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समझदार बहुत होते हैं- ग़ज़ल


सब तिजारत में समझदार बहुत होते हैं
दाम कम हों तो  ख़रीदार  बहुत  होते हैं


हुस्न में इतनी कशिश है कि इसी कारण से
उनकी  नज़रों के  गिरफ़्तार  बहुत  होते हैं


कौन कहता है क़दरदान नहीं हैं उनके
नेकदिल हो तो तलबगार बहुत होते हैं


दोस्ती होती है  मज़बूत अगर जीवन में
आड़े  मौकों पे मददगार  बहुत  होते  हैं


ये तरीक़ा है अजब मुल्क में अपने देखो
बेगुनह  कम हैं  गुनहगार  बहुत होते हैं !!


मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:11pm

बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:10pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, आपके हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया. जिस तरह से आप मेरी त्रुटियों को न केवल बताते हैं बल्कि उसे दुरुस्त भी करते हैं, यह आपके बड़प्पन को दर्शाता है. मैं यथोचित सुधार करता हूँ, आगे भी इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहिएगा

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 8:08pm

आ सुरेंद्र नाथ सिंह कुश्छत्रप जी, ग़ज़ल पर आकर अपनी बहुमूल्य सलाह देने के लिए बहुत बहुत आभार. अभी बस सीख रहा हूँ, प्रयास रहेगा कि आगे से बह्र भी जरूर लिखूं. शुक्रिया

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2018 at 7:18pm

आ. भाई विनय जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई । 

आ. भाई समर जी की बातों का संज्ञान भी लें ।

Comment by Samar kabeer on September 6, 2018 at 6:37pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन कथ्य की दृष्टि से कई अशआर बहुत कमज़ोर हैं ।

'लोग अक्सर ही समझदार बहुत होते हैं
दाम जो कम हो खरीददार बहुत होते हैं'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त(ताल-मेल) नहीं है,मतला यूँ कर सकते हैं:-

"सब तिजारत में समझदार बहुत होते हैं

दाम कम हों तो ख़रीदार बहुत होते हैं"

'एक तो हुस्न है और मासूमियत भी है 
उनकी नज़रों में गिरफ्तार बहुत होते हैं'

इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं,और कथ्य की दृष्टि से सानी में भी तरमीम होगी,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-

"हुस्न में इतनी कशिश है कि इसी कारण से

उनकी नज़रों के गिरफ़्तार बहुत होते हैं'

'नेकदिल हों तो तलबगार बहुत होते हैं'

इस मिसरे में 'हों' को "हो" कर लें ।

'दोस्त कुछ आप जिंदगी में बनाये रखिये'

ये मिसरा लय में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

"दोस्ती होती है मज़बूत अगर जीवन में'

'अपने इस मुल्क़ में अजीब सा तरीका है
एक क़ातिल तो  गुनहगार  बहुत होते हैं'

इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहिब,सानी में कथ्य ठीक नहीं इसे यूँ कर लें:-

"ये तरीक़ा है अजब मुल्क में अपने देखो

बेगुनह कम हैं गुनहगार बहुत होते हैं"

बाक़ी शुभ शुभ

Comment by नाथ सोनांचली on September 6, 2018 at 6:24pm

आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। चुकि ग़ज़ल पर बह्र लिखने का आग्रह सदैव होता रहा है,अतः मैंने यह लिखा था।  बह्र लिखे होने से हम सीखने वालों को मदद मिलती है। आपने बहुमूल्य जानकारी दी। आपका हृदय तल से आभार

Comment by Samar kabeer on September 6, 2018 at 5:47pm

//ओ बी ओ के नियम के अनुसार ग़ज़ल की बह्र लिखनी आवश्यक है//

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,बह्र लिखने का कोई नियम ओबीओ पर नहीं है,हाँ ग़ज़लकार से आप बह्र लिखने का आग्रह अवश्य कर सकते हैं ।

विनय कुमार जी की ग़ज़ल के अरकान हैं:-

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन

  2122     1122      1122     22

Comment by नाथ सोनांचली on September 6, 2018 at 12:57pm

आद0 विनय जी सादर अभिवादन। ओ बी ओ के नियम के अनुसार ग़ज़ल की बह्र लिखनी आवश्यक है। अगर आप बह्र लिखे होते तो हम शिल्प पर कुछ प्रतिक्रिया देते और कुछ सीखने को हमे मिलता। बहरहाल इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार कीजिये। अगर हो सके तो बह्र अवश्य लिखें। सादर

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 12:49pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंहजी

Comment by विनय कुमार on September 6, 2018 at 12:48pm

बहुत बहुत आभार आ शेख शहजादजी

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