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पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें
और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें
बहोत खूब। ......सुन्दर गजल
वाह, बेहतरीन शेर हुए हैं आदरणीय समर कबीर जी
पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें
और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें
आम कर दीजे 'ज़फ़र' साहिब के इस पैग़ाम को
"इक दिया जब साथ छोड़े, दूसरा रोशन करें
वाह वा आ. समर सर ... बहुत ख़ूब ग़ज़ल/....
मतले ने बाँध रखा है ...
ग़ज़ल के सभी अशआर उम्दा हैं....
बधाई
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