For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए/ ग़ज़ल

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 7, 2013 at 11:00am

यथा संशोधित

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:27am

आदरणीय सम्पादक महोदय जी सादर प्रणाम

आपसे निवेदन है की ग़ज़ल को इस प्रकार से सुधार करने की कृपा करें

सादर प्राथी

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए


 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:24am

आदरणीय नीलेश जी, आदरणीय शिज्जू जी आप की इस्लाह सर आँखों ये स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये

सादर

मतला का ऐब तो मैंने सुधार कर लिया था

किन्तु यही ऐब इक अशआर में भी है जहाँ फिर हम आ रहा है मेरी के साथ वहाँ

मैंने इस तरह सुधार किया है

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

यूँ हमारी हर ग़ज़ल से खुशबू अब उड़ने लगी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 10:04am

आदरणीय गिरिराज सर जी, आदरणीय उमेश जी, आदरणीया कुंती जी, आदरणीय राजेश कुमारी जी ..आदरणीय अरुण सर जी आप सभी का हौसलाफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 7, 2013 at 9:24am

ग़ज़ल अच्छी लगी आदरणीय संदीप जी खासतौर पे ये शेर पसंद आया
//तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए //


शेष आदरणीय निलेश जी ने कह दिया है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 6, 2013 at 10:35pm

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आप ने .... बधाई ...
मतले में शतुर्गुरबा ऐब नुमाया है ... मेरे को अपने करने से राह आसान हो जाएगी 
तुम जियो खुश... को यदि तुम रहो खुश किया जाय तो कैसा रहे ???
चूंकि ज़ाफरान यानी केसर नशीला नहीं होता अत: ..

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए... को ...मेरी गजलों की महक किया जय तो बात अधिक सटीक रहेगी ..,.. क्षमा प्रार्थी हूँ जो इतना कुछ लिख गया ... लेकिन आप से बहुत उम्मीद रखता हूँ इसलिए बाध्य हुआ हूँ .... वाह वाह कर के निकल जाना आसान है .... लेकिन मुझे सही नहीं लगा ...अत: कह दिया ... पुन: क्षमा प्रार्थी हूँ ...
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:32pm

बहुत खूब जी प्रिय संदीप जी.........

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए

 

इन दो अश'आरों ने तो गज़ब ही कर दिया, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2013 at 7:21pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए------वाह्ह्ह बहुत बढ़िया शेर ,वैसे पूरी ग़ज़ल ही लाजबाब है दिल से बधाई 

 

Comment by coontee mukerji on December 6, 2013 at 6:21pm

मेरी गजलों का नशा यूँ सबके सर चढ़ने लगा

देखते ही देखते हम जाफरानी हो गए..............बहुत सुंदर.

Comment by umesh katara on December 6, 2013 at 5:27pm

वाह वाह आदरणीय अच्छी मनमोहक गज़ल के लिये बधायी है वाह्ह्ह्ह्ह्

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
14 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
14 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
15 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
15 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service