For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल नंबर-2

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

आज तारीफ़ें मिरी उनकी ज़बानी हो गईं
हासिदों की देख शकलें ज़ाफ़रानी हो गईं

उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं

आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों
क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं

देखते थे कल हिक़ारत से हमें वो देख लें
किस क़दर नस्लें हमारी आज ज्ञानी हो गईं

मैं तो हूँ ख़ामोश लेकिन लोग कहते हैं "समर"
तेरी ग़ज़लें एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हो गईं

________

हासिदों :- जलने वाले
यकलख़्त :- फ़ौरन
अलअमाँ :- पनाह बख़ुदा
सद :- सौ बार

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1147

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on April 7, 2017 at 8:14pm
आदरणीय समर सर, आपकी ग़ज़लें निस्संदेह एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हैं। इस शानदार ग़ज़ल पर ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Sushil Sarna on April 7, 2017 at 3:18pm

उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं
वाह आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल पेश की है आपने सर ... खूबसूरत अहसासों को समेटे शे'रों के लिए दिल से बधाई स्वीकारें सर।

Comment by Zaif on April 7, 2017 at 3:11pm
आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों
क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं....

कमाल!!!
Comment by narendrasinh chauhan on April 7, 2017 at 2:52pm

बहोत खूब 

Comment by Ravi Shukla on April 7, 2017 at 1:56pm

आदरणीय समर साहब क्‍या कहने आपका अंदाज बिल्‍कुल मु‍ख्‍त‍लिफ होता है हर शेर अपने आप मे अकेला अपने शानदार उपस्थिति दर्ज करता हुबा । आदरणीय नीलेश का कहना सही है यहां तो एक गजल में ही हालत खराब थी और आप ने दो दो कह दी । खास कर इस गजल ने बहुत प्रभावित किया नये नये काफियों का प्रयोग बहुत अच्‍छा लगा । भवानी शब्‍द तो दिमाग में आया ही नहीं ।

हर शेर दम दार पर गुस्‍ताखी मुआफ  हमें दूसरा शेर

उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं

बहुत बहुत पंसद आया उसके लिये सैकड़ों मुबारक बाद और दाद हाजिर है । बहुत खूब ।   सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 7, 2017 at 7:03am

वाह वा..
भवानी ग़ज़ब काफ़िया मिलाया है सर ..
यहाँ तो एक ग़ज़ल में पसीने छूट गए और आप दो-दो  कह गए ..
ग़ज़ब..


दाद और बधाई स्वीकार कीजिये 
सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on April 6, 2017 at 4:13pm

बेहतरीन गज़ल आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब ।हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on April 6, 2017 at 2:13pm
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब, बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पोस्ट पर आपकी ग़ज़ल का आगाज़ हुआ । बहुत बेहतरीन, बेजोड़, बेमिसाल ग़ज़ल ।ख़ासतौर से ये शे'र लाजवाब हुआ है-
आज है मासूम सीता की तरह ये रावणों
क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हुईं । वाह!वाह!!वाह!!!बधाई!बधाउ!!और बधाई!!!
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 6, 2017 at 12:16pm
वाह आ0 समर साहिब बहुत खूबसूरत ग़ज़ल। शेर दर शेर दाद हाजिर है।

मैं तो हूँ ख़ामोश लेकिन लोग कहते हैं "समर"
तेरी ग़ज़लें एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हो गईं
वाह क्या मकते का शेर है। बहुत खूब बधाई।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 6, 2017 at 11:43am
आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों
क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं

देखते थे कल हिक़ारत से हमें वो देख लें
किस क़दर नस्लें हमारी आज ज्ञानी हो गईं

बहुत ख़ूब आ समर साहब । हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service