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एक तरही गज़ल '' समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कबतक " - गिरिराज भंडारी

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहर - हज़ज़ मुसमन सालिम
न पूछोगे, सतायेंगी तुम्हें रुसवाइयाँ कब तक

अगर तुम जान लो पीछे चली परछाइयाँ कब तक  

 

हैं उनकी कोशिशें तहज़ीब को बेशर्मियाँ बाटें  

मुझे है फ़िक्र झेलेंगे अभी बेशर्मियाँ कब तक

 

ज़रा सा गौर फरमायें कसाफत है ये नदियों की   ( कसाफत - गंदगी )

“समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कब तक ”

 

शराफत की कबा कब तक बताओ बुजदिली ओढ़े

सहन करता रहेगा मुल्क ये शैतानियाँ कब तक

 

वो देखो हो रहा है अब उफ़क का रंग सिंदूरी

न सोचो तुम रुलायेंगी अभी तारीकियाँ कब तक

 

किसी की याद ख़्वाबों में ख़यालों में जो हो ज़िंदा

तो फिर सोचो सतायेंगी उसे तनहाइयाँ कब तक

 

जो नादानी में हैवानों से भी आगे रहे, उनकी ,

मैं आईने से पूछूँगा , सहें नादानियाँ कब तक

 

रसाई चीख़ की भी है नहीं जब आसमानों तक

यक़ीं वालों करोगे सोच लो ,शरगोशियाँ कब तक   
*******************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 8:43pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 8:42pm

आदरणीय फूल सिंघ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2016 at 8:03pm

शराफत की कबा कब तक बताओ बुजदिली ओढ़े
सहन करता रहेगा मुल्क ये शैतानियाँ कब तक
लाज़वाब अशआर .... सलाम सर सलाम आपकी इस कलमगिरी को .... इस शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। दिल मोह लेती हैं आपकी ग़ज़लें।

Comment by Shyam Narain Verma on January 18, 2016 at 4:02pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:37pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो

Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:36pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 11:44am

आदरणीय समर कबीर भाई , सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आपने सही कहा , मै सरगोशियाँ सुधार कर लूँगा । आपका आभार ।

Comment by Samar kabeer on January 18, 2016 at 10:27am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह शानदार और मुरस्सा तरही ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
आख़री मिसरे में "शरगोशियां"को "सरगोशियाँ"कर लीजियेगा |

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 10:05am

आदरनीय तेज़ वीर भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 18, 2016 at 9:47am

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!बहुत शानदार गज़ल!एक एक शेर गज़ब ढा रहा है!पुनः बधाई!

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