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तू मुस्करा के देख ले
दिल से लगा के देख ले
झुकना नहीं मंजूर अब
कोई झुका के देख ले
है नाम तेरे जिन्दगी
बस आजमा के देख ले
ये खेल है दिलकस बहुत
बाजी लगा के देख ले
बुझते मुहब्बत के चिराग
अब तो जला के देख ले
कोई नहीं हमसा यहाँ 
नजरें घुमा के देख ले
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीयNilesh Shevgaonkar जी शुक्रिया
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuriजी शुक्रिया
आदरणीयNazeel जी शुक्रिया
आदरणीय Hari Prakash Dubeyजी शुक्रिया
आ.उमेश कटाराजी इस सुन्दर ग़ज़ल पर बहुत-बहुत बधाई आपको !
/ये खेल है दिलकस बहुत
बाजी लगा के देख ले/
/बुझते मुहब्बत के चिराग
अब तो जला के देख ले/
/कोई नहीं हमसा यहाँ 
नजरें घुमा के देख ले/.......वाह !
क्या बात है! क्या बात है!
बड़े दिल से ख़ूब रंग में लिखी है! बधाईयां!
आदरणीय उमेश भाई जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई सवीकार करे ।
बहुत खूब ..वाह वाह
आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी शुक्रिया
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी शुक्रिया
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