For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुण्य-तिथि .... (विजय निकोर)

पुण्य-तिथि

(२७ वर्ष उपरान्त भी लगता है ... माँ अभी गई हैं, अभी लौट आएँगी)

माँ ...

रा्तों में उलझे ख्यालों के भंवर में, या
रंगीले रहस्यमय रेखाचित्रों की ओट में
कभी चुप-सी चाँदनी की किरणों में
श्रद्धा के द्वार पर धुली आकृतिओं में
सरल निडर असीम आत्मीय आकृति
माँ की खिलखिलाती मुसकाती छवि

समृतिओं के दरख़तों की सुकुमार छायाएँ
स्नेह की धूप का उष्मापूरित चुम्बन
मेरे कंधे पर तुम्हारा स्नेहिल हाथ
कितनी बार जा चुका हूँ माँ
तुम्हारे साथ इस लोक से परलोक
लौट आया हूँ परलोक से इस लोक

मेरे जीवन के अन्धेरों में घुल-घुल 
कभी खुशिओं की रोशनी से मिल-जुल 
ले जाती रही हो तुम मुझको अविरल
संभ्रांति और दुष्ट स्वभावों से दूर
असीम समस्याओं की सरहदों के पार
सत्य से एक और प्रखर सत्य की ओर

पर लगता है आज अचानक दरअसल
सत्य से बनाई इमारत गिर-सी गई है
आस्था के आकाश में चटक गई बिजली
बरस रही है चिनगारियाँ अविश्वास की
भावनाओं के सागर में तट को मिटा रही
झकझोरती, व्याकुल भागती-सी लहरें ...

रेत के सफ़े पर ज़िन्दगी के फ़लसफ़े लिखती
ख्यालों की लौटती डूबती-उभरती लहरें
ऐसे में अक्षमताओं से पराजित
उदास आक्रान्त क्षणों में 
विपरीत विचारों के भयानक भंवर में
गोते खा रहा मैं .... असहाय

माँ~ !

----------

 विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1020

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 20, 2014 at 3:49pm

//नमन आपकी लेखनी को भी जो किसी भी विषय पर लिखी अपनी रचना में पाठक को अपने से अलग कर दूसरी दुनिया में ले जाती है//

मेरे लेखन को आपने इन सुन्दर आत्मीय शब्दों से मान दिया, आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2014 at 11:56pm

आदरणीय विजय भाईजी, आपकी इस कविता से गुजरते हुए जो अनुभूति होती है उसे शब्दबद्ध कर पाना... ओह ! 


जिस मिट्टी की रक्त-मज्जा से निर्मित देही के धारक हैं हम, उससे सम्बन्ध मात्र दैहिक नहीं होता न, पराभौतिक भी होता है. पास्परिक वृत्तियों की आवृति का गूढ़तम सम्बन्ध इस भौतिक दुनिया में इस सम्बन्ध से अधिक सहज और कहीं नहीं होता. प्रकृति का अत्यंत गंभीर रहस्य मानों इस पारस्पिक सम्बन्ध में प्राणवान हो उठता है.
फिर, इस देही से कई वर्षों का विलगाव !
फिर, उसी मिट्टी की परास्वरूप हो गयी संज्ञा का संग पाने के लिए इस देही का लगातार गलते जाना.. क्षीण हो दिन-दिन ढलते जाना.

इस निरंतर ढलने की अनुभूति ! ..

आपकी कविता, आदरणीय विजयजी, इसी अनुभूति को शब्दबद्ध करने का प्रयास कर रही है.
क्या कहूँ ! विमुग्ध हूँ.
सादर

Comment by Priyanka singh on August 14, 2014 at 2:10pm

आदरणीय सर ... 

  आपकी लेखनी कमाल है ...भावों को इतनी कोमलता से शब्दों में पिरोतें है की हर शब्द दिल की गहराईयों में उतरता है ... हर बार की तरह इस बार भी आपकी बेहतरीन रचना ... बहुत बहुत खुबसूरत और प्रेम से ओतप्रोत रचना ....आपके शब्दों के द्वारा मैं भी माँ के स्पर्श को महसूस कर गयी .... दिली बधाई ...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 8:28pm

समृतिओं के दरख़तों की सुकुमार छायाएँ

स्नेह की धूप का उष्मापूरित चुम्बन

मेरे कंधे पर तुम्हारा स्नेहिल हाथ

कितनी बार जा चुका हूँ माँ

तुम्हारे साथ

लोक से परलोक

परलोक से इस लोक

NIKOR JEE   AANKHE BHAR AAYEE   LAGA MEREE MA MERE SAMNE AAKAR KHADEE HO GAYEE HAIN 

             मै हतभाग्य मलिन शापित हूँ

             म्लानमना हूँ अधमासित हूँ

हाय प्रसूता की ममता का मुझको अंश नही मिल पाया

             नहीं मिली माँ जिसने जाया

[ मेरी माँ मुझे बचपन में ही छोड़ कर चली गयी थी i मुझे उनकी शक्ल तक  याद  नहीं]

Comment by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 12:33pm

अनुपम प्रस्तुति  बहुत बहुत बधाई  आदरणीय विजय निकोर  जी....  सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 12:13pm

आ०  भाई विजय निकोर जी , माँ को श्रद्धांजलि देती इस भावुक रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 10:20am

आँखों को नम कर देती है आपकी श्रद्धांजलि.

सादर नमन आपको

Comment by savitamishra on August 12, 2014 at 10:14am

बहुत ही सुन्दर..............माँ की पुण्य तिथि पर नमन ........चाचाजी आपको सादरनमस्ते ...हमारी माँ को भी.गये २४ साल हो गये लगताहै अभीतो  हैंसाथ यहीमेरेहीपास 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2014 at 8:27pm
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति , शायद ही कोई माँ को भूल पता हो , न याद करना अलग बात है ,बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए, आदरणीय विजय निकोर जी .
Comment by kalpna mishra bajpai on August 11, 2014 at 7:22pm

आ0 विजय निकोर सर मैं राजेश दी बिलकुल सहमत हूँ..... लाजबाब रचना.......रचना के लिए बधाई /सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
15 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service