For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज के बाज़ार पर.. (नवगीत) // --सौरभ

बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार

हर कश से छल्ले लिए

बातें हुई बवण्डरी
मुदी-मुदी सी आँख में
उम्मीदें कैलेण्डरी

गलबहियों के ढंग पर
करता कौन विचार..  

रजनीगंधा सूँघता
लती हुआ मन रेह का
फेनिल-कॉफ़ी घूँट पर
बाँध तोड़ता देह का

अधलेटे म्यूराल* पर
बाँच रहा अख़बार

खिड़की के बाहर हवा
इतनी कब निर्लिप्त थी
गुलमोहर के गाल पर
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर
आँकी थी तब प्यार..

******
-सौरभ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
******

*म्यूराल - दीवार पर उगी हुई मूर्तियाँ, भित्तिचित्र

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 22, 2014 at 7:44am

 

सर्वथा एक नवीन प्रस्तुति ! अति सुन्दर और मनोहारी। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by Neeraj Neer on January 21, 2014 at 8:26pm

बहुत सुन्दर .. बाजार वाद के अवांछित प्रभावों का बहुत सुन्दर चित्रण किया है 

रजनीगंधा सूँघता 
लती हुआ मन रेह का 
फेनिल-कॉफ़ी घूँट पर 
बाँध तोड़ता देह का

अधलेटे म्यूराल* पर 
बाँच रहा अख़बार .. क्या कहने उम्दा ख्याल ..  सिर्फ लती हुआ मन रेह का .. बात मुझे स्पष्ट नहीं हुई ... बाजार वाद ने सभी नैतिक एवं जीवन मूल्यों को बदल कर ही रख दिया है .. 

Comment by Alka Gupta on January 21, 2014 at 7:28pm

वाह्ह्हह्ह मार्मिक भाव पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ..........

खिड़की के बाहर हवा
 
इतनी कब निर्लिप्त थी 
गुलमोहर के गाल पर 
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर 
आँकी थी तब प्यार..........लाजवाब ......सादर वन्दे 

 

Comment by Arun Sri on January 21, 2014 at 12:49pm

ओह्ह ! कितना वीभत्स दृश्य और दयनीय भी -
//बिस्तर-करवट-नींद तक रिस आया बाज़ार//


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:52pm

आदरणीय सौरभ भाई , लाजवाब नवगीत रचना के लिये आपाको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by कल्पना रामानी on January 20, 2014 at 6:30pm

खिड़की के बाहर हवा
इतनी कब निर्लिप्त थी
गुलमोहर के गाल पर
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर
आँकी थी तब प्यार..

बहुत सुंदर भाव चित्र! मन में उतारने के लिए बार बार पढ़ा। बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सौरभ जी

Comment by coontee mukerji on January 20, 2014 at 3:30pm

बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार.....................
खिड़की के बाहर हवा
इतनी कब निर्लिप्त थी
गुलमोहर के गाल पर
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर
आँकी थी तब प्यार.. ......सामयिक स्थिति की शुरूआत से ......आपने रचना का अंतिम बंध में कितनी जीवन की सुलभ आशाएं जोड़ दी है...बार बार पढ़ने को मन चाहेगा....आपके विचार विनिमय  का बहुत ही सुंदर उदाहरण. आदरणीय सौरभ जी.सादर

Comment by mohinichordia on January 20, 2014 at 10:45am

भौतिकतावाद, नयेपन की आंधी का व्यक्ति की सोच पर हावी हो जाना,  सम्पूर्ण रचना में दिखता है | " रिस आया बाज़ार "  "अधलेटे म्युराल पर ",  आ. सौरभ  जी ! अच्छा लगा  नवगीत |

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 2:49am

बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार/////           

वाह "रिस आया" के क्या कहने

Comment by नादिर ख़ान on January 19, 2014 at 1:06pm

बिस्तर-करवट-नींद तक 
रिस आया बाज़ार 

हर कश से छल्ले लिए

बातें हुई बवण्डरी 
मुदी-मुदी सी आँख में
उम्मीदें कैलण्डरी

आदरणीय सौरभ सर क्या चित्र उकेरा है अपने, बहुत ख़ूब...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
44 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
58 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service