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ये दुनिया धर्मशाला है (ग़ज़ल )

हैं  कपड़े  साफ  सुथरे  से , पड़ा  काँधे  दुशाला  है
शहर  में भेडि़यों  ने आ, बदल  अब  रूप  डाला है


कहानी  रोज  पापों की, उघड़  कर  सामने  आती
किसी ने  झूठ  बोला था, ये  दुनिया  धर्मशाला है

समझ के आम जैसे ही, आमजन चूसे जाते नित
बनी ये सियासत अब, महज भ्रष्टों  की  खाला है


मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है

किया सुबह  शाम झगड़ा , रखी वाणी  में दुत्कारें
'मुसाफिर' हमने ही सुख को, दिया घर निकाला है

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
मौलिक व अप्रकाशित


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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 1:05am

मतला और पहला शेर कहन और शिल्प की जिस ऊँचाई पर हैं बाद के शेर उतने ही फैल गये हैं. इन दोनों के लिए तो खूब बधाई कह रहा हूँ.
आप १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ के वज़्न पर अपने अन्य शेर के मिसरे भी कस डालिये.
हार्दिक धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 8:34pm

मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है

किया सुबह  शाम झगड़ा , रखी वाणी  में दुत्कारें 
'मुसाफिर' हमने ही सुख को, दिया घर निकाला है.... वाह आदरणीय धामी जी .बहुत ही बढिया .. बधाई प्रेषित है ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:59pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई जी भाव पक्ष बेहद शानदार है बह्र में मुझे गड़बड़ी लग रही है, मेरे हिसाब से आपने इसे १२२२,  १२२२,१२२२,१२२२, के वज्न पर बाँधा है इस लिहाज से आपने शहर की मात्रा 12 गिनी है भाई जी शहर की मात्रा २१ होती है. एक इस्लाह से आप बेहतरीन ग़ज़ल कह सकते हैं बस थोडा सा ध्यान दीजिये ग़ज़ल की बातें जरुर पढ़िए.

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:36pm

मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है............बहुत सुंदर.

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 6:30pm

आ0 लक्ष्मण जी धामी जी सूंडआर के लिए शुभकामनायें , अनुरोध है कि बह्र भी साथ मे लिख दिया करें ताकि पढ़ने मे सुविधा रहे । सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2013 at 11:29am

अच्छी ग़ज़ल के लिए साधुवाद i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2013 at 11:01am

भाई गिरिराज जी, भाई शिज्जु शकूर जी तथा भाई श्याम नारायण जी , उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ,

आशा है , मार्गदर्शन भी करते रहेंगे .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 10:33pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर गज़ल कही है , अपको अनेकों बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 8:51pm

आदरणीय लक्ष्मण जी इस ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by Shyam Narain Verma on December 23, 2013 at 4:29pm
बहुत सुंदर भाव, बधाई

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