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वो दहशत गर्द है या मुस्तफ़ा है
क्या तुमने फैसला ये कर लिया है ?
अजब मासूम है क़ातिल हमारा
वो ख़ूँ बारी से अब दहशत ज़दा है
तमाशाई के सच को कौन जाने ?
वो सच में मर रहा है, या अदा है
वो सारी ख़ूबियाँ पत्थर की रख कर
किया है मुश्तहर... वो.. आइना है
कज़ा से बस कज़ा की बात होगी
हमारा बस यही इक फैसला है
बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो
कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता है
डरो मत बस हवायें तेज़ हैं कुछ
ख़बर झूठी है पीछे जलजला है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बेहतरीन बेहतरीन ....
कज़ा से बस कज़ा की बात होगी
हमारा बस यही इक फैसला है
बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो
कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता है.... वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब ... बहुत ही दिलकश ग़ज़ल के पेशकश हुई है ... दिल से बधाई कबूल फरमाएं सर।
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