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चांदनी रात में बरसात अगर हो जाये
मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये
यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना
इक हसीं गुल से मुलाकात अगर हो जाये
काश! सहरा हो नजर जब भी बने दिल दुल्हा
यूं भी अरमानो कि बारात अगर हो जाये
आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की
काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये
तन ये साँसों से तपे हौले से शब् भर मेरा
काश ऐसी भी कभी रात अगर हो जाये
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ आशुतोष मिश्र
Comment
आ० डॉ० आशुतोष जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है... अंतिम दोनों शेर में काश और अगर का एक साथ होना असहज लग रहा है
सुमधुर कोमल भावों की इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारिये
यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना
इक हसीं गुल से मुलाकात अगर हो जाये
इस नेक सलाह के लिए शुक्रिया
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
आ. आशुतोष भाई , बढ़िया ग़ज़ल के लिये बधाई !
//आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की
काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये//
काश और अगर दोनों एक साथ कुछ जम नहीं रहा,
अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्र जी।
आशुतोष जी
अच्छी गजल कही आपने i सुन्दर i सादर i
" सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई " |
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