For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नींव की ईंट--लघुकथा

"अरे लल्ला, साहब लोगन के लिए दुइ कप चाय तो बनवा दो", दशरथ ने आवाज लगाया.
"रहने दीजिये, अभी तो यहाँ खाना खाया, चाय की जरुरत नहीं है", उसने दशरथ को मना किया. तब तक बगल में बैठे मलखान ने लल्ला को आवाज़ लगायी "अरे चाय नहीं, काफ़ी बनवाओ, और हाँ कम शक्कर वाली", और उन्होंने मुस्कुराते हुए ऐसे देखा जैसे मन की बात पकड़ ली हो. उसने फिर से मना किया लेकिन तब तक लल्ला घर के अंदर घुस गया. गाँव में अभी भी काफी चहल पहल थी.
"साहब आपको १२ बजे आना था, असली मेला तो ओही समय था. कल से अखंड रामायण करवाए थे जो दिन में १२ बजे ख़तम हुआ. फिर कुछ नाहीं तो १००० लोगन को भोजन कराया हमने", दशरथ अपनी रौ में बोले जा रहा था.
"अभी मीटिंग ख़तम हुआ तो निकले, अब आपके यहाँ तो आना ही था. वैसे सुबह तो उम्मीद नहीं थी कि आ पाएंगे", उसने भी अपनी बात रखी.
"हाँ, हम भी समझत हैं, आप लोगन के बहुत मीटिंग होत है. इहाँ हम लोग भी बहुत व्यस्त रहे", दशरथ ने इस तरह कहा जैसे सब जानता है.
"घर की औरतें भी तो बहुत थक गयी होंगी, कल से ही लगातार सबको भोजन पानी का इंतज़ाम उन्हीं के जिम्मे रहा होगा", उसको अभी भी काफ़ी के लिए अफ़सोस हो रहा था. दरअसल उसे अपना गाँव याद आ गया जहाँ उसकी माँ भी ऐसे ही बिना शिकायत किये काम में जुटी रहती थी.
"अरे साहब, अब एक्के तो काम रहत है उनके जिम्मे, अब उसमें काहे का थकान. असली में तो हम लोगन का देह दरद कर रहा है", दशरथ ने देह तोड़ते हुए कहा.
अचानक उसने रामदीन से पूछा "अच्छा ये बताईये, आपके घर के नींव में कौन सा ईंट लगा था, याद है".
दशरथ चिहुंक गया, इ कइसा सवाल? "उ तो याद नहीं है साहब", उसकी निगाहों में अकबकाहट झलक रही थी.
"यही दिक्कत है दशरथ, नींव के बारे में कोई नहीं सोचता, सबको ऊपर का मकान ही दिखता है", उसने कहा और उठ कर चल दिया.
परेशान दशरथ पीछे से आवाज़ लगाता रह गया "साहब काफ़ी आ गया है, पीते जाओ".
"मौलिक एवम अप्रकाशित"

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on September 5, 2018 at 3:36pm

बहुत बहुत आभार आ संतोष खीरवादकर जी

Comment by विनय कुमार on September 5, 2018 at 3:35pm

बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

Comment by विनय कुमार on September 5, 2018 at 3:34pm

बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पाण्डे जी

Comment by santosh khirwadkar on August 24, 2018 at 5:29pm

बेहतरीन लघु कथा...बहुत -बहुत बधाई !!!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2018 at 5:49am

आ. विनय जी, सुंदर कथा हुयी है , हार्दिक बधाई ।

Comment by pratibha pande on August 22, 2018 at 9:19am

बहुत गहन बात सहज ढंग से कह दी आपने ।हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। विवरण थोड़ा कम होता तब भी प्रभाव मे असर नहीं पड़ता।

Comment by विनय कुमार on August 20, 2018 at 3:43pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on August 20, 2018 at 2:38pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service