For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कमलनयनी ब्रांड .... ...

कमलनयनी ब्रांड .... ...

अरे!
ये क्या हुआ
कल ही तो वर्कशाप में
ठीक करवाया था
टेस्ट ड्राईव भी
करवाई थी
कार्य प्रणाली
बिलकुल ठीक पाई थी
माना
टक्कर बहुत भारी थी
दिल के
कई टुकड़े हो गए थे
पर वर्कशाप में
कमलनयनी ब्रांड के
नयनों के फैविकोल से
टूटे दिल के टुकड़े
अच्छी तरह चिपकाए थे
उसकी मधुर मुस्कान ने
ओके किया था
दिल फिर अपने
मूल रूप में
धड़कने लगा था
गज़ब
ठीक होते ही
वर्कशाप के मेकैनिक पर
मरने लगा था
हमने
मेकैनिक कोमलान्गिनी से पूछा
अब तो धड़कन में
कोई तकलीफ तो न होगी
कमाल की बात करते हो
यहाँ से जाने के बाद
इसकी गति हमेशा
यूँ ही बनी रहेगी
हम खुशी खुशी
अपने दिल को
टेनिस की बाल की तरह
उछालते हुए घर आये
होठों में भी रूमानियत भरे
गीत गुनगुनाये
दिल में सेंसर
बहुत पावर फुल लगाये थे
दिल के चुम्बकीय क्षेत्र में आते ही
दिल के वाल्व
सायरन बजाने लगते थे
हम बहुत खुश थे
सोचा अब तो
ख्वाब भी क़्वालिटी के आयेंगे
अच्छे ख्वाब की आस में
हमने बेड पर अपनी टाँगें फैलाई
किसी चलचित्र की भांति
ख्वाब में अभी
नामावली ही चल रही थी
कि अचानक लगा जैसे
दिल के पैंडुलम की गति
कुछ धीमी होने लगी थी
हम घबराये,
आजीवन गारंटी और
एक ही दिन में ट्यूनिंग खराब
जैसे तैसे रात निकली
सुबह अपने कमजोर धड़कनों वाले
दिल को वर्कशाप में
कोमलान्गिनी को दिखाया
वो देखते ही बोली
महाशय कहीं कोई भारी
ख्वाब तो नहीं देखा लिया
कमाल करती हो, हम बोले
इसने तो नामावली पर ही
दम तोड़ दिया
तो कोम्लान्गिनी बोली
आपको बीमारी के बाद
कुछ दिनों तक हल्की डाईट
लेनी चाहिए थी
ऐसा तो नहीं कहा था,हम बोले
वैरी सोरी
मैं आपके नये दिल में
इस क़दर खो गयी थी कि
हिदायत देनी याद नहीं रही
खैर अभी ठीक कर देती हूँ
उसने अपने नयनों से
निकलने वाली गामा रेज़ से
दिल का सेक किया
और दिल ठीक कार्य करने लगा
ध्यान रहे,
वो बोली
कुछ दिनों तक तड़के वाली
मसाले दार चीजों से परहेज रखना
हुस्ने फ़ूड से
फासला बनाये रखना
हमने हाँ में हाँ मिलाई
और आदत से मजबूर
फिर नज़र उठा कर
कोम्लान्गिनी की नजर से नजर मिलाई
लेकिन फिर मसाले दार चीजों से
परहेज की बात याद आई
तो अपने दिल के स्वास्थ्य का ध्यान कर
हमने अपनी नजर तुरंत वहां से हटाई
और नजर नीची कर
सोचते रहे
कि नई महक
आज भी पुरानी महक को
कहाँ मात दे पाती है
दिल पुराने ही सही पर
मुहब्बत के आशियाने हैं
हर धड़कन आज भी गुनगुनाती
बीते जमानों के तराने
आज भी लबों पे
नसीमे सहर से तैरते हैं
आज भी उन दिलों में
वो पावन प्यार की ज्योति है
जो मर के भी ज़िन्दा रहती है
फूल सूखे ही सही
पर इस प्यार की
ऐसी ही
सौंधी महक होती है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 21, 2016 at 8:05pm
आदरणीय सुशील सरना जी बिम्ब विधान की जितनी भी तारीफ की जाए उतनी ही कम है, बहुत ही सुन्दर रचना के लिए दिल की गहराईयों से ढेरों बधाइयाँ।सादर ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2016 at 6:32pm

आ० सरना जी आपके ब्रांड  पर निसार हो गया हूँ .

Comment by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 7:08pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 7:08pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 20, 2016 at 4:06pm

सुंदर रचना हुई है आदरणीय सुशील सरना जी | हार्दिक बधाई |

Comment by Samar kabeer on September 20, 2016 at 3:29pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत प्रभाव शाली रचना हुई है,बहुत सलीक़े से बिम्बों के माध्यम से अपनी बात कह गये आप,बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता भी दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service