 2014 at 5:34pm
"खार चुभते जो रिसा था ख़ूँ
रास्ता वो अब दिखाता है |" -- बेहिसाब जज्ब करने पर इतनी सही बात निकलती है| साधुवाद गिरिराजजी इस अकल्पनीय सच को खूबसूरती से रखने के लिए |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:12pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..

दर्द मै अपना दबा भी लूँ

ग़म तुम्हारा पर रुलाता है...क्या बात है 

तू न अब मायूसियाँ ही देख 

खार चुभते जो रिसा था ख़ूँ

रास्ता वो अब दिखाता है..क्या सोचा है 

देख कोई मुस्कुराता है  ....आशावादिता का प्रेरक ..बहुत बढ़िया ..इस ग़ज़ल का हर शेर वाकई शेर है ..इस रचना  के लिए तहे दिल बधाई सादर 

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:58pm

क्या कहने वाह वा ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 11:46am

मित्र i मोती  तो बहुत है आपके पास i आप झट-पट माला बना देते है  i एक -एक शेर  सवासेर है भाई, क्या कहूं ? अद्भुत i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 4, 2014 at 11:59pm

ख़्वाबों में आ आ के शिद्दत से

गाँव तो अब भी बुलाता है...............वाह! गजब का शेर हुआ, दिली बधाइयाँ आपको आदरणीय गिरिराज जी

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2014 at 6:17pm

ख़्वाबों में आ आ के शिद्दत से
गाँव तो अब भी बुलाता है.…… वाआआआआआआअह क्या बात है हर अशआर की अलग महक ....इस बेहतरीन ग़ज़ल लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

Comment by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:14pm

दिन टपक के सूख जाता है

हाथ में कुछ भी न आता है.....बहुत सुंदर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2014 at 4:54pm

बहुत बेहतरीन ग़ज़ल ...हर अशआर पर खड़े होकर तालियाँ ....

सूर्य तो ख़ुद जल रहा यारों

वो किसी को कब जलाता है-----ग़ज़ब ग़ज़ब ......

तहे दिल से दाद कबूलें 

 

Comment by Meena Pathak on June 4, 2014 at 12:35pm

क्या बात है ... बहुत बहुत बधाई इस रचना हेतु .. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 11:08am

आदरणीय नरेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
11 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service