For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चिन्तामग्न

 

तुमसे मिलने पर

और तुमसे न मिलने पर भी

काँपते हुए, डरे हुए

पिघलते हुए प्रश्न

 

व्यथाओं की उलझन के अंतर्वर्ती विस्तार में

दर्दीली रातों में द्वंद्व की आड़ी-टेड़ी लकीरें

अन्धकार गुहाओं में काल-नाग-सी सरसराती

लौटा लाती हैं पुराने भूले हुए किस्सों की उदासी

नहीं मालूम, नहीं मालूम तुम्हें, यहाँ रात-बेरात

द्वंद्वात्मक प्रश्नों में बूँद-बूँद-सी गलती है रात

 

सिमटे हुए, डरे हुए प्रश्नों के निर्जन प्रसारों पर

सदियों की पीड़ा की पुरातात्विक इमारत पर

सँवलाए समय के घोंसलों से आती परेशान आवाज़ें

“कुछ कहा.. क्या हुआ.. क्यूँ हुआ ?”.. मैं क्या करूँ ?

इन दुहराते कोलतारी प्रश्नों के उत्तरों की तलाश

शुद्ध परिष्कृत आत्म-चेतना के पार भी है ? ... क्यूँ ?

 

छिल चुके हैं इमान के नाखुन, बहता है लहु

छिपाता हूँ इसे  नए अधखुले रिश्ते में तुमसे

प्रश्नों की परतों-पर-परतों के पहाड़ को ठेल कर

आंतरिक तनाव में भी अपार स्नेह से सराबोर

कोई तो सुनहली झिलमिलाती संभावना है जिससे

तुमसे मिलने पर खिल-खिल जाता हूँ मैं, बार-बार

 

अनर्थक प्रश्नों के अभौतिक प्रसंगों को छोड़ कर

रिक्तता भरी दरारों में जमी उचटता को तोड़ कर

खुरदरी पगडण्डी पर चल-चल आता हूँ पास तुम्हारे

सुनाने संवेदित रोमांचिक स्नेह की अनथक धड़कन

सदैव संजोए भविष्य की वर्तमानता में तना विश्वास

यही है हमारे रिश्ते की वसीयत, यही हमारा इतिहास

-----------

-- विजय निकोर

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 23, 2016 at 3:41pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by vijay nikore on May 23, 2016 at 3:41pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश जी।

Comment by vijay nikore on May 22, 2016 at 4:10pm

//कायल कर दिया एक -एक शब्द ने, बहुत सुन्दर शब्द चयन, बेहद उम्दा मफहूम //

इन शब्दों से मान देने के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीया राहिला जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2016 at 9:14pm

अहा | बेहद सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:26pm

आदरणीय विजय निकोर सर, रिश्तों की उधेड़बुन को शाब्दिक करती शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by Rahila on April 26, 2016 at 6:41pm
कायल कर दिया एक -एक शब्द ने, बहुत सुन्दर शब्द चयन, बेहद उम्दा मफहूम । बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिये । साथ ही फीचर पोस्ट के सम्मान के लिये पुनः मुबारकबाद कुबूल फरमायें ।सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service