For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"कितने शर्म की बात है, हमारे आका लोग दुनिया भर से अरबों खरबों भेज चुके हैं, मगर तुम लोग फिर भी आज तक हिन्दुस्तान के टुकड़े नही कर पाए।"
"हमने हरचन्द कोशिश की, मगर ....."
"मगर क्या ?"
"ये लोग टूटते ही नहीI"
"क्यों नही टूटेंगे ? तुम इनको धर्म के नाम पर क्यों नही तोड़ते?"
"हम कश्मीर और पंजाब समेत कई जगहों पर ये कोशिश पहले ही कर चुके हैं सर।"
"कोशिश कर चुके हो तो कामयाब क्यों नही हुए अब तक?"
"क्योंकि इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है सर।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:21pm

कितनी सहेजता से आपने अपनी कथा के माध्यम से यह कह दिया है की भारत की नीव प्रेम पर रखी हुई है | एक बेहतरीन कथा आदरणीय सर | साधुवाद |

Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 9:51pm
यह सच है कि साजिशे तो बहुत हुई देश को तोडने की लेकिन हमारी बुनियाद बहुत मजबूत है अभी भी । ऐसे तो आपस में कितना ही लड ले लेकिन जैसे ही बात सीमा पार की होती है तो जैसे हर हिन्दुस्तानी देश पर मिटने को आमादा हो उठता है । कथा मे देशप्रेम का भाव मन को सराबोर कर गया । हमेशा की तरह लाजवाब पूज्यनीय योगराज प्रभाकर सर जी । नमन
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 8, 2015 at 2:18pm

कमाल ----कमाल----

कुछ बात है की हस्ती मिटनी नहीं हमारी

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमाँ हमारा i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 2:13pm

तोड़ना तो हुआ ही है, आदरणीय. लेकिन यह कितनी बनावटी टूट है इसका भी रह-रह कर भान होता है. वस्तुतः भारतदेश कोई राजनैतिक इकाई है ही नहीं. यह तो एक आध्यात्मिक इकाई है, इसी तथ्य को इस लघुकथा की पंच-लाइन स्वर देती है -  इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है

आध्यात्म का मूल स्वर सबके उन्नयन तथा स्वस्थ सुख की बात करता है. इसी स्वर को गूँगा करने की कवायद में लगे हैं वो लोग जो भारत की अवधारणा को समझते ही नहीं. किसी बहके चश्में से भले सब तरफ लाल-हरा दिखे लेकिन इस भूमि की दशा सर्वसमाही प्रेम ही है.

इस उद्येश्यपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 7, 2015 at 9:48am

आदरणीय योगराज भाई , बहुत सही बात कही लघुकथा के माध्यम से , अगर बुनियाद मुहब्बत है तो फिर तोड़ना असंभव  है ॥ आपको हार्दिक बधाई लघुकथा के लिये ।

Comment by jyotsna Kapil on May 6, 2015 at 6:02pm
आ.योगराज सर आपकी इस लाजवाब कथा ने बहुत कुछ समझा दिया की लघुकथा का कथा शिल्प क्या होता है।यह सर्व विदित सत्य है की हमारे देश की बुनियाद आपसी विश्वास की मजबूत नींव पर राखी है।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 5:46pm
वाह ! बहुत सुन्दर , बुनियाद तो वाकई में इस देश की सामाजिक प्रेम पर रखी हुयी है, इस लघु-कथा में प्रस्तुति बहुत ही प्रभावी ढंग से हुयी है।
बहुत बहुत बधाई, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2015 at 5:21pm

आदरणीय योगराज सर, इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है.

पंचलाइन हमारी संस्कृति और संस्कारों का भीनी भीनी खुशबू छोडती हुई, गहरे तक प्रभावित करती है.

हार्दिक आभार इस प्रस्तुति हेतु.

नमन 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 1:44pm

बहुत खूब सर....परिंदे सवाल करते हैं कि दरख़्त ने हमारे लिए किया ही क्या है 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 6, 2015 at 1:33pm

आदरणीय योगराज सर सुन्दर लघु कथा !  सच कहा आपने वास्तव में हमारे देश की बुनियाद नफरत नहीं प्रेम पर रखी गयी है,!

यही कथा की अंतिम लाइन है और पाठक पर लाजवाब असर छोड़ कर जाती है ..... दिल से सादर बधाई स्वीकार करे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service