For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंजिल की पहली सीढ़ी--लघुकथा

एक बार फिर वह बुझे मन से उस अर्धनिर्मित क्लास रूम की तरफ निकाल पड़ी जहाँ पिछले दो महीने से वह बच्चों को पढ़ा रही थी. बच्चों को पढ़ाना उसका शौक था और इसके पहले भी वह जहाँ भी रही, उसने यह काम हमेशा किया. लेकिन हमेशा बच्चे उसके घर पढ़ने आते थे और ठीक ठाक घरों के होते थे.

उस मलिन बस्ती में, जहाँ बच्चों की कक्षा चलती थी, जाने में शुरुआत में तो उसकी हालत खराब हो गयी थी. चारो तरफ गंदगी, रास्ते के किनारे बहता हुआ खुला नाबदान और खस्ताहाल दो कमरे, जिसमें बच्चे चटाई पर बैठकर पढ़ते थे. हालाँकि धीरे धीरे बच्चों में सफाई और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आ रही थी लेकिन उसकी उम्मीद से बहुत धीरे. लेकिन सबसे ज्यादा जो चीज उसे साल रही थी, वह थी बच्चों और उनके माता पिता का सिर्फ नाम के लिए वहाँ आना. अक्सर कुछ लोग वहाँ बच्चों के लिए बैग, किताबें इत्यादि बांटने आते थे और काफी बच्चे सिर्फ उसी के लिए वहाँ आते थे.

“बहुत मुश्किल लग रहा है यहाँ बच्चों को पढ़ा पाना, एक तो जगह इतनी खराब और दूसरे पढ़ने वाले बच्चे ही नहीं हैं”, उसने शिकायती लहजे में एक दिन कहा.

“थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा, किसी समाज में घुसकर उनका विश्वास जीतना आसान नहीं होता. जल्द ही परिणाम दिखाई देगा, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है”, पति ने दिलासा दिया.

यही सब सोचती आज फिर वह बस्ती में पहुंची और थोड़ी देर में ही काफी बच्चे आ गए. उसने पूरी तल्लीनता से उन्हें पढ़ाना शुरू किया और तभी एक आवाज़ उसके कान में पड़ी “मैम, मुझे मैथ अलग से पढ़ा दीजिएगा, स्कूल में ठीक से नहीं समझाते हैं”.

उसने उस बच्ची की तरफ देखा और मुस्कुराकर उसका सर सहला दिया. अपनी मंजिल की पहली सीढ़ी उसे दिखाई देने लगी, अब बच्चों का शोर उसे परेशान नहीं कर रहा था.      

मौलिक एवम अप्रकाशित  

Views: 530

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by babitagupta on September 5, 2018 at 6:31pm

अपने अध्यापन कार्य को सही अंजाम मिलना,समाज को शिक्षा के प्रति जागरूकता का संदेश देती बेहतरीन रचना।हार्दिक  स्वीकार कीजियेगा आदरणीय विनय सरजी।

Comment by विनय कुमार on September 5, 2018 at 3:37pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on September 5, 2018 at 3:36pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by Samar kabeer on September 2, 2018 at 2:27pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 2, 2018 at 1:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।शिक्षा के प्रति जागरूकता का आवाहन करती बेहतरीन लघुकथा।

Comment by विनय कुमार on September 2, 2018 at 9:22am

बहुत बहुत शुक्रिया आ शेख शहजाद उस्मानी साहब

Comment by विनय कुमार on September 2, 2018 at 9:22am

बहुत बहुत शुक्रिया आ मिर्जा जावेद बेग साहब

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 2, 2018 at 1:24am

 सच और उम्मीदों की कशमकश पर बढ़िया रचना हार्दिक बधाई आदरणीय  विनय कुमार साहिब। शायद संपादन/कसावट के लिए समय नहीं दिया जा सका है। सादर।

Comment by mirza javed baig on September 1, 2018 at 7:53pm

 जनाब विनयय कुमार साहिब आदाब

लघू कथा पढने की शुरूआत आपकी लघूकथा से की हे ।

पहला अनुभव था मेरे लिए ।

मुझे बहुत ही मुतास्सिर किया इस लघू कथा ने ।

तहे दिल से मुबारकबाद पैश करता हूं ।

स 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service