For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतिम शब्द

द्वार खुला था

तुम दहलीज़ पर अहम्‌ के जूते उतार

सुस्मित शरद चाँदनी-सी कभी

कभी भोर की प्रथम किरण बनी

बाँहें फैलाए घर के भीतर चली आई

तुमने जिसे मंदिर बनाया

वह आँसू-डूबा उल्लास-भरा

मेरा मन था।

मन पावन था पावन रहा

कब कहा मैंने भगवान हूँ मैं

तुमने मुझको भगवान बनाया

और अब असीम बेरहमी से सहसा

जूतों समेत मेरे सीने पर चल कर

तुम्हारा प्रहार पर प्रहार ... उफ़ !

भीतर नभ में कितने तारे फूटे

कानों में पिस्तौल बन्दूक की ध्वनियाँ

कंपित मन लिए दुख की कथाएँ

बेमाप अकेले में कराह उठा

"हे   रा...म"

-------

-- विजय निकोर

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 26, 2015 at 10:22am

आदरणीय विजय निकोर जी  मार्मिकता लिए जिस प्रकार आप ने शब्दों को अभिव्यक्त किया है वह निस्संदेह दिल को छूती  है.....हार्दिक बधाई स्वीकार करे।

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:17am

आदरणीय विजय निकोर सर , काफी अंतराल के बाद आपकी  रचना पड़ने को मिली ,बहुत ही सशक्त ,समसामयिक इस रचना पर हार्दिक बधाई आपको सर ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 26, 2015 at 4:05am
श्रद्धेय, आपकी इस मार्मिक रचना पर प्रतिक्रियाएँ देखकर असमंजस में हूँ....क्योंकि....आदरणीय पाठकों ने जो समझा है शायद वैसा कहना कवि का उद्देश्य नहीं. सम्भवत: यह रचना महात्मा गांधी के प्रति हाल में जो अपमानजनक आचरण हुआ है उसी ओर इंगित करता है. सादर.
Comment by Sushil Sarna on March 25, 2015 at 5:05pm


आदरणीय बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है .... इस दिल को छूती प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by somesh kumar on March 25, 2015 at 11:33am

कविता की भावनाओं में खो सा जा रहा हूँ |इस वेदना को अनुभव किया है |इसलिए इस रचना के साथ आत्मसात हो गया |

मर्म के प्रति स्वीकृति प्रेषित है |

सादर 

Comment by Shyam Mathpal on March 24, 2015 at 9:10pm

आदरणीय विजय निकोर जी,

मार्मिक रचना .बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 8:41pm

आदरणीय विजय निकोर सर, सशक्त प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. आपकी कविता की इन पंक्तियों से मुझे ग़ज़ल का मतला मिल गया... हार्दिक आभार 

कब कहा मैंने भगवान हूँ मैं

तुमने मुझको भगवान बनाया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 5:21pm

आ० निकोर जी

इस कविता ने मुझे सकते में डाल दिया . दहलीज पर कर तो नवोढ़ा ही आती है . पर कविता का पर्यवसान !. ईश्वर मैडम निकोर को शतायु करें . अभी अंतिम शब्द नहीं  . सादर .

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 24, 2015 at 1:28pm
सत्य ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई पखेरू उन्मुक्त गगन में उड़ता हुआ किसी शिकारी के तीर से बिंध गया हो बहुत मार्मिक समापन है आदरणीय सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 24, 2015 at 12:32pm
आदरणीय विजय निकोर जी , आपकी यह रचना पढ़ कर अंग्रेजी की यह पंक्तियाँ याद आ गयीं : When it enters , it enters silently , when it goes , it bangs all the doors . ( do I need to tell it is for love )
रचना भावपूर्ण है , प्रसंशनीय है , बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
8 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service